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जस्टिस लोया की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है. पुनर्विचार याचिका बांबे लॉयर्स एसोसिएशन ने दायर की है. एसोसिएशन ने 19 अप्रैल के शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है.सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिनमें इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी.
जस्टिस लोया की 2014 में नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. वह वहां एक सहयोगी की बेटी के विवाह समारोह में हिस्सा लेने गए थे. बृजगोपाल लोया की मृत्यु 1 दिसम्बर 2014 में हुई थी. उस दौरान वे सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत गुजरात पुलिस के आला अधिकारियों के ख़िलाफ़ सुनवाई कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 19 अप्रैल को अपने फैसले में कहा था कि जस्टिस लोया की मौत 'स्वाभाविक वजहों' से हुई थी. अदालत के पास उनकी मौत के बारे में उपलब्ध सामग्री और मेडिकल रिकार्ड के मद्देनजर इसमें संदेह करने का कोई आधार नहीं है.
जस्टिस लोया बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ कांड की सुनवाई कर रहे थे. 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर को पुलिसने कथित मुठभेड़ में मार गिराया था. सोहराबुद्दीन मुठभेड़ के गवाह तुलसीराम प्रजापति की भी मौत हो गई थी. इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी नाम जुड़ा था. सुप्रीम कोर्ट ने केस महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया था. इस मामले की सुनवाई में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पेश न होने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. जस्टिस लोया की मौत के बाद जिन जज ने इस मामले की सुनवाई की, उन्होंने अमित शाह को मामले में बरी कर दिया था. मैगजीन कारवां ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि जस्टिस लोया की मौत साधारण नहीं थी बल्कि संदिग्ध थी. जिसके बाद से ही यह मामला दोबारा चर्चा में आया. लगातार इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी भी जारी रही थी.
जस्टिस लोया की बहन ने भी कहा था कि उनकी मौत स्वाभाविक नहीं थी. उन्हें मारा गया था. इसके पहले एक बयान में उनके परिवार ने कहा था कि जस्टिस लोया को सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ कांड अनुकूल फैसला देने के लिए 100 करोड़ रुपये रिश्वत की पेशकश की गई थी. हालांकि बाद में जस्टिस लोया के बेटे ने कहा था कि उनकी मौत स्वाभाविक थी और इसे राजनीतिक मुद्दा न बनाया जाए.
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