झारखंड (Jharkhand) के सम्मेद शिखर (Sammed Shikhar) को बचाने के लिए अनशन पर बैठे मुनि समर्थ सागर ने गुरुवार, 5 जनवरी को अपना शरीर त्याग दिया. सम्मेद शिखर को लेकर केंद्र सरकार ने भले ही जैन समाज की मांग मान ली हो लेकिन अपने इस तीर्थ स्थल को बचाने के लिए ऋषि-मुनि अनशन पर बैठे हैं. पिछले दिनों अनशन पर बैठे उदयपुर जिले के दिगंबर जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने अपना प्राण त्याग दिया था. आइए तस्वीरों के जरिए जानने की कोशिश करते हैं कि इस सम्मेद शिखर तीर्थ स्थल का जैन समाज के लिए इतना महत्व क्यों है, कि इसको बचाने लिए ऋषि मुनि शरीर त्याग रहे हैं.
झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित जैन समाज के पवित्र तीर्थस्थल पारसनाथ पहाड़ी सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल के रूप में घोषित किए जाने के बाद देश-विदेश में विरोध प्रदर्शनों शुरू हो गया. सरकार के इस फैसले के विरोध में और झारखंड के सम्मेद शिखर जी को बचाने के लिए दो मुनियों ने अपने शरीर त्याग दिए हैं.
(फोटोःट्विटर/Varun sr goyal)
झारखंड के सम्मेद शिखर को लेकर केंद्र सरकार ने तीन साल पहले के फैसले को वापस ले लिया है लेकिन अपने इस तीर्थ स्थल को बचाने के लिए आमरण अनशन पर बैठे दूसरे जैन मुनि का भी निधन हो गया. जयपुर के सांगानेर स्थित संघी जी जैन मंदिर में 3 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठे मुनि समर्थ सागर का गुरुवार की रात को निधन हो गया.
(फोटोःपंकज सोनी)
सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के विरोध में पिछले कुछ दिनों से जैन समुदाय आंदोलन कर रहा है. इसके खिलाफ कई जैन मुनियों ने आमरण अनशन भी शुरू कर दिया था. इसमें जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने मंगलवार को प्राण त्याग दिए थे. देह त्याग करने वाले दिगंबर जैन मुनि सुज्ञेय सागर उदयपुर जिले के थे.
(फोटोःपंकज सोनी)
झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित श्री सम्मेद शिखरजी को पार्श्वनाथ पर्वत भी कहा जाता है. और ये जैनियों का पवित्र तीर्थ है. जैन समुदाय से जुड़े लोग सम्मेद शिखरजी के कण-कण को पवित्र मानते हैं.ये जगह लोगों की आस्था से जुड़ी हुई है. बड़ी संख्या में हिंदू भी इसे आस्था का बड़ा केंद्र मानते हैं. जैन समुदाय के लोग सम्मेद शिखरजी के दर्शन करते हैं और 27 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले मंदिरों में पूजा करते हैं.
(फोटोः पंकज सोनी)
जैन धर्म के अनुयायियों के मुताबिक जैन धर्म के 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत जी ने मोक्ष की प्राप्ति पार्श्वनाथ पर्वत पर की थी. यहीं पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था. इसलिए ये जैन समुदाय के लिए पूज्यनीय स्थान है. कहा जाता है कि इस तीर्थ स्थल की एक बार यात्रा करने से मनुष्य मृत्यु के बाद पशु योनि में जन्म नहीं होता और ना ही नर्क की यातना को सहना पड़ता है.
फोटोः इंस्टाग्राम/ ransinghbjp)
भौगोलिक दृष्टि से देखें तो ये झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है, जिसे आमतौर पर पारसनाथ पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. इसकी ऊंचाई एक हजार 350 मीटर है और इसे झारखंड का हिमालय के रूप में भी जाना जाता है. इस पहाड़ी की तराई में स्थित कस्बे को मधुवन के नाम से जाना जाता है.
(फोटोः इंस्टाग्राम/ rsdadhiya20)
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23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के नाम पर इस स्थान का नाम पारसनाथ पड़ा. यह 'सिद्ध क्षेत्र' कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात 'तीर्थों का राजा' कहा जाता है. यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं.
(फोटोः इंस्टाग्राम/yeshwant goyal)
वे मधुवन में स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ पहाड़ी की चोटी यानी शिखर पर वंदना करने पहुंचते हैं. मधुवन से शिखर यानी पहाड़ी की चोटी की यात्रा लगभग 9 किलोमीटर की है. जंगलों से घिरे इस पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं.
(फोटोः फेसबुक/ Sammed Shikharji)
केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ पहाड़ी के एक भाग को वन्य जीव अभयारण्य और इको सेंसेटिव जोन घोषित किया था, जबकि झारखंड सरकार झारखंड सरकार ने इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया. जिसके बाद इसे लेकर विवाद शुरु हो गया.
(फोटोः इंस्टाग्राम/ jaincommunity)
जैन समुदाय का कहना है कि, पर्यटन स्थल घोषित होने से इस पूज्य स्थान की पवित्रता भंग होगी. यहां लोग पर्यटन की दृष्टि से आएंगे तो मांस भक्षण और मदिरा पान जैसी अनैतिक गतिविधियां बढ़ेंगी और इससे अहिंसक जैन समाज की भावना आहत होगी और जैन धर्म में इसकी इजाजत नहीं है. इसलिए इसे तीर्थस्थल रहने दिया जाए.
(फोटोः इंस्टाग्राम/giriraj gambhir)
जैन धर्मावलंबियों ने इसके विरोध में मौन प्रदर्शन किया और मांग की कि जो केंद्र और राज्य की सरकारों ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने का जो नोटिफिकेशन जारी किया है उसे वापस लिया जाए.
(फोटोःपंकज सोनी)
सरकार के इसी फैसले के विरोध में कई जैन मुनियों ने आमरण अनशन भी किया, इसमें जैन मुनि सुज्ञेयसागर ने मंगलवार को प्राण भी त्याग दिए थे.
(फोटोः फेसबुक/ Sammed Shikharji)
इसके बाद केंद्र सरकार ने गुरुवार को तीन साल पुराने इस आदेश को वापस ले लिया है. लेकिन जयपुर के सांगानेर स्थित संघी जी जैन मंदिर में 3 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठे मुनि समर्थ सागर का गुरुवार की रात को निधन हो गया.