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निर्मला के आरोप पर राजन- ‘मैं तो मोदी सरकार में भी रहा RBI गवर्नर’

बैंकों की खस्ता हालत पर रघुराम राजन ने वित्त मंत्री की आलोचना का दिया जवाब

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भारत
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बैंकों की खस्ता हालत पर रघुराम राजन ने वित्त मंत्री की आलोचना का दिया जवाब
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बैंकों की खस्ता हालत पर रघुराम राजन ने वित्त मंत्री की आलोचना का दिया जवाब
(फाइल फोटो : रॉयटर्स)

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भारतीय बैंकों की खस्ता हालत को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तीखी आलोचना झेलने के बाद अब रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जवाब दिया है. राजन ने वित्त मंत्री को याद दिलाते हुए कहा कि आरबीआई गवर्नर के रूप में उनका दो तिहाई कार्यकाल बीजेपी सराकर के दौरान ही था.

राजन ने कहा कि उनके कार्यकाल में ही बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या से छुटकारा पाने के लिए काम शुरू किए गए थे लेकिन उनके रहते वह काम पूरा नहीं हो पाया था. राजन पांच सितंबर 2013 से सितंबर 2016 के दौरान आरबीआई के गवर्नर रहे.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महीने की शुरूआत में न्यूयॉर्क में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आरबीआई पूर्व गवर्नर रघुराम राजन दोनों के कार्यकाल में देश के सरकारी बैंकों को ‘सबसे खराब दौर’ से गुजरना पड़ा था.

"देश को नई पीढ़ी के सुधारों की जरूरत"

CNBC ने एक इंटरव्यू में राजन से सीतारमण के न्यूयॉर्क में दिए गए बयान के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में ग्रोथ के लिए देश को नई पीढ़ी के सुधारों की जरूरत है. पांच फीसदी जीडीपी के साथ ये कहा जा सकता है कि भारत आर्थिक नरमी में है.

पिछली (कांग्रेस) सरकार में मेरा सिर्फ आठ महीने से कुछ ज्यादा का कार्यकाल था. वहीं इस (बीजेपी) सरकार में कार्यकाल 26 महीने रहा...
रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर, आरबीआई

हालांकि पूर्व गवर्नर ने तुंरत ये भी कहा कि वह इस मामले में राजनीतिक बहस में नहीं पड़ना चाहते.

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"राजनीतिक बहस में मुझे नहीं पड़ना"

रघुराम राजन ने कहा, ‘‘राजनीतिक बहस में मुझे नहीं पड़ना है. सच्चाई ये है कि बैंकों की स्थिति दुरूस्त करने के कदम उठाए गए थे. ये काम अभी चल रहा है और जिस तेजी से पूरा करने की जरूरत है. बैंकों में पूंजी डाली जा चुकी है लेकिन यह काम गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में भी करना है जिसका काम ठप पड़ता जा रहा है. आपको इसे दुरूस्त करने की जरूरत है. अगर आप मजबूत अर्थव्यवस्था चाहते हैं, तो वित्तीय क्षेत्र में तेजी जरूरी है.’’

कहां से शुरू हुई ये बहस?

वित्त मंत्री और पूर्व गवर्नर के बीच ये बहस रघुराम राजन के एक बयान से शुरू हुई. बैंकों की खस्ता हालत पर राजन ने पहले कहा था कि मोदी सरकार ने अपनी पहले कार्यकाल में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अच्छा काम नहीं किया.

राजन के इसी बयान पर कोलंबिया यूनिवर्सिटी में सीतारमण से सवाल पूछा, तो वित्त मंत्री ने कहा, मनमोहन सिंह और रघुराम राजन दोनों के कार्यकाल में सरकारी बैंक सबसे खराब दौर से गुजरे. वित्त मंत्री ने पलटवार करते हुए कहा था कि राजन के कार्यकाल में ही बैंक कर्ज के साथ बड़े मुद्दे सामने आए थे.

...एक महान शख्स के रूप में मैं रघुराम राजन का सम्मान करती हूं. उन्होंने रिजर्व बैंक का कार्यकाल संभालने का चयन ऐसे समय किया था जब भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी पर थी. गवर्नर के रूप में राजन का ही कार्यकाल था जब फोन कॉल पर नेताओं के साथ साठगांठ कर कर्ज दिए जा रहे थे. उसी का नतीजा है कि भारत में सरकारी बैंक आजतक समस्या से बाहर आने के लिए सरकार की इक्विटी पूंजी पर निर्भर हैं.
निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री

हालांकि राजन ने कहा, ‘‘इस समस्या के बीज 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट से पहले ही पड़ गए थे. काफी निवेश किए गए और बाद में नरमी आयी है. वो कर्ज एनपीए बन गए जिसे हमें साफ करने की जरूरत है और हमने प्रक्रिया शुरू की.’’

"काम अभी आधा ही खत्म हुआ"

पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा, ‘‘कुछ लोग हैं जो कहते हैं... हम चीजों को जारी रहने दे सकते थे. हम ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि बैंक के बही खाते एनपीए से पट गए थे और उन्होंने कर्ज देना बंद कर दिया था. इसलिए आपको फंसे कर्ज की पहचान करने और उनमें पूंजी डालने की जरूरत थी ताकि वो पटरी पर आए. काम अभी आधा ही खत्म हुआ है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत को मजबूत अर्थव्यवस्था की जरूरत है लेकिन ये पैबंद लगाकर नहीं आ सकती. इसके लिए नई पीढ़ी के सुधारों की जरूरत है. अच्छी खबर ये है कि सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है और वह सुधारों को आगे बढ़ा सकती है. बुरी खबर यह है कि यह अबतक नहीं हुआ है.’’

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