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संडे व्यू: JIO इंस्टीट्यूट ही क्यों चुना गया, PAK चुनाव और इमरान

संडे व्यू में पढ़िए देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपे लेख

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संडे व्यू में पढ़िए देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपे लेख
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संडे व्यू में पढ़िए देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपे लेख
(फोटो: iStock)

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जियो इंस्टीट्यूट ही क्यों चुना गया?

रामचंद्र गुहा ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियो इंस्टीट्यूट को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस चुने जाने पर तीखा लेख लिखा है. अमर उजाला में छपे अपने लेख में वह कहते हैं- यह पसंद विवादास्पद है. क्योंकि एक तो इसके प्रमोटर के पास ऐसी कोई विशेषज्ञता नहीं है और व्यापक रूप से देखें तो अशोका, जिंदल, एपीयू आदि के विपरीत यह नई यूनिवर्सिटी अभी सिर्फ एक विचार है. न तो अभी इसका भवन है और न ही फैकल्टी और न ही छात्र. इस चुनाव पर विवाद होते ही एचआरडी मिनिस्ट्री ने स्पष्टीकरण दिया कि जूरी से कहा गया था कि वह ग्रीनफील्ड (पूर्व अनुभव के बिना शुरू किए जाने वाले प्रोजेक्ट) पर भी विचार करे.

यदि ऐसा था तो जियो इंस्टीट्यूट ही क्यों. उससे ज्यादा विश्वसनीय संस्थान क्यों नहीं. उदाहरण लिए जूरी क्या क्रिया यूनिवर्सिटी को नहीं चुन सकती थी, जिसका निर्माण पूरा होने की ओर अग्रसर है. इसकी कार्यकारी परिषद में आनंद महिंद्रा, किरण मजूमदार शॉ, अनु आगा और एन वाघुल शामिल हैं. क्रिया की अकादमिक परिषद के प्रमुख रघुराम राजन हैं. इसके अन्य सदस्यों में मेधावी इतिहासकार श्रीनाथ राघवन और शानदार शास्त्रीय संगीतकार टी एम कृष्णन और महान गणितज्ञ मंजुल भार्गव हैं. गुहा जियो इंस्टीट्यूट के चयन के बारे में हो रही बातों पर कहते हैं-

“मैं ऐसी अटकलों को तरजीह नहीं दे रहा हूं. लेकिन एक बार मैं फिर कहना चाहता हूं कि यह पसंद बहुत पेचीदा है. यदि मेरे खुद के पास खर्च करने के लिए धन होता तो और मुझे तय करना होता कि इसे कहां लगाऊं, रिलायंस की पेट्रोलियम फैक्ट्री में या प्रोफेसर रघुराम राजन की पेट्रोलियम फैक्ट्री में तो मुझे पता होता कि धन कहां लगाना है.”

सवाल है कि क्या इस तथाकथित ‘विशेषज्ञ जूरी’ ने मुनाफा कमाने वाली फैक्टरी और एक विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय के बीच मूलभूत अंतर पर कभी गंभीरतापूर्वक विचार किया?

गुड न्यूज बैड न्यूज

थाईलैंड में एक गुफा में फंसे बच्चों को निकाले जाने की खबर इस सप्ताह पूरे दुनिया में छाई रही. करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए लिखे अपने कॉलम में इस अभूतपूर्व घटना को गुड और बैड न्यूज के संदर्भ में देखा है.

करन लिखते हैं- सामान्य चीजें खबरें नहीं होती. लेकिन असामान्य घटनाएं खबर बन जाती हैं. इस असामान्यता से ही यह कहावत सामने आई- ‘good news is never news; bad news is a headline’. लेकिन इस सप्ताह थाईलैंड के थाम लुआंग गुफा की घटना ने इस कहावत को उलट दिया. 12 किशोरों और उनक कोच को आखिरकार एक लंबे रेसक्यू ऑपरेशन के बाद सफलतापूर्वक निकाल लिया गया. बीबीसी और सीएनएन ने इस लंबा कवरेज दिया.
थाइलैंड में एक गुफा में फंसे थे 11 छात्र(फोटो: AP)

इस स्टोरी में ऐसा क्या था कि पूरी दुनिया इससे ध्यान नहीं हटा पा रही थी. बच्चों को सफलतापूर्वक बचा लेना एक असंभव काम को पूरा कर लेना था. साथ ही अविश्वसनीयता कारनामा था. इससे ऐसी कोशिश कभी नहीं हुई थी. दरअसल ऐसी किसी भी घटना में जितनी भयानक परिणाम की आशंका होती है हम इसे जानने को उतना ही उत्सुक रहते हैं. सहज और सामान्य नहीं खबर नहीं है. खबर वही है जो असामान्य है.

डब्ल्यूटीओ की सीमाएं

क्या डब्ल्यूटीओ की भूमिका खत्म होती जा रही है? बिजनेस स्टैंडर्ड में टी एन नैनन ने अपने साप्ताहिक कॉलम में मौजूदा ट्रेड वॉर को कंट्रोल करने में उसकी भूमिका पर विचार किया है.

