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केंद्र सरकार ने 3 जुलाई को राज्यसभा में बताया कि उसके पास औपनिवेशिक समय के राजद्रोह कानून को खत्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं है, जिसके तहत सरकार के खिलाफ नफरत फैलाना दंडनीय अपराध है. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा, "देशद्रोह के अपराध से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत प्रावधान को रद्द करने का कोई प्रस्ताव नहीं है. राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों से प्रभावी रूप से निपटने के लिए यह प्रावधान बनाए रखने की आवश्यकता है." राय तेलंगाना के सदस्य बंदा प्रकाश के उठाए गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.
इस कानून को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124ए के तहत परिभाषित किया गया है. इसके तहत, ''कोई जो भी बोले या लिखे गए शब्दों से, संकेतों से, दृश्य निरूपण से या दूसरों तरीकों से घृणा या अवमानना पैदा करता है या करने की कोशिश करता है या भारत में कानून सम्मत सरकार के प्रति वैमनस्य को उकसाता है या उकसाने की कोशिश करता है, तो वह सजा का भागी होगा.''
भारत में इस कानून की नींव रखने वाले ब्रिटेन ने भी 2009 में अपने यहां राजद्रोह के कानून को खत्म कर दिया. जो लोग इस कानून के पक्ष में नहीं हैं, उनकी सबसे बड़ी दलील है कि इसे अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता रहा है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक, 2014 से 2016 तक राजद्रोह के मामलों में 179 लोगों को गिरफ्तार किया गया. 2016 के आखिर तक 70 फीसदी से ज्यादा मामलों में चार्जशीट दाखिल नहीं हुई और सिर्फ 2 लोगों के खिलाफ ही दोष साबित किया जा सका.
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