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राष्ट्रपति समेत देश के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों की सैलरी में सुधार के लिए बजट में खाका पेश किया गया है. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की सैलरी को बढ़ाकर क्रमश: 5 लाख और 4 लाख रुपये प्रतिमाह करने का प्रस्ताव किया गया है. राज्यपालों का वेतन 3.5 लाख रुपये प्रतिमाह होगा. इसी तरह सांसदों की सैलरी महंगाई के मुताबिक हर 5 साल में रिवाइज होगी.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संसद में पेश 2018-19 के बजट भाषण में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों का वेतन बढ़ाने की घोषणा की. इससे पहले इनके वेतन में बढ़ोतरी 1 जनवरी, 2006 को की गई थी.
लोकसभा में मेजों की थपथपाहट के बीच जेटली ने कहा:
फिलहाल राष्ट्रपति को डेढ़ लाख, उपराष्ट्रपति को सवा लाख और राज्यपालों को 1.10 लाख रुपये प्रतिमाह सैलरी दी जाती है. अभी तक राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों को ऊंचे पदों पर बैठे नौकरशाहों के मुकाबले कम वेतन मिल रहा था.
दो साल पहले सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से पैदा हुई इन विसंगतियों को दूर के करने के लिए कानून में जरूरी संशोधन नहीं किए गए थे.
खास बात ये है कि देश के राष्ट्रपति थल, जल और वायुसेना के सुप्रीम कमांडर भी होते हैं, जबकि उनका वेतन अभी तीनों सेना प्रमुखों से कम है.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने महंगाई के मुताबिक, हर 5 साल में सांसदों की सैलरी में संशोधन के लिए एक कानून का प्रस्ताव रखा है. जेटली ने अपना पांचवां बजट पेश करते हुए कहा कि संसद सदस्यों को भुगतान की जाने वाली राशि पर सार्वजनिक बहस हुई थी. सांसदों को खुद अपना वेतन तय करने की इजाजत देने वाली मौजूदा व्यवस्था की निंदा की गई थी.
जेटली ने कहा:
जेटली ने कहा कि इस कानून के तहत महंगाई के मुताबिक, हर 5 साल में सांसदों के वेतन में स्वत: संशोधन हो जाएगा. एक सांसद की सैलरी में प्रतिमाह 50,000 रुपये का मूल वेतन, 45 हजार रुपये निर्वाचन भत्ते के अलावा अन्य लाभ शामिल हैं. सरकार लगभग 2.7 लाख रुपये प्रतिमाह हर सांसद पर खर्च करती है.
(इनपुट भाषा से)
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