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इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान गुरुवार को एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. पता चला कि इलेक्टोरल बॉन्ड से कौन सी पार्टी कितना चंदा ले रही है ये चुनाव आयोग को बताने के लिए बाध्य नहीं है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से ये भी पूछा कि - क्या इस बॉन्ड से कालेधन की समस्या और नहीं बढ़ेगी?
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के मुताबिक अब तक पार्टियों के लिए ये जरूरी था कि वो चुनाव आयोग को चंदे की पूरी जानकारी दें. इलेक्टोरल बॉन्ड लाते समय 2017 में इस कानून में संशोधन किया गया. संशोधन के बाद अब पार्टियां चुनाव आयोग को ये बताने के लिए तो बाध्य हैं कि कुल चंदा कितना मिला है लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कितना चंदा मिला है , ये बताने के लिए बाध्य नहीं हैं.
बॉन्ड के खिलाफ याचिका दायर करने वाले सुप्रीम कोर्ट से इसपर रोक लगाने की गुहार लगा रहे हैं. इस पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टीस रंजन गोगोई और दो अन्य जजों की बेंच ने अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया केके वेणुगोपाल से सवाल पूछे. अटॉर्नी जनरल की दलील थी कि केंद्र सरकार चुनाव सुधारों के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई है, लिहाजा इसे लागू करने देना चाहिए. तब कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या बैंकों को इस बात की जानकारी रहेगी कि किसने कितना चंदा दिया है. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि - इसकी जानकारी किसी को नहीं रहेगी.
बुधवार को इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई के दौरान क्विंट की रिपोर्ट के कारण सरकार सुप्रीम कोर्ट में फंस गई थी. दरअसल अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा था कि डोनर की जानकारी किसी को नहीं रहेगी. इस पर याचिककर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड पर एक सीक्रेट नंबर है. इस सीक्रेट नंबर से बैंक ये पता लगा सकते हैं कि किसने किसको कितना चंदा दिया है.
इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के वक्त ये बताया गया था कि बॉन्ड के जरिए कौन किसको चंदा दे रहा है, इसकी जानकारी डोनर केअलावा और किसी को नहीं होगी. हालांकि क्विंट के इंवेस्टिगेशन से पता चला कि इलेक्टोरल बॉन्ड में 'अल्फा-न्युमेरिक नंबर'छिपे हुए हैं, जिन्हें नंगी आंखों से देख पाना मुमकिन नहीं है. लेकिन दावे से उलट, इससे ये पता चलता है कि किसनेकिसको भुगतान किया है. पड़ताल के लिए द क्विंट ने दो इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित लैब मेंजांच के लिए भेजा. लैब की रिपोर्ट से पता चला कि अल्ट्रा वायलेट लाइट में परीक्षण करने पर बॉन्ड के दाहिनी ओर औरऊपी किनारे पर सीरियल नंबर छिपा हुआ दिखता है. दूसरे शब्दों में एक तरफ कोई ये नहीं जान सकेगा कि किसने किसपार्टी को डोनेट किया है, वहीं बैंक के पास इसकी पूरी जानकारी रहेगी. इस बात डर हमेशा बना रहेगा कि ये जानकारीसत्तारूढ़ पार्टी को भी मिल जाए.
ये एक प्रकार के प्रोमिसरी नोट हैं, यानी ये धारक को उतना पैसा देने का वादा करते हैं. ये बॉन्ड सिर्फ और सिर्फ राजनीतिकपार्टियां ही भुना सकती हैं. ये बॉन्ड आप एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ की राशि में ही खरीद सकते हैं. ये इलेक्टोरल बॉन्ड आप स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही ले सकते हैं. ये बॉन्ड आप अकेले, समूह में, कंपनी या फर्म या हिंदू अनडिवाडेड फैमिली के नाम पर खरीद सकते हैं.
ये बॉन्ड आप किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं और खरीदने के 15 दिनों के अंदर उस राजनीतिक पार्टी को उस बॉन्ड को भुनाना जरूरी होगा, वरना वो पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा रजिस्टर्ड पार्टियां जिन्होंने पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किया है, वो ही इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने कीहकदार होंगी. चुनाव आयोग ऐसी पार्टियों को एक वेरिफाइड अकाउंट खुलवाएगी और इसी के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकेंगे.
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