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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'भावांतर भुगतान योजना' वापस क्यों ले ली? क्या केंद्र सरकार ने उन्हें ऐसा करने को कहा या फिर योजना के लिए मांगी गई रकम उन्हें केंद्र से नहीं मिली?
मध्य प्रदेश के भावांतर योजना को लागू किए सिर्फ 6 महीने ही हुए हैं. जितने जोर-शोर से इसे लॉन्च किया था, उतने ही चुपके से वापस भी ले लिया है.
मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि नीति आयोग और केंद्र सरकार की कमेटी इसे और बेहतर बनाने में लगी है और अब एकसाथ पूरे देश में इसे लॉन्च किया जाएगा.
तो क्या केंद्र सरकार के कहने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को योजना अभी वापस लेनी पड़ी? लेकिन अगर भावांतर भुगतान योजना पूरे देश में लागू होनी है, तो मुख्यमंत्री ने लहसुन और प्याज को भावांतर योजना में क्यों रखा गया है?
मध्य प्रदेश में इस सीजन में सरसों, मसूर और चना एमएसपी पर ही खरीदे जाएंगे.
इसमें किसान अगर सरकार की तरफ से तय न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से कम में फसल बेचता है, तो बाकी रकम सरकार की तरफ से दी जाएगी.
जानकार कह रहे हैं कि भावांतर भुगतान योजना में दिक्कतें ज्यादा हैं. उनके मुताबिक मध्य प्रदेश में योजना लागू होने से जो सबक मिले हैं वो बहुत अच्छे नहीं हैं. अगर एक राज्य में योजना को लागू करने में इतनी परेशानी है, तो पूरे देश में लागू करना बड़ा टेढ़ा होगा.
मोटे अनुमान के मुताबिक अगर भावांतर भुगतान योजना को पूरे देश में लागू किया जाता है, तो इसके लिए सालाना 75 हजार करोड़ से एक लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी. और अगर सरकार वादे के मुताबिक लागत का डेढ़ गुना एमएसपी की जाती है, तो और भी ज्यादा रकम की जरूरत होगी.
जैसे धान की एमएसपी 11 परसेंट बढ़ेगी, कॉटन की 18 परसेंट और जुआर की एमएसपी तो 41 परसेंट बढ़ जाएगी.
मध्य प्रदेश ने वित्तीय साल 2017 के 6 महीनों में 1,950 करोड़ रुपए खर्च किए. अनुमान है स्कीम पूरे साल के लिए लागू होने के बाद अकेले मध्य प्रदेश को 8,000 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे.
मजबूर मध्य प्रदेश सरकार ने मदद के लिए केंद्र से गुहार लगाई कि इस साल 35 लाख टन फसल एमएसपी के रेट पर खरीदी जाए. अकेले सरसों, चना और मसूर को खरीदने में सरकार को करीब 5000 हजार करोड़ रुपए का खर्च उठाना पड़ेगा.
शिवराज सरकार को चना मसूर और सरसों की खरीदी के लिए केंद्र से रकम नहीं मिली. इस बीच लहसुन के किसानों ने गुहार लगाई कि कीमतें गिर गई हैं. इसलिए इसकी खरीदी भावांतर भुगतान योजना में होगी. लहसुन की औसत कीमत का 3200 रुपए क्विंटल की गई है. लेकिन बाजार में भाव 2200 से 2500 रुपए क्विंटल रह गया है.
किसानों की दिक्कतें दूर करने की कोशिश में मध्य प्रदेश के साथ महाराष्ट्र और दूसरी सरकार खुद ही परेशानी में हैं.
मोदी सरकार के लिए भी ये चुनाव का साल है, वो 2022 तक किसानों को लागत का दोगुना मूल्य दिलाने का वादा कर चुके हैं. इस बजट में भी वित्तमंत्री ने वादा किया है कि एमएसपी लागत का डेढ़ गुना तय की जाएगी. लेकिन कोई वादा जमीन पर नहीं दिख रहा है.
मोदी सरकार के लिए वक्त तेजी से निकल रहा है और शिवराज चौहान सरकार को तो इसी साल के आखिर में दोबारा जनता के बीच जाना है. इसलिए जल्दी उन्हें कोई फॉर्मूला निकालना होगा.
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