Home News India "अदालत कानून नहीं बना सकती, ये संसद का अधिकार"- समलैंगिक विवाह पर क्या बोले CJI?
"अदालत कानून नहीं बना सकती, ये संसद का अधिकार"- समलैंगिक विवाह पर क्या बोले CJI?
Same Sex Marriage: "स्पेशल मैरिज ऐक्ट को खत्म नहीं कर सकते, लेकिन समलैंगिकों को पार्टनर चुनने का अधिकार है."
क्विंट हिंदी
भारत
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"अदालत कानून नहीं बना सकती, ये संसद का अधिकार"- समलैंगिक विवाह पर क्या बोले CJI?
(फोटोः क्विंट हिंदी)
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समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) की मान्यता से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इनकार कर दिया है. 5 जजों की बेंच में ये फैसला 3:2 से पास हुआ. यानी 3 लोग समलैंगिक विवाह के खिलाफ थे और 2 उसके समर्थन में थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के CJI ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता देना संसद का अधिकार है. अदालत कानून नहीं बना सकती, लेकिन उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है. स्पेशल मैरिज ऐक्ट को खत्म नहीं कर सकते, लेकिन समलैंगिकों को पार्टनर चुनने का अधिकार है. यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ तक जाता है.
सीजीआई चंद्रचूड़ ने कहा" अदालत कानून नहीं बना सकती, लेकिन उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है."
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सीजीआई ने कहा "समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता देना संसद का अधिकार. समानता वाले व्यक्तिगत संबंधों के मामले में अधिक शक्तिशाली व्यक्ति को प्रधानता प्राप्त होती है. अनुच्छेद 245 और 246 के तहत सत्ता में संसद ने विवाह संस्था में बदलाव लाने वाले कानून बनाए हैं.
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स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म नहीं कर सकते, लेकिन समलैंगिकों को पार्टनर चुनने का अधिकार है. यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ तक जाता है.
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यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है. स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा.
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अगर कोर्ट दूसरा दृष्टिकोण अपनाता है और स्पेशल मैरिज एक्ट में शब्द जोड़ता है तो यह संभवतः विधायिका की भूमिका होगी.
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स्पेशल मैरिज एक्ट की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है. कोर्ट को विधायी क्षेत्र में प्रवेश न करने के प्रति सावधान रहना चाहिए.
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हैट्रोसेक्शुअल लोगों को जो वैवाहिक अधिकार मिलते हैं, वहीं अधिकार समलैंगिक लोगों को मिलने चाहिए. अगर समलैंगिक कपल को ये अधिकार नहीं मिलता है तो ये मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा: CJI
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CJI ने आगे कहा "सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है."
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यदि राज्य पर सकारात्मक दायित्व लागू नहीं किए गए तो संविधान में अधिकार एक मृत अक्षर होगा.
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ये कहना कि समलैंगिकता और क्वियर लोग शहर में ही हैं, ये उन लोगों की पहचान को खारिज करता है जो अलग-अलग हिस्सों से आते हैं
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एक अंग्रेजी बोलने और कॉरपोरेट ऑफिस में काम करने वाला भी क्वियर हो सकता है और खेल में काम करने वाली महिला भी क्वियर हो सकती है
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एक-दूसरे के साथ प्यार-जुड़ाव महसूस करने की क्षमता हमें इंसान होने का एहसास कराती है