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भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का बृहस्पतिवार को जायजा लिया. आमतौर पर शांत मानी जाने वाली सीमा पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की आक्रामक गतिविधियों का असल मकसद भूटान में भारत के प्रभाव को सीमित करना औरसंवेदनशील उत्तर-पूर्व को असुरक्षित करता है. जनरल रावत विमान से बगरोटा गए और फिर उन्होंने भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच टकराव का जायजा लेने केलिए हेलीकॉप्टर से स्ट्रेटजिक लोकेशंस का दौरा किया.
सिक्किम की पूर्वी सीमा पर चीन के अप्रत्याशित प्रतिरोध की वजहों को समझने के लिए बीते एक हफ्ते के दौरान नॉर्थ और साउथ ब्लॉक में उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकों के कई दौर हो चुके हैं. चीन और सिक्किम के बीच 220 किलोमीटर लंबी सीमा मोटे तौर पर स्थापित हो चुकी मानी जाती है. सैन्य तनातनी की पिछली घटना नवंबर 2008 को हुई थी, जब पीएलए ने भारतीय सीमा के कुछ अस्थायी बंकरों को तोड़ दिया था.
हालांकि रक्षा अधिकारियों ने जनरल रावत की सिक्किम यात्रा को रुटीन यात्रा बताया है, लेकिन केंद्र सरकार संभवत: इसके बाद इस मसले पर बड़ा कदम उठा सकती है. दो दिन की यात्रा में सेना प्रमुख उत्तर-पूर्व की कई अग्रिम चौकियों की यात्रा और ऑपरेशनल तैयारियों की समीक्षा कर सकते हैं. चीन के साथ 3,488किलोमीटर लंबी सीमा का अधिकांश हिस्सा इसी क्षेत्र में पड़ता है.
• चीन की अचानक बढ़ी आक्रामकता के बाद नार्थ और साउथ ब्लॉक में कई दौर की उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकें हो चुकी हैं.
• भारत, भूटान और चीन के तिराहे पर पीएलए की हालिया गतिविधियों का मकसद दिल्ली पर सैन्य और राजनयिक दबाव डालना है.
• दोकलम पठार में चीन के सड़क बनाने की कोशिशों पर भारत का विरोध विवाद की बड़ी वजह है.
• चीन ने आरोप लगाया है कि उनके सड़क निर्माण में रुकावट डालने के लिए भारतीय सेना ने एलएसी पार की.
• विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की सिक्किम में कार्रवाइयां भारत की डोनाल्ड ट्रंप के साथ बढ़ती नजदीकियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया हैं.
इस विषय पर करीब से नजर रखने वाले कुछ विशेषज्ञों का ख्याल है कि भारत, भूटान, चीन के स्ट्रेटजिक तिराहे पर पीएलए की छिटपुट कार्रवाइयां मुख्यतः “नई दिल्ली को सबक सिखाने और लगातार सैन्य और राजनयिक दबाव में रखने के लिए की जा रही हैं.”
सबसे पहले तो यह कि, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मई को ऊपरी असम में 9.15 किलोमीटर (देश का सबसे बड़ा पुल) लंबे ढोला-सदिया पुल का उद्घाटन किया तो बीजिंग ने इस पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा था कि “यह चीन को सैन्य जवाब देने का एक स्ट्रेटजिक कदम है.”
दूसरी बात, स्ट्रेटजिक तिराहे पर दोकलम पठार में चीन के सड़क बनाने का भारत द्वारा विरोध, जो कि अब पूर्वी सिक्किम में एलएसी के करीब टकराव का मुख्यकारण बन चुका है.
तीसरी बात, बीजिंग दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश में तवांग के दौरे से भी नाराज है.
