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लालकिला हिंसा: 25 FIR लेकिन चार्जशीट सिर्फ 1-क्या सबूत नहीं जुटा पा रही पुलिस?

Tractor rally violence में 151 गिरफ्तारियां हुई थीं, अब केस की क्या स्थिति है, क्विंट हिंदी ने वकीलों से जाना

पूनम अग्रवाल
भारत
Updated:
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26 जनवरी को हिंसा में क्यों पुलिस सिर्फ एक चार्जशीट दर्ज कर पाई?

(फोटो:क्विंट हिंदी)

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देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी 2021को हुई हिंसा में, जब किसानों ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकाली थी. हिंसा के खिलाफ पुलिस ने ताबड़तोड़ 25 FIR दर्ज कर 151 लोगों को गिरफ्तार किया था. लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी दिल्ली पुलिस सिर्फ एक मामले में अब तक चार्जशीट दाखिल कर पाई है. तो वहीं देखते ही देखते पांच महीनों में ही सभी को जमानत भी मिल गई. किसानों का ये विरोध प्रदर्शन महीनों से जारी है. तीन कृषि कानूनों को खत्म करने की मांग करते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसान जमे हुए हैं और सरकार से कई दौर की बातचीत भी विफल रही है.

17 मई को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने लाल किले पर हुई हिंसा मामले में दर्ज FIR पर चार्जशीट दाखिल की थी. चार्जशीट में पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू और इकबाल सिंह सहित 16 लोगों के नाम हैं, हिंसा के दौरान ये फेसबुक लाइव कर रहे थे. फेसबुक लाइव के दौरान प्रदर्शनकारियों को उकसाने का आरोप है.

लेकिन बाकी 24 एफआईआर पर दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट क्यों नहीं दाखिल की यह एक रहस्य बना हुआ है।

'मैं अपने मामले को लेकर चिंतित हूं'

तैंतीस वर्षीय जोगिंदर सिंह को दिल्ली पुलिस ने 28 जनवरी 2021 को दिल्ली के बुराड़ी सीमा से गिरफ्तार किया था. जोगिंदर की गिरफ्तारी किसानों के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के कारण हुई थी. उन पर एक सरकारी कर्मी के साथ मारपीट और अवज्ञा के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. तिहाड़ जेल में 16 दिन बिताने के बाद उन्हें जमानत मिल गई। दिल्ली पुलिस ने अभी तक उनके मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं की है।

जमानत मिलने के बाद से दिल्ली पुलिस ने मुझसे संपर्क नहीं किया है। मुझे नहीं पता कि मेरे मामले में क्या हो रहा है। लेकिन हां, मैं अपने मामले को लेकर चिंतित हूं। किसी भी दिन, पुलिस या अदालत मुझे दिल्ली बुला सकती है।
जोगिंदर सिंह, प्रदर्शनकारी किसान

आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद भी जोगिंदर टूटे नहीं है. किसान आंदोलन के साथ खड़े रहने का उनका संकल्प अभी भी मजबूत है. तभी तो जेल से छूटने के बाद जोगिंदर कई बार दिल्ली की सीमा पर धरना स्थलों का दौरा कर चुके हैं।

तिहाड़ जेल से छूटने के बाद मैं टिकरी बॉर्डर और सिंघू बॉर्डर गया हूं। मैंने एक सप्ताह तक टिकरी सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में भाग लिया और फिर अपने गाँव वापस आ गया। मैं विरोध का हिस्सा बना रहूंगा. पुलिस हो या आपराधिक आरोप, कोई भी मुझे नहीं रोक सकता. यह लड़ाई हमारी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षि करने के लिए है.
जोगिंदर सिंह, प्रदर्शनकारी किसान

जोगिंदर ने कहा कि उनके साथ गिरफ्तार किए गए कुछ अन्य किसान जेल से छूटने के बाद धरने में शामिल हुए हैं. लेकिन साथ ही साथ वे अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर परेशान हैं. उन्हें फिर से पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने का डर भी सता रहा है.

गिरफ्तार किए गए लोग किसान हैं। वे अपने और अपने परिवार के लिए डरे हुए हैं। वे जानते हैं कि अंत में उन्हें अदालत से बरी कर दिया जाएगा लेकिन इससे पहले उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी होगी।
किरणजीत शेखों, वरिष्ठ अधिवक्ता
रूट बदलकर लाल किले तक पहुंची थी किसानों की ट्रैक्टर रैली(फोटो: क्विंट हिंदी)

मामलों की स्थिति क्या है?

हिंसा मामले में दर्ज 25 FIR में सभी आरोपियों को कानूनी सहायता देने के लिए वकीलों की एक टीम बनाई गई थी ताकि 151 आरोपियों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जा सके. हिंसा के महीनों बीत जाने के बाद मामले की अभी क्या स्थिति है. जानने के लिए क्विंट हिन्दी ने कुछ वकीलों से बात की.

इन 25 FIR में प्रदर्शनकारी किसानों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जैसे कि हत्या की कोशिश, दंगा करने और सरकारी काम में बाधा डालना शामिल है. ट्रैक्टर रैली के दौरान भड़की हिंसा को नियंत्रित करने में दिल्ली पुलिस के 400 कर्मी घायल हुए थे. दिल्ली पुलिस ने तब दावा किया था कि वह दोषियों को पकड़ने के लिए चेहरे की पहचान तकनीक का इस्तेमाल सबूत के तौर पर करेगी.

