Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019समलैंगिक विवाह का केंद्र ने फिर विरोध किया, कहा 'यह शहरी अभिजात्य विचार है'

समलैंगिक विवाह का केंद्र ने फिर विरोध किया, कहा 'यह शहरी अभिजात्य विचार है'

Same-sex marriage मामले में मंगलवार, 18 अप्रैल को पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी.

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>समलैंगिक विवाह की दलील 'शहरी अभिजात वर्ग के विचारों' को दर्शाती है-SC से केंद्र </p></div>
i

समलैंगिक विवाह की दलील 'शहरी अभिजात वर्ग के विचारों' को दर्शाती है-SC से केंद्र

(फोटो- अरूप मिश्रा/क्विंट हिंदी)

advertisement

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में रविवार, 16 अप्रैल को केंद्र सरकार ने एक बार फिर समान-लिंग विवाह को कानूनी मंजूरी देने का विरोध किया. केंद्र ने दायर की गई याचिकाओं को "सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य से केवल शहरी अभिजात्य विचार" करार दिया. केंद्र का यह बयान चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-जजों की बेंच द्वारा मंगलवार, 18 अप्रैल को समान-लिंग विवाह मामले में दलीलें सुनने के दो दिन पहले आया है.

केंद्र ने तर्क दिया कि अदालत द्वारा समान-लिंग विवाह के अधिकार को मान्यता देने का अर्थ "कानून की एक पूरी शाखा का आभासी न्यायिक पुनर्लेखन" होगा. इसके अलावा केंद्र ने कहा कि अदालत को इस तरह के सर्वव्यापी आदेश पारित करने से बचना चाहिए.

'हिंदू कानून की सभी शाखाओं में संस्कार'

केंद्र ने तर्क दिया कि समलैंगिक विवाह जैसी नई सामाजिक संस्था को बनाना या मान्यता देना विधायी नीति का विषय होना चाहिए और उपयुक्त विधायिका द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए. आगे कहा गया कि व्यक्तिगत स्वायत्तता के अधिकार में न्यायिक फैसले के जरिए समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अधिकार शामिल नहीं है.

इन कानूनों की मौलिक सामाजिक उत्पत्ति को देखते हुए, वैध होने के लिए किसी भी बदलाव को नीचे से ऊपर और कानून के माध्यम से आना होगा. एक बदलाव को जुडिशियल फिएट द्वारा मजबूर नहीं किया जा सकता है और परिवर्तन की गति का सबसे अच्छा न्यायाधीश खुद विधायिका है.
केंद्र, सुप्रीम कोर्ट में
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
सरकार ने आगे दावा किया कि समान-लिंग विवाह को मान्यता देने से प्रत्येक नागरिक के हितों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, और "अकेले विवाह की विषम संस्था" को कानूनी स्वीकृति देना LGBTQ+ समुदाय के खिलाफ भेदभाव नहीं था.

आवेदन में कहा गया कि पारंपरिक और सार्वभौमिक रूप से अपनाए गए सामाजिक-कानूनी रिश्ते जैसे विवाह, "भारतीय समाज का एक अहम हिस्सा है और वास्तव में हिंदू कानून की सभी शाखाओं में एक संस्कार माना जाता है. यहां तक कि इस्लाम में यह एक पवित्र कॉन्ट्रैक्ट है और एक वैध विवाह केवल एक बायोलॉजिकल पुरुष और एक बायोलॉजिकल महिला के बीच होता है.

'गांव की आबादी पर विचार करें'- सुप्रीम कोर्ट से केंद्र

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से जोर देते हुए कहा कि ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी के साथ-साथ धार्मिक संप्रदायों, व्यक्तिगत कानूनों और विवाह को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों की मान्यताओं पर विचार करना जरूरी है.

"जो याचिकाएं केवल शहरी अभिजात्य विचारों को दर्शाती हैं, उनकी तुलना विधायिका से नहीं की जा सकती है, जो एक व्यापक स्पेक्ट्रम के विचारों और आवाजों को दर्शाती है और पूरे देश में फैली हुई है."

सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच में मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस एसके कौल, रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. बेंच, मंगलवार को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई करने के लिए तैयार है.

उनमें से, केवल मुख्य न्यायाधीश पांच जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 2018 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को पढ़ा, जिससे समलैंगिकता को कम कर दिया गया.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT