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मेरे इन-बॉक्स में कांग्रेस पार्टी की तरफ से आया वो ई-मेल रोजमर्रा की प्रेस रिलीज नहीं था. मेरा हैरान होना लाजिमी था क्योंकि वो न्योता था राहुल गांधी से मुलाकात का. कांग्रेस पार्टी ने अपने अध्यक्ष से मुलाकात और सवाल-जवाब के लिए दिल्ली की करीब 100 महिला पत्रकारों को आमंत्रित किया था.
हालांकि मुलाकात ‘ऑफ रिकॉर्ड’ थी लेकिन उस माहौल में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार साल में एक भी बार पत्रकारों से खुला सवाल-जवाब ना किया हो, राहुल का ये न्योता हैरान करने वाला तो था ही.
मेरे मन में सवाल था- क्या वो वाकई ‘मन की बात’ करेंगे? चर्चा के दौरान अहम राजनीतिक सवालों से लेकर राहुल की छवि और उनके मिशन 2019 तक तमाम बातें हुईं. कभी ठहाके लगे तो कभी स्थिति असहज भी हुई लेकिन राहुल ने सवालों की हर गेंद को फ्रंटफुट पर खेला.
कुछ साल पहले के राहुल गांधी और उस शाम की मीटिंग के राहुल गांधी में फर्क साफ नजर आ रहा था. हिचकिचाहट से ज्यादा आत्मविश्वास और चलताऊ जवाबों से ज्यादा संजीदगी- राहुल की उस बातचीत का हाई प्वाइंट थी.
महिला आरक्षण बिल से लेकर गठबंधन की राजनीति और लिंचिंग से लेकर ‘जादू की झप्पी’ तक महिला पत्रकारों ने तमाम सवाल पूछे. राहुल ने अपनी राय भी रखी और लोगों से उनकी राय भी पूछी ताकि वो सिर्फ बोलने वाले ही नहीं सुनने वाले नेता भी नजर आएं.
राहुल गांधी जानते हैं कि उनका शांत स्वभाव कुछ साल पहले तक वो तारीफ नहीं दिलाता जितनी आज दिला सकता है. वो पहले ‘सेक्युलरिज्म’ और ‘भारत में एकता’ जैसी बातों पर उतनी तालियां नहीं बटोर सकते थे.
कई जवाबों में ऐसा लगा की राहुल जानते हैं कि आज उनके लिए राजनीति में जगह बनी है. इस बात को समझते हुए उन्होंने कई बार कहा कि बीजेपी के चार सालों में उन्होंने काफी कुछ सीखा. वो अब देश को और अपनी पार्टी को बेहतर समझते हैं और खुद को भी सही जगह खड़ा देख पाते हैं.
महिला आरक्षण बिल और कांग्रेस पार्टी में महिलाओं की नुमाइंदगीके सवाल आने बाकी थे लेकिन उससे पहले ही राहुल गांधी बीजेपी का एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया. उन्होंने कहा :
शायद वो कहना चाह रहे थे कि कांग्रेस पार्टी में महिला की तरह सबको साथ लेकर चलने और दूसरों का ख्याल रखने की खूबी है जबकि बीजेपी पुरुष की तरह अपने दंभ में रहती है.
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी का प्रधानमंत्री मोदी को गले लगाना कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था. राहुल ने कहा कि वो समझ नहीं पा रहे थे कि मोदी जी उनके परिवार से इतनी नफरत क्यों करते हैं. राहुल ने कहा:
कई पत्रकारों का जाहिर सवाल था कि लिंचिंग और बढ़ती नकारात्मकता से निपटने के लिए कांग्रेस का प्लान क्या है. राहुल का जवाब था- सत्ता में बदलाव.
राहुल के मुताबिक सरकार की तरफ से बढ़ावा मिलने के कारण ये सब हो रहा है और सरकार बदलने से ये बंद हो जाएगा.
