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भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) के खिलाफ पिछले दो महीनों से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. अलग-अलग राज्यों की सरकारों की CAA और एनपीआर को लेकर अलग-अलग राय है. कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सीएए और एनपीआर को लागू करने से इनकार कर दिया.
वहीं कुछ राज्य CAA का विरोध कर रहे हैं लेकिन एनपीआर को लागू करने या नहीं करने पर साफ-साफ कुछ नहीं कह रहे हैं. देश में सीएए का विरोध प्रदर्शन दिसंबर 2019 से शुरू हुआ. नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ना सह रहे हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैन और इसाई समुदाय के वो लोग जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे. उन्हें नागरिकता दी जाएगी.
ये आश्चर्य की बात नहीं है कि बीजेपी शासित सभी राज्यों ने सीएए, एनपीआर को हरी झंडी दे दी है. लेकिन इसके सहयोगी जेडीयू शासित राज्य बिहार इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट नहीं है. प्रदर्शनकारी लगातार बिहार के सीएम नीतीश कुमार से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कह रहे हैं.
पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गढ़ गुजरात में दिसंबर 2019 में संसद में सीएए के पारित होने पर पीएम और गृह मंत्री को बधाई देते हुए विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया था. वहीं, विवादास्पद नागरिकता कानून को लेकर लोगों की आशंकाएं दूर किया जा सके. इसके लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने जनवरी में डोर-टू-डोर अभियान का नेतृत्व किया.
पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया और साफ तौर से संशोधित नागरिकता कानून और एनपीआर की आलोचना कर रहे हैं. राजस्थान ने भी एक एंटी-सीएए प्रस्ताव पारित किया है, लेकिन जनगणना संचालन निदेशालय के अधिकारियों के अनुसार, कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने एनपीआर पर फैसला नहीं लिया है.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने ऐलान किया था कि विधानसभा में एक सीएए विरोधी प्रस्ताव लाया जाएगा. हालांकि, उन्होंने अभी तक एनपीआर पर अपने रुख की पुष्टि नहीं की है. कुछ राज्य इस मुद्दे पर स्पष्ट नहीं दिख रहे हैं. क्योंकि वे अभी भी जनता के मूड का अनुमान लगा रहे हैं या उनकी अपनी पार्टी के भीतर सहमति नहीं बन पा रही है.
पूर्वोत्तर राज्यों के रूप में बीजेपी शासित असम में सीएए का विरोध धीरे-धीरे थमने लगा है. वहीं, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य इनर लाइन परमिट (ILP) के तहत आते हैं, और इसलिए सरकार ने इन्हें CAA से छूट दी है.
अब सवाल ये है कि क्या एनपीआर का विरोध कर रहे गैर-बीजेपी सरकार वाले राज्यों को मजबूर किया जाएगा? या फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इसे लागू करने में सफल होगी?
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