अपनी नाराजगी जताने के लिए पीएलए ने जून के पहले हफ्ते में लालटेन चौकी के करीब भारतीय सेना के दो बंकरों को गिराने के लिए हैवी अर्थ मूवर का इस्तेमाल किया. यह कथित रूप से भारतीय सेना के एलएसी को पार कर चीन के दोकलम पठार रोड के निर्माण में दखल देने का बदला लेने के लिए किया गया.
यह तय है कि चीन ऐसा समझता है कि नई सड़क के निर्माण पर भारत ने भूटान के कहने पर ऐतराज किया था. बीजिंग का मानना है कि पीएलए को नई सड़क बनाने से रोकने के लिए थिंफू ने भारत से मदद मांगी थी. यह सड़क पश्चिम भूटान के जोम पेलरी में उसकी छोटी सी सैन्य छावनी के बहुत करीब से जा रही थी.
कई दशकों से चीन भारत पर आरोप लगाता रहा है कि वह थिंफू में उसका दूतावास खोलने की अनुमति नहीं देने के लिए भूटान पर दबाव बनाता रहा है. इस समय भूटान में सिर्फ भारत और बांग्लादेश के दूतावास हैं और भूटान चीन से उसके दिल्ली दूतावास के माध्यम से संबंध रखता है.
चंबी घाटी जो कि एक खंजर के आकार का भूमि का टुकड़ा है, उत्तर पूर्व सिक्किम के बड़े हिस्से को भूटान से अलग करती है और उत्तरी बंगाल के ऊपर एक पालने जैसी है. इस इलाके में भारत और चीन के बीच दो मुख्य दर्रे- नाथू ला दर्रा और जेलेप दर्रा- खुले हुए हैं. चंबी घाटी में नई सड़क का निर्माण चीन को बहुत ज्यादा बढ़त दे देगा और युद्ध की स्थिति में वह पूरे उत्तर पूर्व को भारत से अलग कर सकेगा. अन्य क्षेत्रों से सेना भेजना भी मुश्किल हो जाएगा.
दबाव बढ़ाने के लिए चीन ने 20 जून को नाथू ला इमिग्रेशन प्वाइंट पर तिब्बत में कैलाश मानसरोवर जा रहे 50 तीर्थ यात्रियों को वापस भेज दिया है. नाथू ला सेकैलास मानसरोवर जाने का रास्ता 18 जून 2015 को खोला गया था. सिक्किम से यह नया रास्ता छोटा, सुरक्षित और ज्यादा आरामदायक है.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग का कहना है कि नाथू ला दर्रे से यात्रा निलंबित करने का फैसला “वहां की स्थिति को देखते हुए एक आपात फैसला है.” इस मामले में आश्चर्यजनक रूप से अभी तक साउथ ब्लॉक की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस विभाग में प्रोफेसर डॉ. राजेश देव का कहना है कि “पूर्वी सीमा पर पीएलए की हरकतें चीन की व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं. चीन की शुरू से ही प्राकृतिक और खनिज संसाधनों से भरपूर उत्तर पूर्व पर नजर रही है.”
डॉ. देव के अनुसार चीन एलएसी पर हमेशा अपनी खुराफाती हरकतों से भारत को तंग करता रहेगा. वह कहते हैं कि “अगर आप अपने दुश्मन को सीमा पर मुश्किल में उलझाए रखते हैं, तो राजनय की आधी लड़ाई जीत लेते हैं, और चीन इसमें माहिर है.”
डॉ. देव और कुछ अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि सिक्किम सीमा पर दुष्ट चीन की हरकतें और कुछ नहीं बस भारत के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के साथ भविष्य के सैन्य सहयोग को लेकर बढ़ती नजदीकियों पर फौरी प्रतिक्रिया है.
(अनिर्बान रॉय गुवाहाटी स्थित पत्रकार हैं और इन्होंने उत्तर पूर्व, नेपाल और भूटान में काम किया है. रॉय ने प्रचंड: द अननोन रिवोल्यूशनरी नाम की किताब लिखी है.इनसे @anirban1970 पर संपर्क किया जा सकता है.)
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