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सुप्रीम कोर्ट ने आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वालों से जानना चाहा कि नेटवर्किंग की इस दुनिया में एक व्यक्ति का आधार नंबर कैसे अंतर पैदा कर सकता है जबकि निजी संस्थाओं के पास ये आंकड़ा पहले से ही उपलब्ध है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि नागरिकों का निजी आंकड़ा निजी संस्थाओं के पास पहले से ही है. पीठ ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि आधार नंबर शामिल करने से क्या बदलाव होगा? संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस ए के सीकरी, ए एम खानविलकर, डी वाई चन्द्रचूड़ और अशोक भूषण शामिल हैं.
शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि आधार रजिस्ट्रेशन प्रोसेस के दौरान जमा की गयी बायोमेट्रिक सूचना केन्द्रीय डाटाबेस में जमा की गयी थी और नागरिकों को पहचान के मकसद से सिर्फ 12 अंकों वाली विशिष्ट संख्या दी गयी थी.
पीठ इस समय आधार योजना और इससे संबंधित 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. दीवान ने कहा चूंकि प्राइवेट संस्थाएं आधार के लिये रजिस्ट्रेशन प्रोसेस का हिस्सा थीं, इसलिए उनकी ओर से जमा किये गये आंकड़ों का गलत इस्तेमाल हो सकता है. उन्होंने कहा कि आधार के लिये रजिस्ट्रेशन प्रोसेस में शामिल करीब 49,000 प्राइवेट एजेन्सियों को सरकार ने पिछले साल ब्लैक लिस्ट में डाल दिया था. जिसने नागरिकों के बायोमेट्रिक सहित इन आंकड़ों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया.
दीवान ने कहा कि आधार जैसी अकेली पहचान की व्यवस्था की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति संविधान के तहत कल्याणकारी योजनाओं का फायदा उठाए, सब्सिडी, स्काॅलरशिप या पेंशन पाने का हकदार है तो उसके लिये आधार अनिवार्य नहीं किया जा सकता है. दीवान ने प्राइवेसी को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने के शीर्ष अदालत के फैसले और आधार कानून के प्रावधानों का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि नागरिकों को आधार पाने का अधिकार है लेकिन इसके लिए कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए.
दीवान ने कहा कि हो सकता है कोई नागरिक खुद की हिफाजत के लिये आधार नंबर नहीं बताना चाहता हो.
(-इनपुट भाषा से)
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