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राजस्थान: 6 MLA को BSP के व्हिप में कितना दम, क्या कहता है कानून? 

क्या है पूरा मामला और बीएसपी की दलील?

क्विंट हिंदी
भारत
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अशोक गहलोत और मायावती
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अशोक गहलोत और मायावती
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने पिछले साल कांग्रेस में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ने वाले 6 विधायकों को, विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान कांग्रेस के खिलाफ वोट करने के लिए व्हिप जारी कर दिया है. बीएसपी ने कहा है कि अगर ये 6 विधायक पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर वोट करते हैं, तो वे विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाएंगे. हालांकि, इस मामले में बीएसपी की दलील के कानूनी आधार को लेकर सवाल उठ रहे हैं.

इस बीच, सोमवार को इन 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ बीजेपी विधायक मदन दिलावर की याचिका को राजस्थान हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया.

चलिए, इस पूरे मामले पर एक नजर दौड़ाकर समझने की कोशिश करते हैं कि कानून आखिर क्या कहता है.

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क्या है पूरा मामला और बीएसपी की दलील?

साल 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीणा, जोगेंद्र अवाना और राजेंद्र गुधा बीएसपी के टिकट पर जीते थे. उन्होंने पिछले साल कांग्रेस में एक समूह के रूप में विलय के लिए अर्जी दी थी. विधानसभा स्पीकर ने अर्जी के दो दिन बाद आदेश जारी कर ऐलान किया था कि इन 6 विधायकों से कांग्रेस के अभिन्न सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए.

इस मामले में एक बड़ा ट्विस्ट तब आया, जब अशोक गहलोत सरकार में सचिन पायलट खेमे की ‘बगावत’ के बाद पैदा हुए सियासी संकट के बीच बीएसपी ने रविवार को 6 विधायकों को व्हिप जारी कर दिया.

बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने कहा, ‘‘सभी 6 विधायकों को अलग-अलग नोटिस जारी कर सूचित किया गया है कि बीएसपी एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी है और दसवीं अनुसूची के पैरा चार के तहत पूरे देश में हर जगह समूची पार्टी (बीएसपी) का विलय हुए बगैर राज्य स्तर पर विलय नहीं हो सकता है.’’इसके साथ ही मिश्र ने कहा कि अगर 6 विधायक पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर वोट करते हैं, तो वे विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाएंगे.

मिश्र के इस बयान से कई सवाल उठ रहे हैं. मसलन, यहां मिश्र ने जिस दसवीं अनुसूची की बात की है, वो आखिर है क्या? क्या दसवीं अनुसूची के पैरा 4 में वैसा ही कहा गया है, जैसा मिश्र ने बताया है?

क्या कहता है कानून?

संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधान भारत में दलबदल विरोधी कानून को परिभाषित करते हैं. दसवीं अनुसूची के पैरा 4 में कहा गया है कि दलबदल के लिए अयोग्यता राजनीतिक दलों के 'विलय' के मामले में लागू नहीं होगी.

यहां ‘विलय’ शब्द का मलतब क्या है, इसे दसवीं अनुसूची का पैरा 4 (2) इस तरह साफ करता है: ‘’सदन के किसी सदस्य के मूल राजनीतिक दल का विलय हुआ तभी समझा जाएगा, जब संबंधित विधान दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य ऐसे विलय के लिए सहमत हो गए हों.’’

यह प्रावधान साफ दर्शाता है कि विलय हुआ है या नहीं, इसका फैसला करने के लिए आपको यह देखना पड़ेगा कि विधान दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य दूसरी पार्टी में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं या नहीं, पूरे मूल राजनीतिक दल का यहां जिक्र नहीं है.

अब सवाल उठता है कि 'विधान दल' का क्या मतलब है?

'विधान दल' को दसवीं अनुसूची के पैरा 1 में इस तरह परिभाषित किया गया है:

''उस सदन के ऐसे सभी सदस्यों का समूह, जो बताए गए प्रावधानों के मुताबिक, उस समय उस राजनीतिक दल के सदस्य हैं.''

इसलिए इस मामले में विधान दल साल 2018 में चुनकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे बीएसपी के विधायक होंगे. यहां ‘कम से कम दो तिहाई सदस्यों’ वाली शर्त भी पूरी हुई है.

हालांकि, अभी तक इस विशिष्ट मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसले नहीं हैं, और यह दलील दी जानी है कि विलय के लिए विधान दल के कम से कम दो तिहाई सदस्यों का सहमत होना वैध विलय की दूसरी शर्त है, पहली शर्त यह है कि मूल राजनीतिक दल (यहां बीएसपी) को दूसरी पार्टी (यहां कांग्रेस) में विलय करने के लिए एक पार्टी के तौर पर फैसला करना होगा, बीएसपी का कहना है कि ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ था.

बीएसपी ने यह भी कह दिया है कि पार्टी इस मामले को कोर्ट में लेकर जाएगी, ऐसे में राजस्थान के मौजूदा सियासी संकट में इस मुद्दे की भूमिका पर भी निगाहें बनी रहेंगी.

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Published: 27 Jul 2020,03:05 PM IST

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