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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में तेजी से प्रगति और डीपफेक (DeepFake) के बढ़ती जेंडर आधारित मामलों ने बिग टेक की नीतियों और भारतीय कानूनी प्रणाली की समस्या से निपटने की क्षमता को फिर से सुर्खियों में ला दिया है. इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) की वकील और सहयोगी कानूनी सलाहकार, राधिका रॉय ने द क्विंट को बताया कि प्रौद्योगिकी-सुविधा वाली ऑनलाइन लैंगिक हिंसा एक सच है और डीपफेक ऐसी हिंसा को कायम रखने का एक और पहलू है.
द क्विंट ने टेक्नोलॉजी, पॉलिसी और कानून जानकारों से बात की और यह समझने की कोशिश की कि मशहूर हस्तियों के साथ-साथ अन्य लोगों का कोई डीपफेक वीडियो होने की स्थिति में उनकी सुरक्षा के लिए क्या उपाय हैं?
वर्जीनिया युनिवर्सिटी के मुताबिक डीपफेक एक आर्टिफिसियल इमेज या इमेजेज की एक सीरीज (यानी एक वीडियो) है, जो एक अलग तरह की मशीन लर्निंग द्वारा बनी होती है, जिसे "डीप लर्निंग" कहा जाता है.
डीपफेक के बारे में द क्विंट से बात करते हुए सॉफ्टवेयर इंजीनियर स्मित शाह, कहते हैं कि
स्मित शाह आगे कहते हैं कि जो लोग पब्लिक डोमेन में आसानी से उपलब्ध हैं, वो सबसे ज्यादा रिस्क में हैं. उदाहरण के लिए, प्रभावशाली व्यक्ति और मशहूर हस्तियां, जिनके वीडियो, बोलने के व्यवहार आदि इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध हैं.
पिछले कुछ सालों से डीपफेक का उपयोग महिलाओं को परेशान करने और डराने-धमकाने के साथ-साथ दुर्भावनापूर्ण कंटेंट वाली वेबसाइट्स पर ट्रैफिक लाने के लिए किया जा रहा है.
मशहूर हस्तियों का डीपफेक अश्लील कंटेंट ऑनलाइन बेचा जाता है और यह एक मिलियन डॉलर की इंडस्ट्री बन गया है. इसके साथ ही, डीपफेक का उपयोग उन व्यक्तियों को ब्लैकमेल करने और उनका शोषण करने के लिए भी किया जाता है, जो लोगों की नजर में नही हैं.
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC) के फाउंडर मिशी चौधरी ने कहा कि AI में विकास के साथ डीपफेक चिंता का एक बढ़ता हुआ क्षेत्र है. उनका उपयोग गलत सूचना फैलाने, दुष्प्रचार करने, परेशान करने, डराने-धमकाने, अश्लील इमेज बनाने और कई अन्य तरीकों से लोगों को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है.
डीपफेक की जेंडर आधारित नेचर पर बोलते हुए राधिका रॉय ने द क्विंट को बताया कि डीपफेक तेजी से जेंडर आधारित होता जा रहा है, लेकिन देश में ऐसा ही हो रहा है. टेक्नोलॉजी-सुविधा वाली ऑनलाइन जेंडर आधारित हिंसा एक वास्तविकता है और डीपफेक ऐसी हिंसा को कायम रखने का एक और रूप है.
रॉय के मुताबिक "डीपफेक" शब्द को किसी भी कानून में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इससे निपटने के लिए कानूनी प्रावधान हैं. जैसे कि आईटी अधिनियम की धारा 67, जिसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील कंटेंट पब्लिश करने के लिए किया जा सकता है."
वो आगे कहती हैं कि विशेष रूप से, हमारे पास नियम 3(1)(बी)(ii) है, जो अपमानजनक, अश्लील, पीडोफिलिक, निजता पर हमला (जिसमें शारीरिक गोपनीयता भी शामिल है), लिंग के आधार पर अपमान या उत्पीड़न आदि को प्रतिबंधित करता है.
रॉय ने कहा कि नियम के मुताबिक मध्यस्थों को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रयास करने की जरूरत है कि उपयोगकर्ता किसी भी निषिद्ध जानकारी को "संशोधित" न करें. राधिका रॉय
चौधरी ने रॉय के विचार से सहमति जताई और कहा कि लोगों को मदद देने के लिए कुछ संसाधनों पर काम किया जा रहा है, क्योंकि कानून इसके साथ नहीं रहा है. हमारे पुलिस बल प्रशिक्षित नहीं हैं, न ही हमारे जज या अदालतें इसके बारे में प्रशिक्षित हैं.
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के मुताबिक इस साल अप्रैल में अधिसूचित IT नियमों के तहत किसी यूजर या सरकार द्वारा रिपोर्ट किए जाने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 36 घंटे के अंदर गलत सूचना को हटाने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हैं.
उन्होंने कहा कि अगर प्लेटफॉर्म इसका पालन नहीं करते हैं, तो नियम 7 लागू होगा और IPC के प्रावधानों के तहत पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्लेटफॉर्म को कोर्ट में ले जाया जा सकता है.
पहला कदम है ध्यान देना. यहां तक कि एक्टर रश्मिका मंदाना के वायरल वीडियो को भी करीब से देखने पर वीडियो के शुरुआती कुछ फ्रेम में असली चेहरा देखा जा सकता है.
दूसरी चीज, जानकारी को वेरिफाइ करें, जैसे हम व्हाट्सएप फॉरवर्ड को वेरिफाइ करते हैं.
पूरी तरह सावधानी बर्तें. आप जो देखते हैं उस पर विश्वास न करें. किसी फैक्ट-चेकिंग प्लेटफॉर्म से बात कर सकते हैं, जो यूजर के लिए जानकारी को वेरिफाइ करता है.
मिशी चौधरी ने Massachusetts Institute of Technology (MIT) द्वारा बनाई गई डिटेक्ट फेक वेबसाइट के बारे में बात की जो लोगों को डीपफेक की पहचान करने में मदद करती है.
आखिरी में स्मित शाह ने बताया कि बायोमेट्रिक्स के लिए उन्नत डीपफेक-डिटेक्शन सिस्टम कैसे दिखते हैं. वे इशारों, दिल की धड़कन, कितनी बार आंखें झपक रही हैं, सूक्ष्म हलचलें और माइक्रोफोन में सुनाई देने वाली आवाज जैसी चीजों को समझने की कोशिश करते हैं.
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