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रोहित वेमुला केस में एचआरडी मिनिस्ट्री की ओर से बनाए गए न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट के मुताबिक रोहित अपनी सुसाइड के लिए खुद जिम्मेदार था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज एके रूपनवाल की जांच में रोहित को यूनिवर्सिटी हॉस्टल से निकाले जाने को 'सबसे तार्किक' कदम बताया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी और केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने केवल अपनी जिम्मेदारी निभाई है. उनका हैदराबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन पर कोई दबाव नहीं था. रूपनवाल ने अपनी जांच रिपोर्ट अगस्त में जमा कर दी थी.
रोहित वेमुला ने 17 जनवरी को आत्महत्या की थी. 28 जनवरी 2016 को मानव संसाधन मंत्रालय ने मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था. रोहित की आत्महत्या के बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय समेत पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए थे.
रूपनवाल ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए 50 से ज्यादा लोगों से बात की, जिनमें से ज्यादातर यूनिवर्सिटी के टीचर, अधिकारी और अन्य कर्मचारी थे. पूर्व न्यायाधीश ने विश्वविद्यालय के पांच छात्रों और परिसर में आंदोलन चलाने वाली जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्यों से भी मुलाकात की.
रूपनवाल ने रोहित वेमुला की जाति की भी विस्तृत से जांच की. उन्होंने रिपोर्ट में 12 पन्नों के अपने निष्कर्ष में चार पन्नों में रोहित की जाति के बारे में जानकारी दी है. रोहित वेमुला का पालन-पोषण उनकी मां वी राधिका ने किया था. रिपोर्ट में इसकी पड़ताल की गई कि क्या राधिका माला समुदाय (दलित) से हैं या नहीं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर राधिका को उसके जन्म देने वाले माता-पिता का नाम नहीं बताया गया था, तो उन्हें कैसे पता चला कि वो माला जाति की हैं? रिपोर्ट के अनुसार, रोहित वेमुला का जाति प्रमाणपत्र पूरी जांच किए बिना दिया गया था और चूंकि उनकी मां माला समुदाय से नहीं आतीं, इसलिए उनका जाति प्रमाणपत्र सही नहीं था.
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