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साल 2020 मार्च में कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को लॉकडाउन लगाने का ऐलान किया था. केंद्र सरकार की इस घोषणा से पहले ही देश में तीस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तालाबंदी कर चुके थे. यह लॉकडाउन कई राज्यों ने 31 मार्च 2020 तक लगाया था.
इसके बाद भी देश में लॉकडाउन लगाया गया जिस कारण कि कई लोगों ने सवाल उठाया कि कई प्रदेशों पहले से ही जब तालाबंदी कर चुके थे, तो इसके बाद भी केंद्र सरकार ने देश में इतना सख्त लॉकडाउन लगाने फैसला क्यों लिया था?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 24 मार्च रात 8 बजे देश के नाम संबोधन में 25 मार्च से लॉकडाउन लगाने की घोषणा की तो लोगों को सिर्फ 4 घंटे का समय दिया गया था. जिसके बाद मजदूर और कामगार अपने गृह राज्यों के और पैदल या साइकिल से निकल पड़े, जिसके बाद सवाल उठने लगे कि मोदी सरकार ने पूरे देश में तालाबंदी लगाने से पहले कैसी तैयारी की थी?
इसी का जवाब खोजने के लिए सूचना के अधिकार 2005 ( RTI) के तहत मिले हुए अधिकारों का इस्तेमाल कर बीबीसी ने केंद्र सरकार की प्रमुख एंजेसियों और संबंधित सरकारी विभागों से सवाल पूछा कि प्रधानमंत्री की घोषणा से पहले, क्या उन्हें पता था कि देश भर में एक साथ लॉकडाउन लगने वाला है? या फिर उन्होंने अपने विभाग को सरकार के इस कदम के बाद की स्थिति से निपटने के लिए कैसे तैयार किया? उन्होंने किन क्षेत्रों में काम किया, जिससे कि लॉकडाउन को प्रभावी ढंग से लागू कर सकें औऱ इसके विपरीत असर से भी निपट सकें? बीबीसी ने दावा किया कि लॉकडाउन के बारे में पहले से किसी को नहीं पता था और न ही सलाह ली गई थी.
इसके बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन काम करने वाले प्रमुख विभागों और संस्थाओं से जानकारी मांगी गई. सबसे पहले इस कड़ी में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशालय (DGHS) जो कि मेडिसन और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में तकनीकी सलाह देता है. लॉकडाउन लगाने से पहले डीजीएचएस से कोई सलाह नहीं ली गई. महानिदेशालय के इमरजेंसी मेडिकल रिलीफ (EMR) विभाग को भी देश भर में तालाबंदी लगाए जाने के की जानकारी नहीं थी.
दूसरा नंबर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल का था. इस विभाग को भी लॉकडाउन लगाने से पहले इसके, पास कोई जानकारी नहीं थी जबकि यह संक्रामक बीमारियों पर निगरानी और उसके रोकने के लिए केंद्रीय इकाई है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) को भी बीबीसी ने इसको लेकर चिट्ठी लिखी जिसपर कि आईसीएमआर जवाब नहीं देते हुए इसे गृह मंत्रालय की तरफ बढ़ा दिया है.
इसके बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन काम करने वाले प्रमुख विभागों और संस्थाओं से जानकारी मांगी गई. सबसे पहले इस कड़ी में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशालय (DGHS) जो कि मेडिसन और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में तकनीकी सलाह देता है. लॉकडाउन लगाने से पहले डीजीएचएस से कोई सलाह नहीं ली गई. महानिदेशालय के इमरजेंसी मेडिकल रिलीफ (EMR) विभाग को भी देश भर में तालाबंदी लगाए जाने के की जानकारी नहीं थी.
दूसरा नंबर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल का था. इस विभाग को भी लॉकडाउन लगाने से पहले इसके. पास कोई जानकारी नहीं थी जबकि यह संक्रामक बीमारियों पर निगरानी औऱ उसके रोकने के लिए केंद्रीय इकाई है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) को भी बीबीसी ने इसको लेकर चिट्ठी लिखी जिसपर कि आईसीएमआर जवाब नहीं देते हुए इसे गृह मंत्रालय की तरफ बढ़ा दिया है.
भारतीय छात्र जो कि विदेश में पढ़ रहे थे, जब वह कोरोनाकाल में देश वापस आ रहे थे तो उनके क्वारंटीन सेंटर औऱ आइसोलेशन केंद्र बनाने का काम आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल सर्विसेज का रहा था. इसके बाद भी सैन्य मेडिकल सेवाओं के अधिकारियों से भी लॉक़डाउन लगाने से पहले कोई राय नहीं ली गई थी.
जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था तो देश की जीडीपी में 24 प्रतिशत गिरावट आई थी. इस साल भी विकास दर माइनस आठ प्रतिशत. यह सरकार का अनुमान है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के आकंडों के अनुसार मार्च 2020 में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.7 फीसदी हुई जो कि अप्रैल 2020 में 23.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई. इसमें कुछ सुधार फरवरी 2021 में हुआ जब बेरोजगारी की दर 6.9 प्रतिशत हुई.
बीबीसी ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामले, व्यय, राजस्व और वित्तीय सेवाओं जैसे कई विभागों से जानकारी मांगी कि लॉकडाउन से होने वाले प्रभाव की किस तरह समीक्षा की गई. वित्त मंत्रालय ने यह अर्जी भी गृह मंत्रालय को भेज दी थी. जिस पर गृह मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को कहा कि जानकारी उसके विभागों से मांगी गई है.
जीएसटी काउंसिल में भी अर्जी को गृह मंत्रालय भेज दिया जहां से कि अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. रिजर्व बैंक से भी आरटीआई की तहत मांगी गई सूचना का अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है.
शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी ने भी कहा कि उसे लॉकडाउन लगाने के बारे में सरकार ने कोई जा़नकारी नहीं दी थी. लॉकडाउन लगाए जाने के फैसले के बारे में सूक्ष्म और मध्यम उद्योग मंत्रालय, दूरसंचार विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रोद्योगिकी विभाग, नागरिक उड्डयन औऱ उपभोक्ता मामलों के विभाग के पास भी कोई सूचना नहीं थी. बीबीसी की कोविड-19 इकोनॉमिक रिस्पाॅन्स टास्क फोर्स' की उपलब्धियों के बारे में मांगी गई जानकारी को लेकर अर्जी अभी प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय के पास है, जिस पर कि अभी तक जवाब नहीं आया है.
कोरोनाकाल में लगे लॉकडाउन के दौरान आपको वह तस्वीरें जरूर याद होगी जब मजदूर और कामगार घर की ओर पैदल ही निकल पड़े थे. कितने लोगों की जान मंज़िल पर पहुंचने से पहले ही हो गई. इसके बाद भी केंद्र सरकार का कहना है कि उसके पास कोई आंकड़ा नहीं है कि घर जाने के दौरान कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी.
14 सिंतबर 2020 को संसद में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय से प्रवासी मजदूरों को लेकर जानकारी मांगी गई. मंत्रालय ने जवाब दिया कि लॉकडाउन के दौरान एक करोड़ मजदूर अपने गृह राज्य गए और सरकार ने इनमें से 63.07 लाख लोगों को घर तक पहुंचाया है.
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