Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019श्रद्धा वाकर मर्डर: अंतर-धार्मिक रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं से दूरी न बनाएं

श्रद्धा वाकर मर्डर: अंतर-धार्मिक रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं से दूरी न बनाएं

अत्याचार करने वाला अत्याचार के लिए जिम्मेदार होता है, लेकिन यह न भूलें कि चुप्पी और अलगाव उन्हें सक्षम बनाते हैं.

मैत्रेयी रमेश
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>श्रद्धा वाकर की हत्या : हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चुप्पी साधने से अपराधी का आत्मबल बढ़ता है.</p></div>
i

श्रद्धा वाकर की हत्या : हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चुप्पी साधने से अपराधी का आत्मबल बढ़ता है.

फोटो : अल्टर्ड बाय द क्विंट

advertisement

श्रद्धा वॉकर के पिता विकास वॉकर ने अपनी बेटी से 2021 के मध्य में फोन पर आखिरी बार बात की थी. यह लगभग एक साल पहले की बात है. मई 2022 में दिल्ली के छतरपुर में कथित तौर पर श्रद्धा के लिव-इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला द्वारा उसकी हत्या कर दी गई.

श्रद्धा के पिता विकास ने क्विंट से बात करते हुए बताया, "क्योंकि उसका (आफताब का) धर्म हमारे धर्म से अलग था, इसलिए मुझे ये रिश्ता मंजूर नहीं था."

श्रद्धा अपने परिवार से अलग हो चुकी थीं. परिवार का दावा है कि उन्हें इस बारे में बिल्कुल भी नहीं पता था कि श्रद्धा हिंसक रिलेशनशिप में थी. वहीं, दूसरी ओर श्रद्धा के दोस्तों को आफताब के कथित उत्पीड़न के बारे पता था, लेकिन इस साल मई के मध्य से उनका श्रद्धा से किसी भी तरह का कोई कम्युनिकेशन नहीं हुआ.

दिल्ली पुलिस द्वारा आरोपी (28 वर्षीय आफताब) को गिरफ्तार किए जाने के दो दिन बाद, 14 नवंबर को ये जानकारी सामने निकलकर आई कि श्रद्धा की बॉडी को कथित तौर पर 35 टुकड़ों में काटकर उसे पूरे दिल्ली में ठिकाने लगाया गया था.

आखिर कैसे किसी ने भी मई से श्रद्धा तक पहुंचने की कोशिश नहीं की?

"अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय शादियों में महिलाओं के लिए यह बात बहुत सामान्य है. उनसे किनारा कर लिया जाता है. महिलाओं के परिजनों द्वारा व्यवहारिक रूप से उनसे संबंध तोड़ दिए जाते हैं, जिसकी वजह से ऐसी महिलाओं के लिए न केवल खुद पर होने वाले अत्याचार के बारे में बोलना मुश्किल हो जाता है, बल्कि उनके लिए मदद मांगना भी कठिन हो जाता है."
फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट और लेखिका, कविता कृष्णन ने क्विंट को बताया

फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट बताती हैं, "हालांकि, अत्याचार के लिए अत्याचार करने वाला जिम्मेदार होता है, लेकिन हमें ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि चुप्पी साधने और अलगाव (पीड़ित से दूरी बनाने या किनारा करने) की वजह से अत्याचारियों का हौसला बढ़ता है और इसके परिणाम स्वरूप श्रद्धा वाकर मामले जैसी क्रूर घटनाएं होती हैं."

"इस (श्रद्धा के) मामले में, पिता ने अपनी बेटी से सालभर से ज्यादा वक्त बीतने के बाद भी बात नहीं की थी. ऐसे भी परिवार हैं, जो वर्षों से अपनी बेटी से केवल इसलिए बात या कोई संपर्क नहीं करते हैं, क्योंकि उसने शादी कर ली या वे किसी ऐसी रिलेशनशिप में है, जो उसके परिवार को मंजूर नहीं थी. जब कहीं से भी किसी तरह के सपोर्ट की उम्मीद न हो, तब ऐसी परिस्थिति में महिलाएं कहां जाएं?"
शबनम हाशमी, सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता

फिर अंदर ही अंदर अपराधबोध होता है, पीड़िता से कहा जाता है, "मैंने तो तुम्हें पहले ही कहा था"

अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय संबंधों में रहने वाली महिलाओं के लिए घरेलू अत्याचार या हिंसा के खिलाफ मदद मांगना कठिन होता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार उन्हें 'मौखिक रूप से छोड़' चुका होता है. इन महिलाओं से कहा जाता है कि, 'हमारे-तुम्हारे बीच आज से कोई संबंध नहीं हैं, इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हैं.'

