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6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड हुआ. करीब 25 सालों से कानूनी दांव-पेंच और अदालतों के भंवरजाल में फंसे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया.
लाल कृष्ण आडवाणी समेत वरिष्ठ भाजपा नेताओं पर अपराधिक साजिश का मामला चलाया जाएगा. आडवाणी के अलावा इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता मुरली मनोहर जोशी और केंद्रीय मंत्री उमा भारती पर भी मुकदमा चलेगा.
दिसंबर 1992: सीबीआई ने इस केस में दो एफआईआर दर्ज किए.
एफआईआर नंबर 197/1992 उन अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ थी जिन्होंने विवादित ढांचे को गिराया था. दूसरी एफआईआर 198/1992 में अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, एल के आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, अशोक सिंघल और साध्वी ऋतम्भरा के खिलाफ दर्ज की गई थी. इन नेताओं पर सांप्रदायिक और उकसाने वाला भाषण देने का आरोप लगा.
5 अक्टूबर 1993: सीबीआई की ओर से लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में ज्वाइंट चार्जशीट फाइल की गई. आडवाणी और संघ परिवार के दूसरे नेताओं के खिलाफ विवादित ढांचा गिराये जाने की साजिश रचे जाने का आरोप लगाया गया.
4 मई 2001: लखनऊ की कोर्ट ने आडवाणी, उमा भारती, बाल ठाकरे समेत दूसरे आरोपी नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा हटा दी.
2 नवंबर 2004: सीबीआई ने इस फैसले को अलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने चैलेंज किया. कोर्ट ने नोटिस जारी की.
20 मई 2010: अलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. सीबीआई की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने आडवाणी, कल्याण सिंह और ठाकरे समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा स्थगित करने के आदेश को सही ठहराया.
9 फरवरी 2011: सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर मांग की कि हाई कोर्ट के इस आदेश को खारिज किया जाए.
6 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा नेताओं के खिलाफ लगे साजिश के आरोप पर विचार किया जा सकता है.
21 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से मामले को सुलझाने की बात कही.
6 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मुकदमे को समय-सीमा में पूरा किए जाने का समर्थन करते हुए सीबीआई की याचिका को रिजर्व रखा.
19 अप्रैल: मामले में आडवाणी, जोशी और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री उमा भारती समेत कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरोप बरकरार रखते हुए और नेताओं और कारसेवकों के खिलाफ लंबित मामले में ट्रायल का आदेश दिया.
सीबीआई ने धारा 153 ए (वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने) के तहत लालकृष्ण आडवाणी पर चार्ज लगाया था.
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