नैनन लिखते हैं- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्ल्यूटीओ को 'आपदा' करार दिया और धमकी दी कि वह अमेरिका को संगठन से बाहर कर लेंगे. संभव है कि डब्ल्यूटीओ एक संपूर्ण कारोबारी जंग को घटित होने से रोके .

जोखिम बरकरार है और डब्ल्यूटीओ की सीमाएं उजागर हो रही हैं. वह दोहा दौर की बहुपक्षीय व्यापार वार्ता को सफलतापूर्वक समाप्त करने में नाकाम रहा. पुराने दौर की वार्ताओं की सफलता के बाद ऐसा होना इस बात का संकेत है कि उसकी एक भूमिका का लगभग अंत हो गया है. वह भूमिका है मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने की.

डब्ल्यूटीओ का दूसरा अहम काम है कारोबारी विवादों का निपटारा. यह काम भी खतरे में नजर आ रहा है.

क्या ऐसा हो सकता है कि बड़े देशों को परे रखकर बाकी देश नियमों से चलें. जैसे अमेरिका को बाहर रखकर जापान प्रशांत पार साझेदारी पर काम कर रहा है. यह कारगर नहीं होगा क्योंकि दुनिया के दो सबसे बड़े कारोबारी देशों के बिना इसका कोई अर्थ नहीं. आसान विकल्प यही होगा कि डब्ल्यूटीओ में सुधार किया जाए और ट्रंप की कुछ शिकायतों की सुनवाई की जाए.

पाकिस्तान के चुनाव और इमरान खान

पाकिस्तान अब अपने नए रक्षक इमरान खान की प्रतीक्षा कर रहा है. एशियन एज में आकार पटेल ने लिखा है, इस महीने चुनाव के बाद उनके पीएम बनने की सबसे ज्यादा संभावना है. आर्मी और इसकी ताबेदार दब्बू नौकरशाही की पसंद इमरान हैं. पाकिस्तान मीडिया इन्हें ही सत्ता प्रतिष्ठान कहता है.

अगर शरीफ को घेरा नहीं जाता तो शायद इमरान खान का जीतना मुश्किल होगा. उन्हें भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति में घेर कर किनारे किया गया है. कइयों का मानना है कि उन्हें गलत फंसाया गया है.

आखिर इमरान खान पसंदीदा कैंडिडेट कैसे बन गए. इसका आसान जवाब है. पाकिस्तान में जो गलत हो रहा है उसके लिए इमरान ने फौज को कभी कटघरे में खड़ा नहीं किया. उनके एजेंडे में पाकिस्तान के राजनीतिक पार्टी और पहले के नेताओं का करप्शन था. उनका मानना है कि अमेरिका और उसके युद्ध ने पाकिस्तान की तरक्की रोक रखी है. उनके लिए दूसरा सुविधाजनक रुख धर्म का साथ है. एक आधुनिक राज्य की स्थापना में इस्लाम के रोल को लेकर वह सहज हैं. उनका यह रुख और दुनिया के प्रति उनका विचार ‘सत्ता प्रतिष्ठान’ के नजरिये से मेल खाता है.

पीएम की रेस में आगे चल रहे हैं इमरान खान(Photo: AP)

अगर इमरान जीतते हैं तो पाकिस्तान को उसके हिसाब से आदर्श सरकार मिल जाएगी. पाकिस्तान में देश को कम युद्दोन्मत बनान की जरूरत है. भारत से रिश्ते सामान्य करने और राज्य का धर्म के प्रति खत्म करन की कोशिश करनी होगी. इस चीज को समझना फौज के साथ संघर्ष मोल लेना है. अयूब और मुशर्रफ जैसे सैनिक शासक यह समझ चुके थे. बनेजीर उनके पिता और नवाज भी इसे समझ गए थे. और शायद इमरान को भी वक्त यह सबक समझा देगा.

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सेक्स रोबोट से शादियों को खतरा?

क्या सेक्स रोबोट शादियों की जरूरत खत्म कर देंगे और दुनिया के सबसे पुराने व्यवसाय के रोजगार खत्म कर देंगे. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से आम नौकरियां खत्म होने की आशंका जताई जा रही है लेकिन सेक्स रोबोट से विवाह संस्था में उथलपुथल का डर बढ़ने लगा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वामीनाथन एस अंकलसरैया ने नेशनल ज्योग्राफिक चैनल के एक एपिसोड का जिक्र किया है, जिसमें एंकर केटी क्यूरिक से एक महिला और पुरुष सेक्स रोबोट कामुकता भरी बातें करता है.

कई वेस्टर्न जर्नल्स में बढ़ते सेक्स रोबोट और उनके असर पर चर्चा हुई है. शादियों पर इसका क्या असर होगा? एक सर्वे में 25 फीसदी यंगस्टर्स ने कहा कि वे रोबोट के साथ डेट पर जा सकते हैं. क्या रोबोट सिर्फ सेक्स पार्टनर न होकर अच्छे जीवन साथी हो सकते हैं. जैसा कि धीरे-धीरे कंप्यूटर मनुष्य से अच्छे चेस प्लेयर हो गए. दूसरी ओर क्या रोबोट शादियां बेवफाई से टूटने वाली शादियों को बचा सकते हैं.