कविता कृष्णन विस्तार से बताते हुए कहती हैं, "भले ही परिवार नाता न तोड़े और केवल उनके रिश्ते को अस्वीकार करे, फिर भी ऐसी महिलाएं अपने साथी के बारे में शिकायत करने में संकोच करती हैं, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि ऐसा करने से उन बातों को बल मिलेगा, जिसे उनके परिवार वाले पहले कहते थे." उसके बाद उन्हें अंदर ही अंदर अपराधबोध होने लगता है.

कृष्णन ने क्विंट से कहा, "अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय शादी करने वाली या रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं, जो अत्याचार में बच जाती है, वे खुद पर होने वाले जुल्मों को लेकर बात करने या आगे के लिए किसी को चुनने में भी संकोच करती हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्होंने सभी चुनौतियों और बाधाओं के बावजूद अपने साथी को चुना था. ऐसे में वे महिलाएं यह चाहती है कि उनका परिवार और उनके दोस्त इस समय उनके साथ खड़े हों न कि उनसे यह कहा जाए कि "मैंने तो पहले ही तुम्हें कहा था."

कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया श्रद्धा के 59 वर्षीय पिता की भी थी.

"मैंने उससे (श्रद्धा से) पहले ही कहा था कि वह उसके साथ न रहे. ये गलत है. मैंने उससे कहा था कि वे इस रिश्ते को आगे न बढ़ाए... नहीं तो बिरादरी से बाहर निकल जाओ. उसने मेरी बात नहीं सुनी."

अत्याचार करने वाले यही तो चाहते हैं कि पीड़िता सब से अलग हो जाएं

उत्तरी दिल्ली में जमीनी स्तर पर काम करने वाली दिल्ली महिला आयोग की एक काउंसलर बताती हैं कि जो लोग इस तरह की महिलाओं पर अत्याचार या जुल्म करते हैं, वे यही तो चाहते हैं कि सब लोग पीड़िता से दूरी बनाकर रखें.

अपने दैनिक कार्य के हिस्से के तौर पर वे पीड़ित महिलाओं की काउंसलिंग करती हैं, इन महिलाओं में वे भी शामिल रहती हैं, जो अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय रिलेशनशिप में होती हैं.

काउंसलर कहती हैं, "मैंने जो देखा है, वह यह है कि जो पुरुष अत्याचार करते हैं, वे चाहते हैं उनका साथी अलग-थलग रहे, सभी से कटा रहें. क्योंकि उन्हें पता है ऐसा होने पर कोई भी भावनात्मक और शारीरिक अत्याचार के संकेतों को नोटिस नहीं कर पाएगा. उदाहरण के तौर पर श्रद्धा के मामले में आफताब को पता था कि न तो श्रद्धा का परिवार और न ही उसके दोस्त, कोई भी तुरंत श्रद्धा तक पहुंचने का प्रयास नहीं करेगा, क्योंकि वे सभी से दूर (अलग) हो गई थी. वह उनसे कट गई थी. उसे वाकई में रहने का कठिन फैसला लेना पड़ा, क्योंकि उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था. इससे अत्याचार या दुर्व्यवहार करने वालों को प्रोत्साहन मिलता है, उनका आत्मविश्वास बढ़ता है."

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हाशमी ने इस बात पर जोर देकर कहा कि यह सच है.

"अत्याचार या दुर्व्यवहार करने वाला सबसे पहले ये चाहता है कि महिला का उसकी मां के साथ संबंध टूट जाए. पुरुष तब अधिक सतर्क हो जाते हैं, जब उन्हें पता होता है कि उसके पार्टनर पर नजर रखी जा रही है, उसके पार्टनर के पैरेंट्स उसके कॉल पर साथ देने के लिए खड़े हो जाएंगे या वह मदद के लिए हेल्पलाइन पर संपर्क कर सकती है. यही वजह है कि अत्याचार या दुर्व्यवहार करने वाला कोई भी शख्स सबसे पहले अपने पार्टनर की सभी कम्यूनिकेशन लाइन को काट देना चाहता है. यह खतरे की पहली घंटी या संकेत है."

फैसला लेने के बारे में आत्म-संदेह

मधुबाला, एक फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट हैं, जो जागोरी एनजीओ के साथ काम कर चुकी हैं. मधुबाला ने बताया कि ऐसी शादियों में महिलाओं में अंदर ही अंदर गिल्ट महसूस होने के अलावा खुद के फैसले को लेकर भी आत्म-संदेह का अनुभव करने लगती हैं.