अगर चेहरे की पहचान तकनीक के आधार पर गिरफ्तारियां की गईं, तो पुलिस ने अभी तक चार्जशीट के साथ यह सबूत कोर्ट में क्यों नहीं दाखिल किया?

किसानों की ओर से नाम न छापने की शर्त पर एक वकील ने कहा कि कानूनी तौर पर, एक व्यक्ति को जमानत मिल सकती है. अगर गिरफ्तारी से साठ दिनों के अंदर जांच एजेंसी आरोप पत्र दाखिल नहीं कर पाती है तो. और यही एक कारण है कि इस घटना में कई लोगों को जमानत मिल गई.

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चार्जशीट दाखिल करने के बाद भी पुलिस मामले को मजबूती से नहीं रख पाएगी. कारण, चार्जशीट में सबूतों का अभाव. जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनमें ज्यादातर किसान हैं। चार्जशीट दाखिल होने के बाद बहुत कम मामलों की सुनवाई होगी।
किसान के वकील

'चार्जशीट में देरी से न्याय में देरी'

गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसान(फाइल फोटो: IANS)

किसानों के वकील ने आगे कहा कि जमानत की सुनवाई के दौरान अदालत ने उन लोगों पर कड़ा संज्ञान लिया, जिन्हें आईपीसी की धारा 149 के तहत गिरफ्तार किया गया था, यानी लाल किले की हिंसा के दौरान अवैध रूप से जमा होना। अदालत ने कहा कि पुलिस को हिंसा में आरोपियों की भूमिका साबित करनी है और केवल उनकी मौके पर मौजूदगी ही उन पर आईपीसी की धारा 149 के तहत आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.

वकील बताते हैं कि चार्जशीट में देरी एक बड़ी बाधा है क्योंकि वे अगला कानूनी कदम उठाने में असमर्थ हैं.

एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद, हम निश्चित रूप से उन मामलों पर फैसला करेंगे जो रद्द करने योग्य हैं. चार्जशीट का मतलब है कि उस मामले में पुलिस की जांच खत्म हो गई है. फिर यह साबित करना आसान हो जाता है कि किसी विशेष मामले को क्यों रद्द किया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने तक बचाव पक्ष कोई कानूनी कदम नहीं उठा सकता है.
किसान के वकील

25 प्राथमिकी में से एक प्राथमिकी समयपुर बादली पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी, जिसमें दर्शन पाल, योगेंद्र यादव समेत 35 किसान नेताओं के नाम शामिल हैं.

किसान नेताओं के खिलाफ एफआईआर में कोई प्रगति नहीं हुई है। न गिरफ्तारी, न चार्जशीट। इनमें से किसी से भी पुलिस ने पूछताछ नहीं की है।
किरणजीत शेखों, वरिष्ठ अधिवक्ता
आंदोलन करते किसान फोटो: क्विंट हिंदी

गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली करने के लिए तय नियमों और शर्तों का उल्लंघन करने पर दिल्ली पुलिस ने 27 जनवरी को 40 किसान नेताओं को नोटिस जारी किया था. जिसपर किरणजीत शेखों ने कहा कि सभी किसान नेताओं की तरफ से दिल्ली पुलिस के नोटिस का जवाब दाखिल किया गया है. फिलहाल पुलिस की तरफ से अभी कोई रिप्लाई नहीं आया है.

कुछ प्रदर्शनकारियों पर हत्या की कोशिश जैसे गंभीर आरोपों पर बोलते हुए शेखों ने कहा कि सिर्फ हत्या की धारा के तहत मामला दर्ज करने से कोई दोषी नहीं हो जाता.

हत्या की कोशिश को साबित करने के लिए, पुलिस को यह साबित करना होगा कि उस व्यक्ति पर हमला करने के इरादे से उसके हाथ में हथियार या कोई चीज थी. पुलिस किसी भी प्राथमिकी में इस तरह के सबूत पेश नहीं कर पाई है. इस कमी के चलते लोगों को कोर्ट से जमानत मिल गई.
किरणजीत शेखों, वरिष्ठ अधिवक्ता

शेखों ने कहा कि आपराधिक मामला कुछ किसानों के लिए मानसिक प्रताड़ना का कारण बन रहा है लेकिन उनके पास लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. दिल्ली पुलिस ने जो सबूत पेश किए हैं उससे उनकी जांच पर कई सवाल खड़े होते हैं. क्योंकि महीनों बीत जाने के बाद भी दिल्ली पुलिस अब तक सिर्फ एक मामले में चार्जशीट दाखिल कर पाई है? आखिर क्यों, 24 और मामलों में पुलिस चार्जशीट नहीं दाखिल कर पा रही है? क्या पुलिस हिंसा मामले में सबूत नहीं जुटा पा रही? क्या दिल्ली पुलिस हिंसा की जांच में नाकाम साबित हो रही है?

पूरे मामले पर दिल्ली पुलिस का पक्ष जानने के लिए सम्पर्क किया गया है. जब भी हमें पुलिस पक्ष का जवाब मिलता है तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 13 Jul 2021,06:51 AM IST

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