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तारीख- 12 मई, 2015. 25 अप्रैल को आए भूकंप के आफ्टर शॉक से थर्राया था नेपाल. कुल 8,857 लोगों ने दुनिया को कहा था अलविदा. लेकिन ये मातम नहीं, जिंदगी की स्टोरी है. ये वे कहानियां हैं, जो मौत के उस वीभत्स पल से निकली थीं और लोगों में जिंदगी भर के चली गईं.
नेपाल भूकंप के झटकों से थरथरा रहा था. गिरती इमारतें देख लोगों के दिल डर में डूबे जा रहे थे. लेकिन इस खौफनाक मंजर में कुछ डॉक्टरों ने जिंदगी फूंकी. इजराइल से आए 260 डॉक्टरों के एक ग्रुप ने जोकर बनकर क्लाउन थेरेपी से घायल बच्चों का इलाज किया. ये जोकर बनकर बच्चों के साथ खेलते, नाचते-कूदते और हंसाकर-हंसाकर इलाज करते थे.
नेपाल के भूकंप में इंसानियत और जिंदादिली की एक खास तस्वीर देखने को मिली. जब लोग अपनी और अपने बच्चों की जान बचाकर भाग रहे थे, तो कुछ लोगों ने अपने पालतू जानवरों को भी साथ ले लिया. राहत कैंप में रह रहे इस परिवार ने अपने पालतू जानवरों का भी ख्याल रखा. उनका कहना था कि इन जानवरों को जानवर न समझा जाए और इनसे भी इंसानों की तरह बर्ताव किया जाए.
‘द्रुक अमिताभ माउंटेन’ मठ की 300 कुंग फू नन भूकंप में तबाह हुए घरों की मरम्मत कर नौ गांवों के लोगों को एक नई जिंदगी दी. इन्होंने घरों की मरम्मत में आर्थिक मदद, घरों को भूकंपरोधी बनाने जैसे कामों में मदद की. इस प्रकार के कामों में इन ननों ने मदद की थी. इससे पूर्व में अस्थायी तंबू और चिकित्सा सहायता भी उपलब्ध कराई थी.
भूकंप से डोलती नेपाल की धरती में कई ऐसे डॉक्टर दिखाई दिए, जिन्होंने सुपरमैन जैसे साहस का परिचय दिया. भूकंप से अस्पताल डोल रहा था और डॉक्टर अपने मरीजों को बचाने में जुटे थे. कुछ डॉक्टर गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी करा रहे थे, तो कुछ डॉक्टर अपने मरीजों को सुरक्षित बचाने की कोशिश कर रहे थे.
नेपाल में भूंकप आने के एक साल बाद भी जमीन पर काफी कुछ नहीं बदला है. लेकिन ऐसी कहानियों ने भूकंप पीड़ितों के दिल में इंसानियत और जिंदगी की एक नई उम्मीद जरूर जगाई होगी.
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