advertisement
केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे चिन्मयानंद लंबे इंतजार के बाद सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं. राममंदिर के आंदोलन से लेकर राजनीतिक रसूख कायम करने वाले चिन्मयानंद धीरे-धीरे विशाल साम्राज्य के स्वामी बनते गए.
गोंडा के रहने वाले स्वामी के एक पट्टीदार ने बताया कि चिन्मयानंद मूलरूप से गोंडा जिले के परसपुर क्षेत्र के त्योरासी रमईपुर के रहने वाले हैं. इनके बचपन का नाम कृष्णपाल था. पॉलीटेक्निक की पढ़ाई करने के दौरान 26 जनवरी की परेड देखने के लिए दिल्ली गए तो वहां से लौटे ही नहीं. सालों तक परिवार से दूर और गुमनामी में रहकर उन्होंने संत से लेकर बड़ा सियासी पद तक हासिल किया.
कृष्णपाल उर्फ चिन्मयानंद ने करीब 20 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था. उस वक्त वह मनकापुर में पॉलीटेक्निक कर रहे थे. वहां से गणतंत्र दिवस की परेड देखने दिल्ली गए और फिर लौट के नहीं आए. उन्होंने इंटरमीडिएट की शिक्षा परसपुर के तुलसी स्मारक इंटर कॉलेज में हासिल की. चिन्मयानंद ने लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की थी. स्वामी चिन्मयानंद का शाहजहांपुर में आश्रम भी है और वहां उनका एक लॉ कॉलेज भी है.
अस्सी के दशक में चिन्मयानंद शाहजहांपुर आ गए और स्वामी धर्मानंद के शिष्य बनकर उन्हीं के आश्रम में रहने लगे. धर्मानंद के गुरु स्वामी शुकदेवानंद ने ही मुमुक्षु आश्रम की नींव रखी थी. अस्सी के दशक के आखिरी में देश में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था. इस आंदोलन में चिन्मयानंद ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और बीजेपी में शामिल होकर राजनीतिक सफर का आगाज किया.
श्रीराम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉ. रामविलास वेदांती ने बताया कि चिन्मयानंद राम मंदिर आंदोलन से जुड़े थे. वह अयाध्या आते-जाते रहते थे. यह सन् 1988 और 1990 के दौरान यह राम मंदिर के आंदोलन में हिस्सा लेते थे. मंदिर आंदोलन में सभी संत जुड़े थे. उनमें से यह भी थे. विश्व हिंदू परिषद से जुड़े तमाम साधु-संत पहले इस आंदोलन से जुड़े. इस दौरान चिन्मयानंद भी इसमें शामिल हो गए. हालांकि, उन्होंने इनका कोई अलग से घटनाक्रम बताने से इनकार कर दिया.
सात अक्टूबर, 1984 को चिन्मयानंद ने सरयू तट पर राम जन्मभूमि आंदोलन का संकल्प लिया. 19 जनवरी, 1986 को वह राम जन्मभूमि आंदोलन संघर्ष समिति के राष्ट्रीय संयोजक बने. 1989 में स्वामी निश्चलानंद के अधिष्ठाता पद छोड़ने के बाद चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम आ गए.
बताया जाता है कि अस्सी के दशक में स्वामी धर्मानंद के बाद स्वामी चिन्मयानंद मुमुक्ष आश्रम और उससे जुड़े संस्थानों का प्रबंधन की जिम्मेदारी का निर्वाहन करते रहे हैं. चिन्मयानंद ने ही शाहजहांपुर में मुमुक्षु शिक्षा संकुल नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिसके जरिए कई शिक्षण संस्थाओं का संचालन किया जाता है. इनमें पब्लिक स्कूल से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर के कलेज तक शामिल हैं. यही नहीं, मुमुक्षु आश्रम में ही स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट का मुख्यालय है, जिसके माध्यम से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश और हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम संचालित किए जाते हैं.
ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के प्रबंधन और संचालन की जिम्मेदारी चिदानंद मुनि के हाथों में है, जबकि हरिद्वार वाले आश्रम का जिम्मा चिन्मयानंद के पास है।
राम मंदिर को करीब से जानने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ब्रजेश शुक्ला ने बताया कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान इनका शौक राजनीति का रहा. इनका महिलाओं से संबंध वाला अवगुण शुरू से रहा है. इनके कई आश्रम हैं. हरिद्वार में भी इनका आश्रम है.
इन्होंने दावा किया था कि पूर्वांचल की समस्याओं को हल कर देंगे. इसी कारण अटलजी ने इन्हें मंत्री बनाया. सबकुछ होने के वाबजूद इनका महिलाओं से संबंध वाला पक्ष कमजोर रहा है. इनका बहुत पहले एक वीडियो आया था, जिसमें वह एक महिला से हाथापाई करते दिखे. वह विश्व हिंदू परिषद से जरूर जुड़े थे, लेकिन 6 दिसंबर की घटना में वह पीछे खड़े नजर आए.
चिन्मयानंद पहली बार बीजेपी के टिकट पर उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट से 1991 में सांसद चुने गए. इसके बाद 1998 में मछलीशहर और 1999 में जौनपुर से सांसद चुने गए. इसके बाद वाजपेयी सरकार में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री बनाए गए. स्वामी चिन्मयानंद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी अपना करीबी बताते रहे हैं.
बीजेपी में इनकी सक्रियता लगातार थी. इसी कारण इन्होंने 2014 में लोकसभा का टिकट भी मांगा था. लेकिन उन्हें कुछ अपने ही नेताओं के कारण यह टिकट नहीं मिला.
बीजेपी में उनका सक्रिय प्रभाव तब कम हो गया जब आठ साल पहले उन पर यौन शोषण के आरोप लगे और मुकदमा दर्ज हुआ. आरोप लगाने वाली महिला शाहजहांपुर में स्वामी चिन्मयानंद के ही आश्रम में रहती थी. बीजेपी सरकार बनते ही उनके खिलाफ मुकदमा वापस ले लिया गया. लेकिन पीड़ित पक्ष ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी थी. फिलहाल हाईकोर्ट से स्वामी चिन्मयानंद को इस मामले में स्टे मिला हुआ है.
स्वामी शुकदेवानंद लॉ कॉलेज में पढ़ने वाली एलएलएम की एक छात्रा ने 24 अगस्त को एक विडियो वायरल कर स्वामी चिन्मयानंद पर शारीरिक शोषण और कई लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करने के आरोप लगाए. लड़की ने उसे और उसके परिवार को चिन्मयानंद से जान का खतरा बताया था. वीडियो सामने आने के बाद छात्रा लापता हो गई थी.
इस मामले में 25 अगस्त को पीड़िता के पिता की ओर से कोतवाली शाहजहांपुर में अपहरण और जान से मारने की धाराओं में स्वामी चिन्मयानंद के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया गया था. इसके बाद स्वामी चिन्मयानंद के अधिवक्ता ओम सिंह ने पांच करोड़ रुपय रंगदारी मांगने का भी मुकदमा दर्ज करा दिया था.
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 30 अगस्त को पीड़िता को उसके एक दोस्त के साथ राजस्थान से बरामद कर लिया गया. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पीड़िता को कोर्ट के समक्ष पेश किया गया. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एसआईटी ने मामले की जांच शुरू की.
16 सितंबर को पीड़िता की ओर से दिल्ली पुलिस को दी गई शिकायत पर संज्ञान लेते हुए धारा 164 में उसका बयान दर्ज कराया गया. एसआईटी ने मोबाइल, पेन ड्राइव और गवाहों के मोबाइल सीज कर उन्हें फॉरेंसिक लैब भेजा. छात्रा ने स्वामी चिन्मयानंद पर करीब नौ माह तक यौन शोषण करने, दुष्कर्म कर उसका वीडियो बनाने, नहाने का वीडियो बनाने और उन्हें गायब कर साक्ष्य मिटाने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं.
20 सितंबर को यूपी पुलिस की एसआईटी ने चिन्मयानंद को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें कोर्ट ने 14 दिन के लिए जेल भेज दिया है. 23 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चिन्मयानंद की पेशी है.
(इनपुटः IANS)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)