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प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (Varanasi) में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के विचारों और उनकी स्मृतियों को कुचलने का आरोप जिला प्रशासन पर लग रहा है. इसके विरोध में लगभग 70 दिनों तक आंदोलन और सत्याग्रह हुए लेकिन प्रशासन टस से मस नहीं हुआ.
आखिरकार गांधी, विनोबा, जेपी और लोहिया से जुड़ी संस्था "सर्व सेवा संघ" (Sarva Seva Sangh) के 23 कमरों से उनकी स्मृतियों को निकालकर जिला प्रशासन ने मुख्य गेट पर ताला जड़ दिया है. विरोध कर रहे आठ लोगों को जेल भेजा गया तो दूसरी ओर लाखों किताबें खुले आसमान के नीचे पड़ी रहीं.
महात्मा गांधी समेत कई महापुरुषों की दुर्लभ तस्वीरें भी जमीन पर पड़ी धूल फांक रही थीं. बाद में इस संपत्ति को नागेपुर भेजा गया.
उधर, प्रशासन की क्रूरता की मार बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे झेल रहे हैं. लेकिन गांधीवादियों का आंदोलन अभी थमा नहीं है. क्विंट हिंदी ने इस संबंध में सामाजिक विश्लेषकों और गांधीवाद से जुड़े लोगों से बातचीत की है.
सर्व सेवा संघ के लगभग 14 विंग हैं. ये अलग-अलग कार्य संभालती हैं. इन्हीं में एक अखिल भारतीय सर्वोदय मंडल है. इसके पूर्वी यूपी के वाराणसी कार्यालय अध्यक्ष डॉ. सौरभ सिंह ने बताया की एक लिखित शिकायत पर प्रशासन ने संज्ञान लेते हुए संघ की जमीन को रेलवे के नाम कर दिया.
"हम 70 सालों से इस जगह पर रह रहे हैं. 15 मई से 22 जुलाई के अंदर हमें यहां से उखाड़ फेंका गया. लगभग 2 माह पहले मोइनुद्दीन नाम का एक व्यक्ति रेलवे को चिट्ठी लिखता है कि सर्व सेवा संघ जिस जमीन पर है वह रेलवे की है. उसका स्थाई पता और मोबाइल नंबर अज्ञात है. अचानक रेलवे इसकी सुध लेता है और एसडीएम कोर्ट में वाद दायर करता है."
डॉ. सौरभ सिंह ने क्विंट हिंदी से कहा, "दो दिन के बाद डीएम साहब ने भी हमारे खिलाफ आदेश पारित कर दिया और अचानक से पुलिस और प्रशासन की टीम ने आकर अफरातफरी मचाई और हमारे जगह पर कब्जा कर लिया."
डॉ. सौरभ सिंह ने क्विंट हिंदी से कहा कि, "प्रशासन की 22 जुलाई की निष्कासन की कार्यवाही के बाद करोड़ों की किताबें कूड़े का अंबार बन गईं और देखते ही देखते सर्व सेवा संघ के 40 परिवार के लगभग डेढ़ सौ लोग सड़क पर आ गए."
बता दें की सन 2003 में वाराणसी जिलाधिकारी का ऑर्डर सर्व सेवा संघ के पक्ष में है. उसमें लिखा है की ये जमीन सर्व सेवा संघ की है. संघ का दावा है कि इस जमीन को विनोबा भावे और विवेकानंद ने तय मूल्य के हिसाब से भारतीय स्टेट बैंक के अकाउंट में पैसा देकर रेलवे से खरीदा है.
डॉक्टर सौरभ ने आरोप लगाया कि सरकार और सरकारी मशीनरी गांधी के विरासत के खिलाफ हो गई है. "ऐसे में इस जमीन को भी किसी प्रोजेक्ट के हवाले करने की मंशा होगी. अब किसी जांच के लिए कहने में भी डर लगता है. कई बार मोइनुद्दीन से मिलने की बात कही गई लेकिन प्रशासन ने उसे सामने नहीं लाया. ऐसा लगता है कि मोइनुद्दीन के नाम पर एक षड्यंत्र रच कर सर्व सेवा संघ को हटाने की साजिश रची गई."
वाराणसी के राजघाट इलाके में लगभग 13 एकड़ भूमि पर हरा- भरा "सर्व सेवा संघ" का भवन है. इसमें 40 परिवारों के लगभग 150 लोग रहते थे. अब यहां कोई नहीं रहता. जिला प्रशासन और पुलिस की कथित क्रूरता ने इन्हें जबरन बेघर कर दिया है.
बता दें की महात्मा गांधी के विचारों और मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए "सर्व सेवा संघ" की स्थापना सन 1948 में सेवाग्राम (वर्धा, महाराष्ट्र) में हुई. संघ का विस्तार हुआ तो वर्ष 1960 में वाराणसी के राजघाट इलाके में सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई.
लगभग 2000 किताबें यहां से छपी हैं, जिनके टाइटल हैं.
संघ का दावा है कि लगभग 63 वर्ष पहले यह जमीन रेलवे से खरीदी गई थी. लेकिन रेलवे ने संघ पर कूट रचना कर कागजात तैयार करने का आरोप लगाते हुए कोर्ट में वाद दाखिल किया था, इसके बाद हाईकोर्ट ने संघ की जमीन का स्वामित्व तय करने के लिए पिछले दिनों डीएम को निर्देशित किया था.
वाराणसी के जिलाधिकारी एस राज लिंगम ने रेलवे के दावे को सही माना और कब्जा हटाने का आदेश दे दिया. इसके बाद रेलवे ने संघ परिसर के सभी भवनों को खाली करने के लिए नोटिस चस्पा किया.
इसके विरोध में सर्व सेवा संघ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन बात न बनी. गांधी की विरासत को बचाने के लिए लगभग 63 दिनों तक यहां सत्याग्रह भी हुआ. इसमें गांधी विचार से प्रेरित लोगों ने भाग लिया लेकिन प्रशासन ने किसी की न मानी और बलपूर्वक इसे खाली करा दिया गया.
राजघाट की 13 एकड़ जमीन को भले ही प्रशासन द्वारा खाली करा दिया गया हो, लेकिन यहां गांधी और विनोबा की यादें है. परिसर में सर्व सेवा संघ प्रकाशन, गांधी विद्या संस्थान, साधना स्थल, गांधी स्मारक, जेपी प्रतिमा और आवास, वाचनालय, औषधालय, बालवाड़ी, अतिथि गृह, चरखा प्रशिक्षण केंद्र और डाकघर हैं. कभी यहां गांधी के विचार से प्रेरित लोगों का जुटान होता था. आचार्य विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण और अंतरराष्ट्रीय स्कॉलर शूमाकर जैसी हस्तियां भी यहां आ चुकी हैं.
राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ को खाली कराने पहुंची पुलिस और प्रशासन की टीम को विरोध का सामना भी करना पड़ा. 45 कमरों को खाली कराने के लिए 22 घंटे चली कार्रवाई में 23 कमरे खाली कर रेलवे ने अपना ताला जड़ा.
पुलिस ने मौके पर विरोध कर रहे रामधीरज, सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदन पाल, अरविंद अंजूमन, लोक समिति के नंदलाल मास्टर, गाजीपुर के ईश्वरचंद्र, मऊ के अनोखे लाल, सर्वोदय मंडल यूपी के महामंत्री राजेंद्र मिश्र और जितेंद्र को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.
बाद में इनकी जमानत हुई और ये बाहर आ गए. हालांकि जेल भेजने के विरोध में संघ बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों ने प्रतिवाद मार्च भी निकाला था. गांधी निधि नई दिल्ली के अध्यक्ष रामचंद्र राही ने इस कार्रवाई की आलोचना कर न्यायालय की अवमानना बताया.
राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ के सर्वोदय प्रकाशन की 5 लाख पुस्तकें और महापुरुषों की तस्वीरें कमरे से निकालकर पुलिस और प्रशासन ने गांधी स्मारक के चबूतरे पर रखवा दी थी. वहीं धरना स्थल पर लगे बैनर पोस्टर और टेंट भी तत्काल हटा दिए थे. बाद में सर्व सेवा संघ प्रकाशन से निकली लाखों किताबों को नागेपुर में रखवाया गया है.
