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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर एमके जैन ने मंगलवार को छोटे कारोबारियों को कर्ज उपलब्ध कराने के लिये शुरू की गई मुद्रा लोन योजना में कर्ज वसूली की बढ़ती समस्या को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने बैंकों से कहा है कि वह इस योजना के तहत दिये जाने वाले कर्ज पर करीबी नजर रखें.
बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में मुद्रा लोन योजना की शुरुआत की थी. यह योजना छोटे उद्यमों को जरूरी वित्तपोषण सुविधा उपलब्ध कराने के लिये शुरू की गई है.
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एमके जैन ने मंगलवार को बैंकर्स को मुद्रा लोन की वजह से बढ़ते एनपीए को लेकर चेताया है, जो 3.21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के आरपीटी सिस्टम को पार कर गया है. जैन ने बैंकर्स को इस तरह के लोन की निगरानी करने के लिए कहा है, क्योंकि लगातार लोन की रकम बढ़ने से बैंकिंग सेक्टर जोखिम में पड़ सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2015 में मुद्रा योजना की शुरुआत की थी, जिसमें छोटे व्यवसायों के लिए 10 लाख रुपये तक के त्वरित लोन की पेशकश की गई है. ये योजना गैर-कॉरपोरेट, गैर-कृषि यानी लघु और सूक्ष्म उद्योगों के लिए है, जिन्हें आमतौर पर बैंक से लोन नहीं मिलता है.
ये लोन बैंकों, एनबीएफसी, आरआरबी, सहकारी बैंकों और लघु वित्त बैंकों द्वारा विस्तारित हैं.
दिलचस्प है कि इस योजना के शुरू होने के एक साल के भीतर, आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने इस योजना को लेकर चेताया था, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन चिंताओं को खारिज कर दिया था.
जैन ने माइक्रोफाइनेंस पर सिडबी के एक इवेंट में बताया-
उन्होंने बैंकों को सुझाव दिया है कि वह इस तरह के कर्ज देते समय दस्तावेजों की जांच-परख के स्तर पर कर्ज किस्त के भुगतान की क्षमता पर भी गौर करें और इस तरह के कर्ज का उनकी पूरी अवधि तक करीब से निगरानी करें.
सरकार ने जुलाई महीने में संसद को बताया था कि 3.21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की मुद्रा योजना में कुल एनपीए वित्त वर्ष 2018 में 2.52 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 2.68 प्रतिशत हो गया है.
सरकार ने बताया कि योजना की शुरुआत के बाद से, 19 करोड़ से ज्यादा ऋणों को जून 2019 तक योजना के तहत बढ़ाया गया है. इसके अलावा मार्च 2019 तक कुल 3.63 करोड़ खाते डिफॉल्टर हो चुके हैं.
हालांकि, आरटीआई के एक जवाब में बताया गया है कि मुद्रा योजना में बैड लोन वित्त वर्ष 2019 में कुल 126 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 9,204.14 करोड़ रुपये बढ़कर 16,481.45 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 2018 में 7,277.31 करोड़ रुपये था.
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