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पॉल क्रुगमैन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का अगला राष्ट्रपति बनने की खबर ने विश्व व्यापार के भविष्य को अनिश्चित बना दिया है. ट्रंप बहुत पहले से ही संरक्षणवाद के मुखर समर्थक रहे हैं. उन्हें पूरा यकीन है कि विश्व व्यापार व्यवस्था कुछ इस तरह की है कि अमेरिका को नुकसान ही होना है. इन मायनो में वह चीन को सबसे बड़ा दोषी मानते हैं. लेकिन, वह भारत और अन्य देशों पर भी यह आरोप लगाने से नहीं हिचकिचाते हैं कि वे अमेरिका की कीमत पर अनुचित लाभ अर्जित कर रहे हैं. यह ध्यान देने लायक बात है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनकी नीतियां नरम थीं. उनकी नीतियों पर जो बाइडन ने भी अमल किया.
पॉल क्रुगमैन याद दिलाते हैं कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अपने प्रचार अभियान मे कह चुके हैं कि टैरिफ उनका पसंदीदा शब्द है. उन्होंने खास तौर से कहा कि चीन से आने वाली सभी वस्तुओं पर 60 फीसदी और तथा अन्य देशों से आने वाली वस्तुओं पर 10 फीसदी शुल्क लगाया जाएगा. ज्यादातर लोग मानते हैं कि पहले ही अतिरिक्त क्षमता से जूझ रही चीन की अर्थव्यवस्था पर इसका तत्काल असर होगा. चीन की वृद्धि दर 1-2 फीसदी कम हो सकती है.
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग ने हाल में मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव रखा है. इस पर चुप्पी का मतलब इसे स्वीकार्यता देना माना जा सकता है. इस प्रस्ताव का घोषित उद्देश्य सार्वजनिक और व्यावसायिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा में सुधार करना है. सराहनीय इरादा होने के बावजूद यह प्रस्ताव हास्यास्पद है कि पुरुष दर्जी अब महिलाओं के माप नहीं ले सकते. क्या इसका यह भी मतलब है कि पुरुष महिलाओं के कपड़े नहीं बना सकते और केवल दूसरी महिलाएं ही बना सकती हैं? पुरुषों को हेयर ड्रेसिंग सैलून में महिला ग्राहकों से मिलने से भी रोका जाना चाहिए. और, किसी भी पुरुष को जिम में या योगा सेशन के दौरान महिलाओं को प्रशिक्षित करने की अनुमति नहीं है. सभी स्कूल बसों में महिला सुरक्षा कर्मचारी मौजूद होना चाहिए. महिलाओं के कपड़ों की दुकानों में केवल महिला कर्मचारी ही ही सकती हैं. महिलाओं को खतरे में डाले बगैर पुरुषों पर महिलाओं की सेवा करने का भरोसा नहीं किया जा सकता.
करन थापर राज्य महिला आयोग की प्रमुख को उद्धृत करते हैं, “यह महिलाओं की सुरक्षा के दृष्टिकोण से और महिलाओं के रोजगार के दृष्टिकोण से है.” लेखक का कहना है कि पुरुषों के प्रति अविश्वास का यह आश्चर्यजनक स्तर है. ऐसा लगता है कि यूपी राज्य महिला आयोग मानता है कि पुरुष दर्जी, हेयरड्रेसर और दुकानदारों की संगति में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. लड़कियों की सुरक्षा के लिए पुरुषों पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ये प्रस्ताव महिलाओं के जीवन की निजता में दखल भी देते हैं. खुद के लिए चुनने के अधिकार को भी ये प्रस्ताव प्रतिबंधित करता है. लेखक को लगता है कि यह रिवर्स तालिबानवाद है. लेखक सवाल उठाते हैं कि उन महिलाओं के बारे में चुप्पी क्यों है जो फिजियोथेरेपिस्ट, डेंटल हाइजनीस्ट, डॉक्टर, शिक्षिका हैं या रेस्तरां में काम करती हैं? क्या उन्हें पुरुष रोगियों, ग्राहकों या ग्राहकों की सेवा करने की अनुमति दी जानी चाहिए?
प्रभु चावला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि संसदीय इतिहास में पहली बार कांग्रेस की पवित्र त्रिमूर्ति अपने वफादार साथियों पर शासन करेंगी. ये त्रिमूर्ति हैं सोनिया गांधी, उनके जोशीले बेटे राहुल और प्रियंका. एक पूरा परिवार सत्ता में अलग-अलग भूमिकाएं निभाता है जो आम तौर पर राजशाही या तानाशाही में पाया जाता है. इस बार लोकतंत्र में इस अनोखी त्रिमूर्ति की सिर्फ एक भूमिका है- संसद में नरेंद्र मोदी की बीजेपी से मुकाबला करना. संत सोनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार मौन है. बिना व्यक्तिगत हमले किए वह गैर बीजेपी दलों को एक साथ रखती हैं. वह राजनीतिक रूप से बीजेपी और मोदी के खिलाफ खुद को ‘जॉन ऑफ आर्क’ के रूप में पेश करती हैं. सोनिया की स्तुति 2004 में विपक्ष को एकजुट रखने और 16 दलों के गठबंधन यूपीए की नेता होकर भी प्रधानमंत्री पद से इनकार करने पर की गयी.
