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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़(Justice Chandrachud) ने कहा कि "संविधान के गार्जियन होने के नाते जहां कार्यकारी या विधायी कार्रवाही मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं, वहां इसे (सुप्रीम कोर्ट) उसको रोकना चाहिए". आतंकवाद विरोधी कानून पर अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा "आतंकवाद विरोधी कानून सहित आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग असंतोष को दबाने या नागरिकों के उत्पीड़न के लिए नहीं किया जाना चाहिए"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के "हस्तक्षेपों ने भारतीय इतिहास को बदलने का काम किया है- चाहे वह नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की रक्षा में हो,जो राज्य पर नकारात्मक दायित्व डालता है, या राज्य को सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को लागू करने के लिए निर्देश देना, जैसा कि संविधान के तहत उसका दायित्व है".
उनके अनुसार "संविधान के गार्जियन होने के नाते, जहां कार्यकारी या विधायी कार्रवाही मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं, वहां इसे (सुप्रीम कोर्ट) उसको रोकना चाहिए".
शक्ति के पृथक्करण के कॉसेप्ट पर अपना पक्ष रखते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा "भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज शक्तियों के पृथक्करण को बनाए रखने के लिए सावधान हैं... सुपरविजन के माध्यम से चेक एंड बैलेंस की स्कीम के कारण एक अंग का कुछ हद तक दूसरे के कामकाज में हस्तक्षेप होता है".
आगे उन्होंने विस्तार में बताते हुए कहा "सरकार के अलग-अलग अंगों की कल्पना करने और उनके बीच दीवारों से विभाजन करने की बजाय हमें उनके कामकाज को एक जटिल इंटरैक्टिव,एक दूसरे पर आश्रित और एक दूसरे से जुड़े सेटिंग के रूप में देखना चाहिए, जहां एक अंग दूसरे के कामकाज का हिसाब लेती है और कोऑर्डिनेटर करती है".
महामारी के बीच सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप का जिक्र करते हुए उन्हें कहा कि "जेलों में भीड़-भाड़ उठाए गए मुद्दों में से एक है".
"जैसा कि मैंने गोस्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य में उल्लेख किया है 'हमारी अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकों की स्वतंत्रता और उसके उल्लंघन के बीच रक्षा की पहली दीवार के रूप में बने रहें.एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत अधिक है. हमें हमेशा अपने फैसलों के प्रणालीगत निहितार्थों के प्रति सचेत रहना चाहिए".
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Published: 14 Jul 2021,11:29 AM IST