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राजस्थान:कांग्रेस का शहर,BJP का गांवों में बेहतर प्रदर्शन की वजह 

शहरी और ग्रामीण चुनाव अलग-अलग जिलों में हुए

आदित्य मेनन
भारत
Published:
शहरी और ग्रामीण चुनाव अलग-अलग जिलों में हुए
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शहरी और ग्रामीण चुनाव अलग-अलग जिलों में हुए
(फोटो: Quint)

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हाल ही में हुए राजस्थान नगर निकाय चुनावों के नतीजों में एक दिलचस्प बात सामने आई है. कांग्रेस ने शहरी नगर निकाय चुनावों में बीजेपी से अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि ग्रामीण चुनावों में इसका उल्टा हुआ है.

जैसा सोचा जाता है, ये उससे अलग है. क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर ये एक समझी हुई बात है कि बीजेपी शहरी इलाकों में मजबूत है और कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों में.

छोटे शहरों में हुए नगर पालिका चुनावों में कुल 1775 वॉर्ड्स में से कांग्रेस ने 619 वॉर्ड्स, बीजेपी ने 549 और निर्दलीयों ने 595 जीते.

कांग्रेस ने 50 नगर पालिकाओं में से 16 में स्पष्ट बहुमत जीता है, जबकि बीजेपी को सिर्फ चार में बहुमत मिला है. बाकी 30 में नगर पालिका नियंत्रण लेने के लिए दोनों पार्टियों को निर्दलीयों पर निर्भर रहना होगा.

वहीं, ग्रामीण चनावों में बीजेपी ने कुल 636 जिला परिषद सदस्य पदों में से 353 और कांग्रेस ने 252 जीते हैं. बीजेपी ने 1989 पंचायत समिति पद और कांग्रेस ने 1852 पदों पर कब्जा किया है.

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा है कि बीजेपी ग्रामीण चुनावों के नतीजों पर लोगों को गुमराह कर रही है और बोले कि कांग्रेस को 40.87% और बीजेपी को 40.58% वोट मिला है.

हालांकि, कांग्रेस के लिए ये भी अच्छा प्रदर्शन नहीं है क्योंकि सत्ताधारी पार्टी से इससे बेहतर की उम्मीद होती है.

तो, राजस्थान में इन नतीजों का क्या मतलब है? इसकी तीन वजहें हैं: दो राजस्थान से जुड़ी हैं और एक ‘बिग पिक्चर’ फैक्टर है. 

शहरी और ग्रामीण चुनाव अलग-अलग जिलों में हुए

नगर पालिका चुनाव 12 जिलों के 50 शहरों में हुए थे. ये जिले हैं: अलवर, बारन, भरतपुर, दौसा, धौलपुर, गंगानगर, जयपुर, जोधपुर, करौली, कोटा, सवाई माधोपुर और सिरोही.

जिला परिषद और पंचायत समिति चुनाव 21 जिलों में हुए थे: अजमेर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौरगढ़, चूरू, डूंगरपुर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, जालौर, झालावार, झुंझुनू, नागौर, पाली, प्रतापगढ़, राजसमंद, सीकर, टोंक और उदयपुर.

दोनों चुनावों में दो अलग-अलग जिलों के समूह ने वोट किया था.  

दोनों चुनावों के बीच एक भी जिला कॉमन नहीं है और इसलिए नतीजों का मतलब ये हो सकता है कि कांग्रेस को राजस्थान के पश्चिमी हिस्से के मुकाबले पूर्वी हिस्से में ताकतवर समझा जाता है.

नगर पालिका चुनावों में वोट करने वाले 12 में से 9 जिले पूर्वी राजस्थान के हैं.

नगर पालिका चुनावों में जिन जिलों ने वोट किया, उनमें सीएम गहलोत (जोधपुर) और महत्वपूर्ण मंत्री शांति धारीवाल (कोटा), प्रसादी लाल मीणा (दौसा), प्रताप सिंह खचारियावास और लाल चंद कटारिया (जयपुर) और प्रमोद जैन भाया (बारन) के गृह जिले शामिल हैं. कांग्रेस ने इन सब जिलों में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया.

