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"आप कितनी बार पाकिस्तान गए?"
"आप कितनी बार जाकिर नाइक से मिले?"
"तुम्हारी कितनी गर्लफ्रेंड हैं?"
"क्या आप गोमांस खाते हैं?"
सिद्दीकी कप्पन कहते हैं कि ये सब सवाल उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनसे पिछले ढाई साल में पूछा था. 3 फरवरी को कप्पन 28 महीने जेल में बिताने के बाद, UAPA के गंभीर आरोप से लड़ते हुए लखनऊ जेल से बाहर आए हैं.
कप्पन को 5 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जब वह और दो अन्य यूपी के हाथरस जा रहे थे. कप्पन एक 20 वर्षीय दलित महिला के जघन्य गैंगरेप को कवर करना चाहते थे, जब उनकी कार को यूपी पुलिस ने रोक लिया था.
यूपी सरकार द्वारा दायर हलफनामे में, यह कहा गया है कि कप्पन और अन्य "... पत्रकारिता की आड़ में हाथरस जा रहे थे, जाति विभाजन पैदा करने और कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए एक बहुत ही निर्धारित डिजाइन के साथ आपत्तिजनक सामग्री ले जा रहे थे.”
कप्पन को बाद में स्कूल में बने क्वारंटाइन केंद्र में अस्थायी जेल में ले जाया गया, जहां उन्होंने अगले 21 दिन बिताए. कप्पन कहते हैं कि "वहां कोई सुविधा नहीं थी. कोई वॉशरूम नहीं था. एक कोने में हमारे शौच के लिए एक बाल्टी पड़ी थी. उस एक कमरे में कम से कम 50 कैदी थे. शौचालय जाना है तो पुलिस को समझाना होगा. तब आपको बस एक बार जाने की अनुमति दी जा सकती है.
कप्पन ने कहा कि गिरफ्तारी के 45 दिन बाद तक उनके अपने परिवार से बात नहीं हो पाई थी. उन्हें सख्त हिदायत दी गई थी कि वे केवल हिंदी या अंग्रेजी में बोलें, मलयालम में नहीं.
कप्पन की मां का जून 2021 में निधन हो गया, जब वह जेल में थे. कप्पन कहते हैं कि "मुझे उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति तक नहीं दी गई थी.
15 अगस्त 2022 को स्वतंत्रता दिवस पर कप्पन की 9 साल की बेटी ने अपने स्कूल में भाषण दिया था जो वायरल हो गया था. उसने अपने कैद पिता के बारे में बात की थी, और अपनी आजादी की मांग की थी.
कप्पन कहते हैं कि “बच्चों और पत्नी दोनों ने हिम्मत दिखाई. वे जानते थे कि यह एक राजनीतिक मामला है, एक फर्जी मामला है. यूपी पुलिस हाथरस मामले से ध्यान भटकाना चाहती थी. इसलिए उन्होंने यह मामला बनाया. यह मेरे बच्चों सहित सभी जानते हैं. वे समाचार पत्र पढ़ रहे हैं. वे भारत के हालात से वाकिफ हैं. वे जानते थे कि इसी तरह हमें भारत में जीवित रहना है.
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