advertisement
श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना (SRRKS) के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या (Sukhdev Singh Gogamedi Murder) को लेकर राजस्थान में बवाल मचा हुआ है. करणी सेना के सदस्य सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. 17 साल पहले बनी ये सेना अक्सर कई विवादों से जुड़ी रही है. खुद को राजपूत संस्कृति के रक्षक कहने वाले इस सेना के सदस्यों ने कभी फिल्म 'जोधा अकबर', 'पद्मावत' तो कभी EWS कोटा बढ़ाने के मांग को लेकर सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया है. राजस्थान में एक करणी सेना नहीं है. तो चलिए जानते हैं कि क्या है करणी सेना और इसका इतिहास क्या है और राजस्थान में इनकी कितनी पैठ है?
'करणी सेना' शब्द का प्रयोग अब उत्तर भारतीय राज्यों में फैले कई समान राजपूत संगठनों के लिए किया जाता है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, श्री राजपूत करणी सेना (SRKS) सबसे पुरानी करणी सेना है, जिसकी स्थापना 23 सितंबर 2006 को जयपुर के झोटवाड़ा में कई गई.
दो लोग करणी सेना के गठन को लेकर दावा करते हैं- पहला दिवगंत लोकेंद्र सिंह कालवी, जिन्होंने राजनीति में किस्मत आजमाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे. बिल्डर अजीत सिंह मामडोली ने भी करणी सेना बनाने का दावा किया.
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 के बाद मामडोली और कालवी ने अपनी राहें जुदा कर ली और एक ही नाम से करणी सेना के दो संगठन चलाने लगे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों ने श्री राजपूत करणी सेना के नाम के लिए कोर्ट केस भी लड़ा.
राजस्थान के राजपूत करणी माता को पूजते हैं. राजस्थान के बीकानेर में प्रसिद्ध करणी माता मंदिर भी है, जिसकी बहुत मान्यता है. इन्हीं करणी माता के नाम पर संगठन का नाम करणी रखा गया.
ये सेना कोई राजनीतिक संगठन नहीं है. हालांकि, यह दावा करती है कि यह पहला संगठन है, जो राजपूतों की हितों की रक्षा करती है.
अजीत सिंह मामदोली और कालवी दोनों इस बात पर सहमत थे कि SRKS की स्थापना 2006 में राजपूत के पुराने प्रतिद्वंदी जाटों से संघर्ष के कारण ही हुई थी.
उस साल राजपूत और तत्कालीन राजस्थान के सबसे कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह ने जीवन राम गोदारा और हरफूल की हत्या कर दी थी. कथित तौर पर डीडवाना में राम गोदारा और हरफूल का अवैध शराब कारोबार पर नियंत्रण था.
मामडोली और कालवी ने आरोप लगाया कि जैसे ही जाटों ने दोनों की हत्या का विरोध किया, उन्हें राजनीतिक नेताओं से समर्थन मिल गया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने कथित तौर पर ऐसे राजपूतों को गिरफ्तार कर लिया, जो आनंदपाल से जुड़े थे. इन्हीं सब वजह से श्री राजपूत करणी सेना बनाई गई और 11 उद्देश्य रखे गए. इनमें प्रमुख उद्देश्य हैं...
राजपूतों के खिलाफ समाजिक और राजनीतिक द्वेष का विरोध करना
इतिहास या ऐतिहासिक शख्सियतों की गलत व्याख्या का विरोध
राजपूत एकता को बढ़ावा देना
संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' के विरोध-प्रदर्शन के दौरान सबसे ज्यादा चर्चित चेहरा लोकेंद्र सिंह कालवी का ही रहा. उन्होंने फिल्म के खिलाफ राजपूतों को एकजुट करने की कोशिश की और रैली के लिए उत्तरी राज्यों में दौरा किया. इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कालवी करणी सेना के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे.
लोकेंद्र सिंह कालवी का सियासत से पुराना नाता रहा. लोकेंद्र कल्याण सिंह कालवी के बेटे थे, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सरकार में मंत्री थे. रिपोर्टों के अनुसार, कल्याण सिंह की मौत के बाद लोकेन्द्र सिंह कालवी को पूर्व प्रधानमंत्री के समर्थकों ने हाथों-हाथ लिया. उन्होंने अजमेर के मेयो कॉलेज में पढ़ाई की. मेयो कॉलेज में उस समय पूर्व राजपरिवार के बच्चे पढ़ते थे.
लोकेंद्र ने भी राजनीति में भाग्य आजमाने की कोशिश की. उन्होंने 1993 में निर्दलीय और 1998 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. दोनों बार वह हार गए.