दोनों चुनावों में कांग्रेस ने राजस्थान के अपने वरिष्ठ नेताओं के गृह जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया है. इसमें कुछ अपवाद भी है जैसे कि राज्य कांग्रेस प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा और वरिष्ठ मंत्री रघु शर्मा.  

पंचायत समिति और जिला परिषद चुनावों में भी कांग्रेस ने मंत्री बीडी कल्ला (बीकानेर), सालेह मोहम्मद (जैसलमेर) और हरीश चौधरी (बाड़मेर) के गृह जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया है.

सचिन पायलट को मिले जुले नतीजे मिले हैं क्योंकि कांग्रेस को टोंक में ग्रामीण चुनावों में हार मिली है. हालांकि, नगर पालिका चुनाव में पायलट की पुरानी सीट दौसा में पार्टी का अच्छा प्रदर्शन रहा.

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BTP और RLP की मौजूदगी

जिन जिलों ने नगर पालिका चुनावों में वोट किया, उनमें भारतीय ट्राइबल पार्टी और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी उन जिलों के मुकाबले कमजोर थी, जिन्होंने पंचायत समिति और जिला परिषद चुनावों में वोट किया. दोनों ही पार्टियां उन धड़ों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो पारंपरिक तौर पर कांग्रेस की तरफ झुकाव रखते हैं- आदिवासी और जाट, और ग्रामीण चुनावों में इनका कुछ वोट बंट गया होगा.

नगर पालिका चुनावों में BTP के कोर इलाके नहीं थे, जिसकी मौजूदगी ने जिला परिषद चुनावों में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया हो सकता है.  

डूंगरपुर और बांसवाड़ा जैसे BTP के कोर इलाकों ने जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों में वोट किया और नगर पालिका में नहीं. ऐसा ही RLP के कोर इलाके नागौर और बाड़मेर के साथ हुआ.

इसके अलावा दोनों पार्टियों का सपोर्ट बेस भी मुख्य तौर पर ग्रामीण है.

अब 'बिग पिक्चर' वजह

ऐसा संभव है कि अलग-अलग नतीजे सिर्फ राजस्थान की वजहों से नहीं, बल्कि एक नेशनल ट्रेंड का हिस्सा हो.

ये नेशनल ट्रेंड उस सर्वे डेटा पर आधारित है, जो कहता है कि NDA की पॉपुलैरिटी बड़े शहरों और गांवों के मुकाबले छोटे शहरों में सबसे ज्यादा लचीली है. 

इन्हीं छोटे शहरों में नगर पालिका के चुनाव हुए हैं.

लोकनीति-CSDS सर्वे के मुताबिक, मई 2017 में 43 फीसदी लोगों ने छोटे शहरों में कहा था कि वो बीजेपी को वोट देने की योजना में हैं. जनवरी 2018 में ये 35 फीसदी पर आ गया और मई 2018 में 31 फीसदी पर. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव से पहले 38 फीसदी हो गया.

छोटे शहर ही वो अकेले इलाके हैं जहां UPA की पॉपुलैरिटी 2017 और 2019 के बीच NDA से ज्यादा है. 

वहीं, गांवों और बड़े शहरों में NDA की पॉपुलैरिटी लगभग स्थिर रही है. गांवों में मई 2017 में 46% लोग NDA के पक्ष में थे. जनवरी 2018 में ये आंकड़ा 41 फीसदी हुआ और मई 2018 में 37% और फिर 2019 चुनाव से पहले 40% पहुंच गया.

ऐसे ही बड़े शहरों में मई 2017 में 42% लोगों ने NDA को पसंद बताया. जनवरी 2018 में ये 47% हो गया, मई 2018 में गिरकर 44 फीसदी हुआ और 2019 के चुनाव से पहले 49% तक पहुंच गया.

तो ऐसा लगता है कि राजस्थान नगर पालिका चुनाव नतीजे NDA की छोटे शहरों में पॉपुलैरिटी के बदलते ट्रेंड का नतीजा है.

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