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कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर पार्टी के साथ-साथ गठबंधन के सहयोगी भी सवाल उठाते रहते हैं. ताजा मामला शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर 'कमजोर और अस्त-व्यस्त' बताने का है. सामना के लेख में कहा गया कि 'अप्रभावी विपक्ष' की वजह से ही केंद्र सरकार किसान आंदोलन के प्रति 'उदासीनता' दिखा रही है.
संपादकीय में सुझाव दिया गया कि शिवसेना समेत सभी एंटी-बीजेपी पार्टियों को UPA के बैनर तले एक 'साहसी' गठबंधन बनाना चाहिए. लेख में कहा गया कि केंद्र सरकार को दोषी ठहरने की बजाय मुख्य विपक्षी पार्टी को 'अपने नेतृत्व के मुद्दे पर सोच-विचार करना चाहिए."
सामना के संपादकीय में कहा गया कि 'कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA गठबंधन की स्थिति NGO जैसी है." लेख में कहा गया, "राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर मजबूत लड़ाई करते हुए दिखते हैं, लेकिन कुछ कमी है. UPA की पार्टियों ने किसान प्रदर्शन को गंभीरता से नहीं लिया. ये साफ नहीं है कि ये पार्टियां करती क्या हैं."
सामना के लेख में एनसीपी प्रमुख शरद पवार को नेतृत्व सौंपे जाने की वकालत करने के संकेत मिले.
सामना में कहा गया कि अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब नहीं रहे और ये साफ नहीं है कि कांग्रेस की अध्यक्षता कौन करेगा और UPA का भविष्य क्या होगा.
लेख में कहा गया कि 'कांग्रेस ने अगर इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य सबके लिए मुश्किल लगता है.'
कांग्रेस ने 'सामना' के लेख में कही गई बातों पर आपत्ति जताई है. महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता अशोक चह्वाण ने कहा, "शिवसेना एक क्षेत्रीय पार्टी है और कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर सेना के साथ कोई गठबंधन नहीं है."
एक और कांग्रेस नेता नसीम खान ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ 'नकारात्मक टिप्पणी' बर्दाश्त नहीं की जाएगी. खान ने कहा, "सोनिया UPA की अध्यक्ष हैं और भविष्य में भी रहेंगी. महाराष्ट्र में सरकार कॉमन मिनिमम एजेंडा के तहत बनी थी और उद्धव ठाकरे सरकार को इसका सम्मान करना होगा."
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