प्रियंका गांधी के बारे में लेखक कहते हैं कि प्रियंका ने किसी भी गुट से जुड़ने से परहेज किया है. उनका मुख्य काम मोदी पर हमलों को बढ़ाना है क्योंकि वह अपने भाई का बचाव करने या मोदी पर हमला करने में बहुत आक्रामक हैं. जब मोदी ने राहुल को ‘शहजादा’ कहा तो उन्होंने जवाब में मोदी को ‘शहंशाह’ कह डाला. गांधी परिवार ने लुटियन के दिग्गजों के रूप में अपनी स्थिति बनाई है जो चुनावी और कानूनी युद्ध के मैदानों में राजनीतिक रूप से उलझे हुए हैं.
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि गठन के बाद से महाराष्ट्र को 20 मुख्यमंत्री मिले हैं जिनमें शरद पवार समेत 15 मुख्यमंत्री कांग्रेस से रहे हैं. विपक्ष के पांचों मुख्यमंत्रियों ने 64 साल, 6 महीने शासन किया है. महाराष्ट्र हाल के वर्षों में विकास के विभिन्न मानदंडों पर पिछड़ गया है. आंकड़ें इसकी गवाही देते हैं. राज्य की अर्थव्यवस्था के घोर कुप्रबंधन को लेकर अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं. बेरोजगारी की स्थिति बदतर है. युवाओं के बीच बेरोजगारी दर 10.8 फीसद के स्तर पर है. शहरी महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर 11.1 फीसद के स्तर पर है. किसानों की दुर्दशा का भी लेखक जिक्र करते हैं. सन 2023 में महाराष्ट्र में किसानों द्वारा आत्महत्या के 2,851 मामले दर्ज किए गये.
पी चिदंबरम लिखते हैं कि प्याज पर केंद्र सरकार की नीति को ही लें. पहले इसने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. विरोध के बाद प्रतिबंध हटाया गया. लेकिन, न्यूनतम निर्यात मूल्य और 40 फीसद का निर्यात शुल्क निर्धारित कर दिया गया. इससे किसानों को भारी नुकसान हुआ और भारत ने वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी खो दी. जुलाई तक पंद्रह लाख टन के सामान्य निर्यात के मुकाबले इस साल निर्यात सिर्फ 2.6 लाख टन रहा. ‘डबल इंजन’ वाली सरकार के दावे खोखले हैं. पहला इंजन ट्रेन को गुजरात की ओर मोड़ रहा है और दूसरा इंजन बेकार है. अगर मतदाता आर्थिक रूप से पूरी तरह जागरूक स्त्री/पुरुष है तो वह ऐसे उम्मीदवारों और पार्टियों को वोट देगा जो महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था को अन्य सभी बातों से ऊपर रखेंगे.
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में नरेंद्र मोदी की राजनीति को समझने-समझाने की कोशिश की है. जब मोदी सत्ता में आए तो बहुत उम्मीदें थीं. कम्युनिस्टों द्वारा वक्त की गईं वो आशंकाएं भी गलत साबित हुईं कि मोदी के सत्ता में आने से देश में दंगे होंगे. तब एक कांग्रेसी मित्र ने पूछे जाने पर बताया था कि जब कभी भी मोदी कमजोर होंगे तो वे हिन्दुत्व की आड़ में छिपेंगे. वैसा ही हुआ भी. महाराष्ट्र और झारखण्ड मे चुनाव प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नेरेंद्र मोदी ने ‘एक रहेंगे सेफ रहेंगे’ का नारा दिया. ‘वंदे मातरम्’ की जगह ‘एक रहेंगे सेफ रहेंगे’. स्पष्ट है कि बात हो रही है कि हिन्दुओं और मुसलमानों में बांटा जाए ताकि बीजेपी के लिए हिन्दुओं का मजबूत वोट बैंक बन जाए.
तवलीन सिंह कहती हैं कि हरियाणा जीतने के बावजूद मोदी ये बात भूले नहीं हैं कि लोकसभा चुनावों में इस बार उन्हें बहुमत नहीं मिला. सबसे ज्यादा नुकसान यूपी और महाराष्ट्र में हुआ. यूपी मे बीजेपी की लोकसभा सीट 62 थीं जो घटकर 33 रह गयी हैं. महाराष्ट्र में जहां 2019 में बीजेपी ने 23 लोकसभा सीटें जीती थीं अब सिर्फ नौ रह गयी हैं. इस नुकसान को नरेंद्र मोदी किसी भी तरह से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नहीं होने देना चाहते. बिल्कुल वैसे ही हो रहा है जैसे कांग्रेसी मित्र ने 2014 में आशंका जताई थी. मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में स्वच्छ भारत, जनधन और उज्जवला जैसी योजनाओं पर बल दिया था लेकिन अब अपने दूसरे कार्यकाल में हिन्दुत्व उनका सबसे बड़ा हथियार बन चुका है. पिछले हफ्ते मोदी ने यहां तक इल्जाम लगा दिया कि कांग्रेस अब पाकिस्तान की भाषा बोलने लग गयी है. शायद भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में अपनी मिली जुली महायुति सरकार बचा ले जाएगी लेकिन मुसलमानों के खिलाफ जो नफरत फैलाई जा रही है उसका चुनाव के बाद बहुत भारी नुकसान होगा और उसका हिसाब लगाना भी मुश्किल है.
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