जब राहुल से पूछा गया की क्या वो फेमिनिस्ट यानी नारीवादी हैं तो उन्होंने कहा :
महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के बीच राहुल के सामने कांग्रेस पार्टी में अहम पदों पर महिलाओं की नुमाइंदगी का सवाल आना ही था. हाल में गठित CWC में भी सिर्फ 14% महिलाएं हैं. लेकिन राहुल गांधी ने इस बाउंसर को ‘डक’ करने के बजाए ईमानदारी से जवाब दिया. उन्होंने माना कि कांग्रेस में महिला नेताओं की कमी है और वो इस पर काम कर रहे हैं.
मायावती या ममता बनर्जी जैसी किसी महिला नेता के प्रधानमंत्री बनने के अहम राजनीतिक सवाल पर राहुल का फौरन जवाब था- मुझे कोई आपत्ति नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष ने ये साफ किया कि फिलहाल उनका फोकस बीजेपी को सत्ता से बाहर करना है. कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दलों का एजेंडा भी यही है.
2019 आम चुनाव की संभावनाओं पर बात करते हुए राहुल ने कहा:
राहुल के मुताबिक जीत का मंत्र यूपी और बिहार के नतीजों पर है जो पहले से विपक्षी पार्टियों के पक्ष में हैं. राहुल ने ये भी कहा कि मोदी जानते हैं कि उनके सहयोगी तक उनसे खुश नहीं हैं.
तमाम तरह की विचारधाराओं वाली पत्रकारों से भरे कमरे में करीब 120 मिनट चली चर्चा में राहुल ने एक बार भी किसी सवाल से बचने की कोशिश नहीं की. उनके निजी विचारों के बारे में हो, उनकी पॉलिटिक्स या फिर देश के हालात को लेकर उनकी सोच के बारे में- उन्होंने हर सवाल का तसल्लीबख्श जवाब दिया. किसी बात पर उन्हें टोका गया तो भी उन्होंने अपना पक्ष मजबूती से रखा. एक बार तो जब किसी ने उन पर बीजेपी की टिप्पणियों की बात की तो राहुल ने कहा :
राहुल के इस बेबाक जबाव पर पूरे हॉल में ठहाका गूंज उठा. अपनी आलोचना से बैकफुट पर जाने के बजाए खुद पर हंसने की राहुल की ये ‘काबिलियत’ काबिल-ए-तारीफ है. चर्चा का ये आखिरी सेशन था और पत्रकारों के सवाल धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे.
कांग्रेस पार्टी अब ये जान चुकी है कि खुद अलग किस्म के तरीके खोजे बिना वो पीएम मोदी की चुनावी महारत को मात नहीं दे सकती. अगर नरेंद्र मोदी पत्रकारों से इस तरह की चर्चा करते तो वो इसे मीडिया कवरेज का एक इवेंट बना देते. लेकिन इससे उलट कांग्रेस पार्टी ने इसे ‘ऑफ रिकॉर्ड’ और निजी बनाना पसंद किया. और शायद उन्हें लगता हो कि राहुल गांधी की शख्सियत पर यही जंचेगा.
2014 के आम चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने जो अपनी असरदार रैलियों से किया था राहुल उसकी काट ‘पर्सनल टच’ में ढूंढ रहे हैं. वो अपने फलसफे और निजी तजुर्बे को ज्यादा आसानी से लोगों के साथ बांट पाते हैं और इसमें शक नहीं कि उनका आत्मविश्वास पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है.
(खास बात : हालांकि राहुल गांधी से ये मुलाकात 'ऑफ रिकॉर्ड' थी लेकिन कई पत्रकारों ने इसे रिपोर्ट कर दिया. ज्यादातर बातें लोगों के सामने आ चुकी हैं तो हमने सोचा कि हम भी इस मुलाकात पर अपना नजरिया आपके साथ शेयर करें.)
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