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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
फरीदाबाद के सफाईकर्मचारी 52 वर्षीय सुभाष ने पूछा, “हमारे पैर धोने का क्या मतलब है?” सुभाष की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था जब वो 2017 में हुए एक एक्सीडेंट के बारे में बता रहे थे. इस एक्सीडेंट में सुभाष मैनहोल की सफाई करते वक्त बेहोश हो गए थे.
सुभाष को याद है कि जब वो सफाई के बाद वापस ऊपर चढ़ रहे थे, तो उन्होंने ऊपर खड़े व्यक्ति को बाल्टी पकड़ने के लिए दिया और तभी अचानक सुभाष चक्कर खाकर गिर पड़े.
सुभाष के पास मौजूद लोगों को लगा कि उन्हें हीट स्ट्रोक आया है. वो उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक पिलाने लगे. तबीयत खराब होने पर सुभाष को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां आईसीयू में 26 दिनों तक उनका इलाज चला.
हाल ही में प्रयागराज में प्रधानमंत्री मोदी के सफाईकर्मियों के पैर धोने से सुभाष खुश नहीं हैं.
बीना बचपन से सफाईकर्मी के तौर पर काम कर रही हैं. वो और उनके दो भाई दिल्ली के रोहिणी में सड़क साफ और कूड़ा बीनने का काम करते थे.
कभी-कभी, जब इलाके में गटर जाम हो जाता था, तो उनके भाइयों से मैनहोल की सफाई के लिए कहा जाता था. 1990 में ऐसे एक हादसे में बीना ने अपने भाई खो दिए.
40 साल के राजेश बीकानेर के प्रिंस बिजय सिंह मेमोरियल अस्पताल में पिछले 15 सालों से सफाईकर्मी के तौर पर काम कर रहे हैं. अस्पताल को साफ करने के अलावा, राजेश अस्पताल में इस्तेमाल में आने वाली लिनेन को भी साफ करते हैं. अधिकतर ऑपरेशन थियेटर में इस्तेमाल में आने वालीं ये लिनेन खून के दागों से भरी होती हैं.
इस काम के लिए राजेश को कॉन्ट्रैक्टर से केवल 225 रुपये रोजाना मिलते हैं.
25 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए विरोध प्रदर्शन में हजारों सफाईकर्मियों ने हिस्सा लिया. इसमें हिस्सा लेने राजेश बीकानेर से आए और कॉन्ट्रैक्टरों के शोषण से बचाने के लिए सरकार से गुजारिश की.
क्विंट से बात करते हुए स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने सफाईकर्मचारियों के ट्रैक रिकॉर्ड पर कहा "मोदी सरकार के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं है."
राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पंजाब से आए सफाईकर्मियों के लिए अगर सरकार सुनिश्चित करती है कि उनसे अछूत की तरह नहीं व्यवहार किया जाएगा, तो शायद उन्हें उससे बोझ से छुटकारा मिलेगा जो वाल्मीकि समुदाय के ये लोग सालों से उठाते आ रहे हैं.
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