आदमी एक साथ कई रोबोट से सेक्स संबंध बना सकता है. इसमें पत्नी से बेवफाई वाली कोई बात नहीं आएगी. क्या सेक्स रोबोट के आने से वेश्यालयों का धंधा बंद हो जाएगा. आसानी और तुरंत सेक्स की उपलब्धता से क्या यौन अपराध बंद हो जाएंगे?

स्वामीनाथन ने इस दिलचस्प लेख में इसके सेक्स रोबोट से जुड़े कई पहलुओं का जिक्र किया है. आखिर में वह लिखते हैं. बेहद हाई-टेक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में ह्यूमन रिलेशनशिप का विकल्प नहीं बन सकता. फिर भी रोबोट एक सप्लीमेंट रोल अदा कर सकता है. कहा जाता है कि प्यार पैसे नहीं खरीदा जा सकता. लेकिन विकल्प उपलब्ध करा सकता है. रोबोट यही विकल्प है.

लातिन अमेरिका का अंधेरा

लातिन अमेरिका इन दिनों भारी संकट के दौर से गुजर रहा है. हिन्दुस्तान टाइम्स के लेख के मुताबिक, वेनेजुएला में करंसी अप्रासंगिक हो जाने की वजह से बार्टर सिस्टम शुरू होने की इंटरनेशनल मीडिया में खूब चर्चा रही. यहां रूलिंग पार्टी ने पार्लियामेंट की ताकत छीन ली है. कोर्ट को अपने राजनीतिक वफादारों से भर दिया है और स्वंतत्र मीडिया को लगभग खत्म कर दिया है. राजनीतिक हिंसा ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली है. बड़ी तादाद में लोग देश से बाहर भाग गए हैं.

अर्जेंटीना में 2015 में आर्थिक सुधार का वादा कर आए राष्ट्रपति मॉरसियो मैक्री के हाथ से हालात बाहर जा चुके हैं. अर्जेंटीना कर्ज में डूब चुका है. मेक्सिको की भी समस्याएं बढ़ती जा रह ही हैं. आर्थिक बदहाली के साथ ही हथियार बंद ड्रग गैंग्स का कई शहरों पर अधिकार हो चुका है. इस साल अब तक 130 राजनीतिक नेता मारे जा चुके हैं.अमेरिका ने मेक्सिको की मुश्किलें और बढ़ा दी है.

ब्राजील में इस अक्टूबर में चुनाव हैं. राष्ट्रपति चुनाव के दो कैंडिडेट में से एक पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासिया लुला डी सिल्वा जेल में हैं. एक और कैंडिडेट राइट-विंगर सीनेटर और पूर्व आर्मी कैप्टन ने मिलिट्री रूल और पुलिस की क्रूरता की तारीफ की है. जून में एक सर्वे में पाया गया कि ब्राजील में 16-24 वर्ष की उम्र के 62 फीसदी लोग मौका मिलने पर अपने देश से बाहर जाना पसंद करेंगे.

फिर प्रशांत किशोर?

चुनाव अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक चक्र पूरा कर लिया है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2014 में मोदी और फिर बिहार में 2015 में नीतीश कुमार की जीत का उन्होंने पूरा श्रेय लिया. हालांकि 2017 में बिहार में उनकी रणनीति सफल नहीं रही. प्रशांत किशोर एक बार फिर 2019 में बीजेपी के लिए अभियान शुरू कर सकते हैं.

प्रशांत किशोर क्या 2019 में बीजेपी के लिए बनाएंगे रणनीति(फोटो: द क्विंट)
मोदी का उनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है और वह उन्हें वापस लाना चाहते हैं. अगर चुनाव प्रचार के इंचार्ज अमित शाह राजी हों तो. लेकिन शाह नहीं चाहते कि किशोर चुनाव अभियान में शामिल हों. उन्होंने सुझाव दिया है कि प्रशांत किशोर को कोई अलग प्रोजेक्ट दे दिया जाए. जैसे बीजेपी की दलित समर्थक छवि चमकाने का काम उन्हें सौंप दिया जाए.

किशोर ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं किया है. हालांकि नीतीश ने उन्हें इस बीच जो काम सौंपा था वह नहीं हो सका. नीतीश चाहते थे किशोर के जरिये बिहार में महागठबंधन बनाने की बात हो जाए. कांग्रेस राजी थी लेकिन लालू के बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप इसके लिए तैयार नहीं थे.

तेजस्वी ने यह ऐलान सार्वजनिक तौर पर कर दिया जबकि तेज प्रताप ने एक कदम आगे बढ़ कर अपने दरवाजे पर एक नोटिस लगा दिया- नीतीश कुमार की नो एंट्री.

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