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ये कहना है पश्चिम बंगाल के रहने वाले कन्हैया का. कन्हैया की दोनों किडनी फेल हो गई थी. डॉक्टर ने उनसे कहा था कि एक किडनी मिल जाए तो आपको जिंदगी मिल सकती है. उसके बाद कन्हैया ने किडनी के लिए बहुत संपर्क किया, लेकिन उन्हें कहीं से कोई उम्मीद की किरण नहीं दिखाई दी. तभी, अशरफ अली की उनसे मुलाकात हुई और अशरफ ने अपनी किडनी देने की पेशकश कर दी.
ये सिर्फ एक कहानी नहीं है. ये सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की मिसाल है. कन्हैया बताते हैं कि मैंने 1.5 साल तक किडनी डोनर की खोज की, लेकिन कहीं से कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी. इस वक्त तक मैंने 234 डायलिसिस सेशन ले चुका था. जब मैं डायलिसिस करा के लौट रहा था. इसी वक्त बस में अशरफ मिल गए. इन दोनों की पहली मुलाकात इसी दिन बस में हुई थी. कन्हैया को बीमार देख अशरफ ने उनका हालचाल पूछा तो कन्हैया ने सारी बातें बता दीं. जिसे सुनकर अशरफ अली ने तुरंत कन्हैया को किडनी देने की पेशकश कर दी.
अप्रैल 2020 में ऑपरेशन के बाद जब दोनों पहली बार मिले तो कन्हैया ने अशरफ से कहा कि मेरे लिए तो आप ही भगवान हैं. कन्हैया ने कहा कि जब भगवान का दरवाजा बंद हो गया, जब हमारी दुआ नाकाम हो गई, तब अशरफ मदद के लिए आए और मुझे जिंदगी दी. कन्हैया ने कहा कि हिंदू-मुस्लिम करने के लिए नहीं, बल्कि एक इंसान दूसरे इंसान को बचाने के लिए आगे आए.
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