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देश में ऐसे युवकों की तादाद लाखों में है, जो 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद मेडिकल कॉलेजों में दाखिला चाहते हैं. इन मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में दाखिले एंट्रेस टेस्ट के आधार पर दिए जाते हैं. इस टेस्ट का दायरा और नेचर कैसा हो, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आदेश जारी किया है.
मुश्किल यह है कि केंद्र व कुछ राज्य सरकारें अदालत के इस आदेश से अलग राय रखती हैं. केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आंशिक तौर पर रोक लगाने के लिए एक अध्यादेश लेकर आ गई है. यही वजह है कि इस पर विवाद बढ़ता जा रहा है. इस विवाद से जुड़ी खास-खास बातें इस तरह हैं:
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल को आदेश दिया था कि देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले एक कॉमन एन्ट्रेंस टेस्ट के जरिए होंगे. इसे नेशनल एलिजिबिलिटी कम एन्ट्रेंस टेस्ट (एनईईटी) नाम दिया गया है. इसके तहत पहला टेस्ट 1 मई को हो चुका है, जबकि दूसरे दौर का टेस्ट 24 जुलाई को होना है.
इस बीच, केंद्र सरकार ने एनईईटी को एक साल तक टालने के लिए 20 मई को एक अध्यादेश पर मुहर लगा दी. केंद्र का कहना है कि एनईईटी को लेकर कुछ राज्यों ने आपत्ति जाहिर की थी, जिसके बाद सरकार ने यह फैसला किया. हालांकि इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मुहर अभी बाकी है.
दरअसल, स्नातक स्तर पर मेडिकल कोर्स में दाखिला केवल एनईईटी के जरिए लेने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई राज्य सहमत नहीं थे. इन राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्य शामिल हैं.
इन राज्यों ने मुख्य रूप से तीन सवाल उठाए हैं. इनका पहला तर्क है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) एनईईटी केवल अंग्रेजी और हिन्दी माध्यम में कराएगी, जिससे उन छात्रों को नुकसान होगा, जो ऐसी परीक्षाएं अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाओं में देते हैं. मतलब साफ है. मान लें गुजरात का कोई छात्र अपने राज्य में गुजराती में मेडिकल एंट्रेस टेस्ट दे सकता है. महाराष्ट्र का स्टूडेंट अपने यहां मराठी में टेस्ट दे सकता है. ऐसे में अगर उन्हें केवल अंग्रेजी या हिंदी में टेस्ट देने को कहा जाए, तो उनका क्या होगा?
इन राज्यों का दूसरा तर्क है कि प्रवेश परीक्षा के लिए राज्य का सिलेबस सीबीएसई के सिलेबस से एकदम अलग है. इसलिए इस साल सीबीएसई का सिलेबस फॉलो करना उनके छात्रों के लिए मुश्किल होगा, क्योंकि वे राज्य के बोर्ड द्वारा तय पाठ्यक्रम से पढ़ाई करते हैं.
तीसरा तर्क है कि कई राज्यों में एंट्रेस टेस्ट कराए जा रहे हैं, ऐसे में एनईईटी को स्वीकार करना फिलहाल संभव नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के जबर्दस्त समर्थन और सरकार के अध्यादेश का जिस एक राज्य ने सबसे कड़ा विरोध किया, वह है दिल्ली. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का मानना है कि पूरे देश में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से मेडिकल कोर्स की गुणवत्ता में सुधार होगा. साथ ही दाखिले में पैसे के खेल पर लगाम सकेगी और भ्रष्टाचार बंद होगा. इस बारे में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है,
दूसरी ओर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा का कहना है कि एनईईटी के आयोजन को लेकर केंद्र सरकार को राज्यों के साथ और विचार-विमर्श करने की जरूरत है. नड्डा ने कहा,
केंद्र सरकार ने हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा 6 क्षेत्रीय भाषाओं- तमिल, तेलुगू, मराठी, गुजराती, बांग्ला और असमिया- में एनईईटी आयोजित कराने की संभावना पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी. इस बारे में सीबीएसई ने आशंका जताई की थी कि अंग्रेजी और हिन्दी के अलावा 6 क्षेत्रीय भाषाओं में सवाल का अनुवाद कराने से पेपर लीक हो सकते हैं. दूसरी ओर, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने अदालत से कहा कि चूंकि मेडिकल की किताबें अंग्रेजी के अलाव किसी अन्य भाषा में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए एनईईटी सिर्फ अंग्रेजी में ही होनी चाहिए.
एनईईटी-2 की परीक्षा 24 जुलाई को तय है. अगर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अध्यादेश पर दस्तखत कर देते हैं, तो राज्य बोर्ड के छात्रों को एक साल तक के लिए राहत मिल जाएगी. मामला कई राज्यों के छात्रों से जुड़ा है, ऐसे में विवाद अभी ठंडा पड़ने के आसार न के बराबर ही हैं.
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