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बिहार में सृजन घोटाले के आरोपी महेश मंडल की अस्पताल में मौत हो गई है. महेश को कैंसर था और वो अस्पताल में इलाज करा रहे थे. महेश को पिछले हफ्ते भागलपुर से गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के बाद भी महेश का इलाज अस्पताल में चल रहा था. उनके परिवारवालों का आरोप है कि पुलिस की लापरवाही की वजह से महेश की मौत हुई है.
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सृजन घोटाले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार भागलपुर जिला कल्याण विभाग से निलंबित नाजिर महेश मंडल की तबियत रविवार की रात जेल में बिगड़ गई. आनन-फानन में जेल प्रशासन महेश को एक स्थानीय अस्पताल ले गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
मंडल की किडनी खराब थी और उसे डायबिटीज की शिकायत थी, मंडल के परिवार वालों का आरोप है कि पुलिस प्रशासन ने जानबूझकर उनका इलाज सही समय पर नहीं कराया, जिस कारण उनकी मौत हो गई. घरवालों का कहना है कि मंडल इस मामले में कई लोगाों का राज खोल सकते थे.
भागलपुर के सबौर स्थित स्वयंसेवी संस्था सृजन महिला विकास सहयोग समिति के बैंक खाते में सरकारी योजनाओं के पैसे रखे जाते थे, जिसका उपयोग ये एनजीओ अपने व्यक्तिगत काम के लिए करती थी. पुलिस का दावा है कि यह गोरखधंधा 2009 से चल रहा था.
मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की बात की है. फिलहाल इस मामले की जांच आर्थिक अपराध इकाई कर रही है. इस मामले में 700 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि के घोटाले का आरोप है. अब तक इस मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
इधर, महेश मंडल की मौत के बाद आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया, "सृजन महाघोटाले में पहली मौत. 13 गिरफ्तार, उनमें से एक की मौत. मरने वाले भागलपुर में नीतीश की पार्टी के एक बहुत अमीर नेता के पिता थे."
वहीं, पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने इसे व्यापमं से भी बड़ा घोटाला बताते हुए ट्वीट किया, "सृजन घोटाले में गिरफ्तार जद (यू) नेता के पिता व आरोपी नाजिर महेश मंडल की देर रात जेल में विषम परिस्थितियों में मौत. व्यापमं से भी व्यापक है सृजन."
सृजन, बिहार का महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करने वाला एनजीओ है. सृजन महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए पापड़, मसाले, साड़ियां और हैंडलूम के कपड़े बनवाता है. इसके अलावा और भी कई तरह के काम सृजन सरकारी ग्रांट के जरिए करता था. लेकिन यह सब काम केवल दिखावे के तौर पर ही किए जाते थे. असली काम सरकारी खाते से पैसा निकालने का था.
(इनपुट आईएनएस)
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