मधुबाला कहती हैं, "मैं अपने शब्दों को तोड़-मरोड़ के नहीं कहना चाहती हूं, लेकिन हमारा समाज जातिवादी, सांप्रदायिक और महिला विरोधी है. समाज को ये बिल्कुल भी नहीं पसंद है कि महिलाएं उसके द्वारा निर्धारित भूमिका से परे जाएं और जब महिलाएं समाज के अनुरूप काम नहीं करती हैं, जैसे कि अपने साथी का चयन खुद करती हैं, तब परिवार की ओर से दो बातें स्पष्ट कर दी जाती हैं - हमारे तुमसे कोई संबंध नहीं या तुम हमारी कोई नहीं हो और तुम जो कुछ कर रही हो, उसके लिए तुम खुद जिम्मेदार होंगे."

मधुबाला आगे कहती हैं, "जब रिलेशनशिप में अत्याचार, अपमान या जुल्म होने लगता है, तब पीड़िता या सर्वाइवर अपने पार्टनर से नहीं, बल्कि खुद से सवाल करना शुरू कर देती हैं."

"मैंने ऐसे एक नहीं, बल्कि कई मामले देखे हैं, जहां परिवार कहते हैं कि 'देखा ये फैसला तुमने लिया था. हम थे तुम्हारे साथ, अब कौन है? क्या तुम्हें वाकई लगता है कि तुम अपने दम पर खड़ी हो सकती हो?', लेकिन ऐसी स्थिति में महिलाएं सिर्फ और सिर्फ यह सुनना चाहती हैं कि उनका परिवार उनके साथ है और इस परिस्थिति में वे अपने माता-पिता या दोस्तों के घर वापस आ सकती हैं. मैं इस बात पर और ज्यादा जोर नहीं दे सकती कि महिलाओं के लिए अपनी कहानियों के साथ सामने आना भावनात्मक रूप से कितना कठिन है."
मधुबाला ने द क्विंट को बताया

हाशमी आगे बताती हैं कि "भारत में ऐसे परिवार बहुत कम हैं, जो महिलाओं को यह बताते हैं कि सम्मान के साथ जीना उनका अधिकार है."

क्या किया जा सकता है?

फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट का कहना है कि एक समाज के तौर पर हमें बेहतर मांग करनी चाहिए. अंतर-धार्मिक रिलेशनशिप के सांप्रदायीकरण के राजनीतिक मुद्दे से पहले हमें महिलाओं और सर्वाइवर्स के हितों को ध्यान में रखना चाहिए.

कृष्णन कहती हैं कि "जो महिलाएं 'लव मैरिज' या 'रिलेशनशिप' में हैं वे सिर्फ घरेलू अत्याचार के मामले में ही नहीं बल्कि यह कहने में भी संकोच करती हैं कि उनका साथी शराबी है या उनकी शादीशुदा जिंदगी तेजी से जहरीली होती जा रही है. इस स्थिति में अगर पैरेंट्स और समुदाय यह स्पष्ट कर दे कि वे महिला के साथ खड़े हैं तो इससे निश्चित रूप से फर्क पड़ेगा."

"गैर-न्यायिक और सम्मानजनक न्याय के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों — चाहे वह राज्य सरकार में हो या केंद्र सरकार में हो — पर निरंतर दबाव डालें."

"घरेलू हिंसा से बचे लोगों (सर्वाइवर्स) के साथ काम करने वाले के तौर पर बात करें, तो देश में पर्याप्त संख्या में शेल्टर होम या आश्रय गृह नहीं है. जब हम एक सर्वाइवर के पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) पर काम कर रहे होते हैं, तब एक्टिविस्ट्स के पास दूसरे सर्वाइवर पर काम करने के लिए संसाधन नहीं होते हैं. कभी-कभी ऐसा भी समय आया कि जब सर्वाइवर्स के पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं होती है, तब हमें उनको अपने घरों और ऑफिसों में लाना पड़ा है. वक्त पड़ने पर सिस्टम ने महिलाओं को पूरी तरह से निराश किया है और इस स्थिति में सुधार लाने की दिशा में कोई खास काम नहीं कर रहा है."
शबनम हाशमी ने क्विंट से कहा

कृष्णन कहती हैं, "मुद्दा यह नहीं है कि एक समुदाय के पुरुष दूसरे समुदाय की महिलाओं के प्रति क्रूर या अत्याचारी हैं, लेकिन इसपर ध्यान केंद्रित करने से हम वास्तविक मुद्दे या कारणों से कहीं आगे निकल जाते हैं."

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT