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पत्रकार सौम्या विश्वनाथन (Soumya Vishwanathan) की हत्या के मामले में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने चार आरोपियों को दोषी करार दिया है, जबकि पांचवें आरोपी को मामले से जुड़े अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है. कोर्ट ने आरोपियों को कड़े मकोका कानून के तहत भी दोषी ठहराया है.
अदालत ने पाया कि रवि कपूर, अमित शुक्ला, अजय कुमार और बलजीत मलिक ने पत्रकार को लूटने के इरादे से हत्या की थी. उन्हें धारा 302 और 34 के तहत दोषी ठहराया गया है. आरोपियों को मकोका की धारा 3(1)(i) के तहत भी दोषी ठहराया गया है. अदालत अब सजा की अवधि पर 26 अक्टूबर को सुनवाई करेगी.
पंद्रह साल पहले, 30 सितंबर, 2008 को, इंडिया टुडे में काम करने वाली 25 वर्षीय पत्रकार सौम्या विश्वनाथन, दक्षिण दिल्ली में नेल्सन मंडेला मार्ग पर अपनी कार में मृत पाई गईं थीं.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक पुलिस को शुरू में उनके हत्यारों की पहचान करने के लिए संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन 2009 में बीपीओ कर्मचारी जिगिशा घोष की हत्या की जांच के दौरान तब सफलता मिली जब एक आरोपी ने विश्वनाथन की हत्या में भी शामिल होने की बात कबूल की थी.
बाद में, आरोपियों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MACOCA) के तहत आरोप लगाए गए, जिससे मकोका मामलों में देरी के कारण मुकदमा लंबा खिंच गया.
रवि कपूर: मार्च 2009 में अपनी गिरफ्तारी तक रवि कपूर को कथित तौर पर एक कार चोर और पुलिस मुखबिर के रूप में जाना जाता था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने 25 मार्च, 2009 की एक रिपोर्ट में कहा कि उसके कई आपराधिक इतिहास हैं, उसे 2002 में अपने पहले ऑटो चोरी मामले में गिरफ्तार किया गया था.
उसी दिन छपी द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाद में पुलिस ने रवि कपूर के घर से वह पिस्तौल बरामद करने का दावा किया जिसका इस्तेमाल विश्वनाथन को मारने के लिए किया गया था.
उस समय की रिपोर्टों में यह भी बताया गया था कि रवि कपूर ने डकैती का प्रयास करने के लिए पहले विश्वनाथन की कार को रोकने के लिए उस पर गोली चलाई, लेकिन जब वह नहीं रुकी, तो उसने कथित तौर पर गोली मार दी.
मई 2010 में, उसने कथित तौर पर अपनी एक सुनवाई के दौरान पटियाला हाउस कोर्ट में एक मजिस्ट्रेट के सामने चाकू दिखाया और दावा किया कि उसे तिहाड़ जेल में 'विचाराधीन कैदियों पर हमला करने के लिए पुलिसकर्मियों द्वारा हथियार दिया गया था.'
2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी.
अक्टूबर 2009 में, दिल्ली पुलिस ने पांच आरोपियों के खिलाफ यह कहते हुए मकोका (MACOCA) लागू कर दिया कि वे एक "संगठित गिरोह" के हिस्से के रूप में काम कर रहे थे. यह कड़े कानून को लागू करने के लिए जरुरी है. पुलिस ने अपनी चार्जशीट में रवि कपूर को गिरोह का सरगना बताया था.
टाइम्स ऑफ इंडिया की 11 मई, 2011 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस का यह भी मानना है कि कड़े कानून को लागू करने से जांच में मदद मिलेगी क्योंकि आरोपियों को कम से कम छह महीने तक जमानत नहीं मिलेगी.
इसके लिए पुलिस को आरोपियों के खिलाफ पिछली एफआईआर का भी पता लगाना होगा.
मकोका लगाए जाने के बाद, एक सहायक पुलिस आयुक्त-रैंक के अधिकारी को जांच अधिकारी नॉमिनेट किया गया था.
सरकारी वकील राजीव मोहन मुकदमे की शुरुआत से ही मामले को संभाल रहे थे. 2014 में उन्होंने कथित तौर पर निजी प्रैक्टिस करने के लिए नौकरी छोड़ दी. उनका ऐसा करना इस मामले में एक बड़ा झटका था. फिर, नवंबर 2015 में, तत्कालीन दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने मोहन को मामले में सरकारी वकील के रूप में फिर से नियुक्त किया.
2016 में सौम्या विश्वनाथन के पिता एम.के. विश्वनाथन ने मुकदमे में देरी को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से संपर्क किया था.
सौम्या विश्वनाथन की मां माधवी विश्वनाथन ने उनकी बेटी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए सभी चार लोगों के लिए आजीवन कारावास की मांग की और कहा कि उन्हें वही भुगतना चाहिए जो उनके परिवार को झेलना पड़ा.
माधवी विश्वनाथन ने संवाददाताओं से कहा, "हमने अपनी बेटी को खो दिया. हम दोषियों के लिए आजीवन कारावास की मांग करते हैं, उन्हें वही भुगतना चाहिए जो हमने सहा."
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