राजनीतिक विचारक लेनिन रघुवंशी ने कहा कि गांधी के विचारों को कुचलना ठीक नहीं. ऐसा लगता है की एक पार्टी जबरन गांधी के विरासत को नष्ट करने पर पूरा बल दे रही है. राजघाट में बना सर्व सेवा संघ भवन जिस तरीके से प्रशासन के द्वारा खाली कराया गया, समझ से परे है.
सर्व सेवा संघ के 13 एकड़ भूमि पर इतिहास को मिटाकर कौन सा इतिहास बनाने की तैयारी है, इसको भी बताया नहीं गया. जिन लोगों का देश की आजादी में खून पसीना लगा था, उनकी स्मृतियां जमीन पर धूल फांक रही हैं यह देश का अपमान है. लेनिन कहते हैं की वर्तमान में गांधी के विचारों से प्रेरित लोगों में शिथिलता आई है. ऐसा न होता तो सर्व सेवा संघ को खाली कराना सामान्य बात नहीं, देश में बड़ा आंदोलन हो सकता था.
पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय ने कहा कि सर्व सेवा संघ जैसी संस्था को फर्जी बताना और गुंडई के दम पर जबरन कब्जा करना एक विशेष पार्टी का चरित्र बन गया है. गांधी और विनोबा के इतिहास को कुचल कर भारतीय जनता पार्टी क्या करना चाहती है, समझ से परे है. यह जमीन किसी रेलवे स्टेशन के पास नहीं है, इस कारण मुझे यकीन है को इसे भी बेचने की तैयारी है.
जिस तरीके से भारतीय रेलवे को बेचने और प्राइवेट करने का काम इस देश में शुरू हुआ है, वैसे ही इस जमीन को भी किसी गुजराती हाथों में बेचा जाएगा. मामला न्यायालय में होने के बावजूद इस तरह का कृत्य ठीक नहीं है.
सर्व सेवा संघ की विरासत कुचलने का आरोप भले ही जिला प्रशासन पर लग रहा है, लेकिन जिलाधिकारी वाराणसी एस राज लिंगम इसे गलत बताते हैं. उनका कहना है की जमीन रेलवे की है और उस पर कब्जा सर्व सेवा संघ का था.
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद वाराणसी के जिलाधिकारी ने दोनों पक्षों को बुलाकर सुना और सही निर्णय किया. इसकी कॉपी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी भेजी गई है. ऐसे में आरोप चाहे जो भी लगा दिए जाएं, लेकिन उसे सही ठहरना कठिन कार्य है.
उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन का इस जमीन से कोई लेना देना नहीं है. कोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने इस पर निर्णय लिया और जमीन खाली करा कर रेलवे को दे दी. अब कोई भी बातचीत सर्व सेवा संघ को रेलवे से ही करनी चाहिए, हमारा उसमें कोई रोल नहीं है.
15 अप्रैल 2023 को जिला प्रशासन ने गांधी विद्या संस्थान की लगभग 3 एकड़ जमीन इंदिरा गांधी कला केंद्र को दे दिया.
16 मई को संस्थान कला केंद्र के खिलाफ उच्च न्यायालय गया.
17 मई से लगातार 63 दिन धरना और सत्याग्रह चला.
23 मई को मोइनुद्दीन और रेलवे ने मिलकर एसडीएम के यहां मुकदमा दायर किया.
10 और 14 जून को मामले की सुनवाई हुई.
17 जून को फिर से निर्णय तय हुआ.
26 जून को डीएम वाराणसी ने जमीन का मालिक रेलवे को माना.
27 जून को आदेश मिला, 2 घंटे में रेलवे ने नोटिस चस्पा कर दिया.
4 जुलाई को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि वाराणसी डीएम का निर्णय इस प्रकरण में सर्वमान्य होगा.
17 जुलाई के बाद संस्थान लोवर कोर्ट पर निर्भर हो गए.
22 जुलाई को लगभग 350 पुलिसकर्मी परिसर पहुंचे.
22 घंटे लगातार पुलिसिया कार्रवाई कर परिसर खाली कराया गया.
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