1999 में बीजेपी का साथ छोड़ कर राजपूतों के आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. 2009 में लोकेंद्र ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहा पर असफल रहे. इस साल मार्च में उनका निधन हो गया.
2015 में लोकेंद्र सिंह कालवी ने SRKS के राज्य अध्यक्ष सुखदेव सिंह शेखावत उर्फ सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को निलंबित कर दिया. रिपोर्टों के अनुसार, कालवी और गोगमेड़ी में मतभेद थे. इसके बाद गोगामेड़ी ने भी श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना बना ली. जिसके बाद एक ही नाम से दो करणी सेना के ग्रुप चलते रहे.
1. लोकेंद्र सिंह कालवी के बेटे भवानी सिंह कालवी की करणी सेना
2. गोगामेड़ी और मामडोली के नेतृत्व वाली श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना (SRRKS)
3. राजपूत नेता महिपाल मकराना के नेतृत्व वाली करणी सेना
अक्टूबर 2021 में अजीत सिंह मामडोली और गोगामेड़ी ने हाथ मिला लिया और दोनों की करणी सेना गुट एक साथ मिल गई और अध्यक्षता की जिम्मेदारी सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को सौंपी गई. वहीं, राष्ट्रीय कन्वीनर अजीत सिंह मामडोली को बनाया गया.
बीबीसी को दिए बयान में करणी सेना के महिपाल सिंह मकराना ने असली करणी सेना को लेकर कहा था "श्री कालवी ने इस संगठन को खड़ा किया है, वो ही असली संगठन है."
करणी सेना कैसे काम करती है, इसके सवाल में मकराना ने कहा "न तो कोई कोष है, न कोई कोषाध्यक्ष है, हम चंदा नहीं करते. लोग परस्पर सहयोग से संगठन चलाते है."
2008 में आशुतोष गावरिकर की फिल्म 'जोधा अकबर' का श्री राजपूत करणी सेना ने जमकर विरोध किया. उन्होंने आरोप लगाया कि फिल्म में ऐतिहासिक फैक्ट्स को गलत तरीके से दिखाया गया है.
इसके बाद उन्होंने फिल्म 'पद्मावत' का विरोध किया. फिल्म की शूटिंग जयपुर के जयगढ़ फोर्ट में हो रही थी.
करणी सेना के सदस्यों ने फिल्म के सेट पर जमकर तोड़फोड़ की और कथित तौर पर फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली से बदसलूकी की. विरोध इतना बढ़ा कि संजय लीला भंसाली ने फिल्म की शूटिंग राजस्थान से महाराष्ट्र में शिफ्ट कर ली. विरोध जारी रहा, जिसके बाद भंसाली ने सामने आकर सफाई दी कि फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती का प्रेम प्रसंग का कोई जिक्र नहीं है.
फिल्म के 'घूमर' गाने पर भी करणी सेना समेत राजपूत संगठन ने विरोध जताया और दीपिका का नाक काटने तक की घोषणा कर डाली थी.
करणी सेना ने राजस्थानी को संविधान की अनुसूची आठवीं के तहत एक राज्य भाषा के रूप में मान्यता देने की भी मांग उठाई.
इस साल अप्रैल में, गोगामेडी के नेतृत्व वाले करणी सेना ने जयपुर में सामान्य जातियों के लिए ईडब्ल्यूएस कोटा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत करने की मांग उठाई.
मूलरूप से करणी सेना अपने आप को राजपूत हितों की रक्षा करने वाली बताती है. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि आखिर राजस्थान में राजपूतों की क्या स्थिति है और ये सियासत में कितना असर डालते हैं?
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, राजस्थान में राजपूत समाज की आबादी 7 से 8 प्रतिशत है. वहीं, उनका प्रभाव विधानसभा की कुल 200 सीटों में से लगभग 25 सीटों पर है. भैरोसिंह शेखावत के समय से ही राजपूतों का झुकाव बीजेपी की ओर माना जाता है.
राजस्थान में करणी सेना का कितना प्रभुत्व है, ये इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी आह्वान पर युवा तुरंत एकत्र हो जाते हैं. इस सेना के सदस्यों की संख्या भी बढ़ रही है. कुछ साल में ही करणी सेना ने राजस्थान के राजपूत बहुल जिलों में अपने पांव पसार लिए हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार करणी सेना के एक पदाधिकारी शेर सिंह ने बताया "जयपुर में उनकी उपस्थिति बहुत मजबूत है. झोटवाड़ा, खातीपुरा, वैशाली और मुरलीपुरा ऐसे राजपूत जगहें हैं, जहां करणी सेना के आह्वान को तुरंत सुना जाता है. पिछले कुछ समय में करणी सेना ने अपना दायरा बढ़ाया और राज्य के बाहर भी अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)