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क्या आप सपने में भी दो हाथी के बच्चों को उठाने के बारे में सोच सकते हैं?... नहीं ना, लेकिन 24 साल के 'द ग्रेट गामा' ने दो हाथी तो नहीं, लेकिन 1,200 किलो वजन का पत्थर उठाकर पहलवानी की दुनिया में नया कीर्तिमान रच दिया था. ज्यादा हैरानी की बात ये थी कि इसी पत्थर को उठाने के लिए एक, दो, दस नहीं, पूरे के पूरे 25 लोग लगे थे.
गामा का जन्म पंजाब के अमृतसर में 22 मई, 1878 को एक कश्मीरी परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम गुलाम मोहम्मद था. उन्हें रेसलिंग की दुनिया में 'द ग्रेट गामा' के नाम से जाना जाने लगा. गामा के पिता मोहम्मद अजीज बख्श एक जाने-माने रेसलर थे.
पिता की मौत के बाद गामा को दतिया के महराजा ने गोद लिया और उन्हें पहलवानी की ट्रेनिंग दी. पहलवानी के गुर सीखते हुए गामा ने महज 10 साल की उम्र में ही कई महारथियों को धूल चटा दी थी. करीब 50 सालों तक उन्होंने बिना हारे पहलवानी में एक से बढ़कर एक मिसालें पेश कीं.
1910 का वो दौर था, जब दुनिया में कुश्ती में अमेरिका के जैविस्को का बड़ा नाम हुआ करता था . लेकिन गामा ने उन्हें भी परास्त कर अपनी ताकत पूरी दुनिया को दिखा दी थी. गामा को हराने वाला पूरी दुनिया में कोई नहीं था, इसीलिए उन्हें वर्ल्ड चैम्पियन का खिताब मिला था. गामा ने अपने जीवन में देश और विदेश में 50 नामी पहलवानों से कुश्ती लड़ी और सभी को धूल चटाकर सारे खिताब अपने नाम किए.
गामा अपनी ट्रेनिंग और डाइट का पूरा खयाल रखते थे. कहा जाता है कि गामा की खुराक में एक वक्त 7.5 किलो दूध और उसके साथ 600 ग्राम बादाम हुआ करता था. दूध भी 10 किलो उबाल कर 7.5 किलो किया जाता था.
वैसे तो गामा पहलवान कई देशों में अपनी कुश्ती का झंडा गाड़ चुके थे, लेकिन 1910 में वो अपने रेसलर भाई इमाम बख्श के साथ लंदन पहुंचे, जहां उन्हें इंटरनेशनल चैंपियनशिप में भाग लेने से मना कर दिया गया. लेकिन गामा ने ओपन चैलेंज दिया कि वो किसी भी पहलवान को पराजित कर सकते हैं और फिर उन्होंने अमेरिकी चैंपियन बेंजामिन रोलर को सिर्फ 1 मिनट, 40 सेकंड में ही चित कर दिया.
1895 में गामा का मुकाबला देश के सबसे बड़े पहलवान रुस्तम-ए-हिंद रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ था. रहीम की लंबाई 6 फुट 9 इंच थी, जबकि गामा सिर्फ 5 फुट 7 इंच के थे, लेकिन उन्हें जरा भी डर नहीं लगा. गामा ने रहीम से बराबर की कुश्ती लड़ी और आखिरकार मैच ड्रॉ हुआ. इस लड़ाई के बाद गामा पूरे देश में मशहूर हो गए.
वैसे तो गामा पहलवान कई देशों में अपनी कुश्ती का झंडा गाड़ चुके थे, लेकिन 1910 में वो अपने रेसलर भाई इमाम बख्श के साथ लंदन पहुंचे, जहां उन्हें इंटरनेशनल चैंपियनशिप में भाग लेने से मना कर दिया गया. लेकिन गामा ने ओपन चैलेंज दिया कि वो किसी भी पहलवान को पराजित कर सकते हैं और फिर उन्होंने अमेरिकी चैंपियन बेंजामिन रोलर को सिर्फ 1 मिनट, 40 सेकंड में ही चित्त कर दिया.
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त गामा अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए थे. वहां वो हिंदू समुदाय के साथ रहते थे. युद्ध के बाद जब सीमा पर तनाव पैदा हुआ, तो गामा ने हिंदुओं के जीवन को बचाने की कसम खाई.
जब भीड़ ने लोगों पर हमला किया, तो वो हिंदुओं को बचाने के लिए वो ढाल बनकर उनके साथ खड़े रहे. गामा अपने पहलवानों के साथ हिंदुओं की रक्षा में खड़े हो गए थे, जिसके बाद किसी ने भी हिंदुओं पर हमला करने की हिम्मत नहीं की.
गामा ने सभी भारतीयों के खाने-पीने के सामान के साथ कई दिनों तक रहने की व्यवस्था की और आखों में नमी के साथ उन सभी को पूरी सुरक्षा के साथ भारत रवाना किया.
गामा को खर्च के लिए देश के बड़े कारोबारी जीडी बिड़ला उन्हें हर महीने 2 हजार रुपये भेजा करते थे, वहीं ये भी कहा जाता है कि पकिस्तान की सरकार भी उनको पेंशन दिया करती थी. उन्हें भारत सरकार की तरफ से जमीन दी गई थी.
बड़े-बड़े पहलवानों को रिंग में चित करने वाला 'दुनिया का सबसे बड़ा पहलवान' दिल की बीमारी के कारण अपनी जिंदगी हार गया. गामा ने अपने 82वें जन्मदिन के ठीक एक दिन बाद 23 मई, 1960 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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