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संडे व्यू: गुजरात में भूमिपुत्र का सवाल, मीडिया रिपोर्ट पर न जाइये

नौकरशाही सब पर भारी, क्या है ओबामा का जादू, संडे व्यू में पढ़ें बेस्ट आर्टिकल

दीपक के मंडल
भारत
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सुबह मजे से पढ़ें संडे व्यू जिसमें आपको मिलेंगे अहम अखबारों के आर्टिकल्स. (फोटो: iStockphoto)
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सुबह मजे से पढ़ें संडे व्यू जिसमें आपको मिलेंगे अहम अखबारों के आर्टिकल्स. (फोटो: iStockphoto)
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बस! इतने में ही खुश

पांच तिमाहियों के बाद लगातार गिरावट के बाद जुलाई-सितंबर की तिमाही में इकोनॉमी में तेजी दर्ज की गई. टाइम्स ऑफ इंडिया में वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार स्वामीनाथन एस अंकलसरैया ने इस पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, लोग इकोनॉमी में इस बदलाव को लेकर खुश हैं. मुझे अचंभा हो रहा है कि वे 6.3 फीसदी विकास दर पर रोमांचित हैं. हमारा मानक कितना गिर गया है!

स्वामी लिखते हैं, शायद इकोनॉमी नीचे से ऊपर जा रही है. लेकिन अब भी वह काफी निचले स्तर पर है. 2008-09 की महामंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट की है, लेकिन उस दौर में भी इसकी ग्रोथ रेट 6.9 फीसदी थी. हम वहां से भी नीचे हैं. आशावादी इसे लेकर खुशियां मना रहे हैं. लेकिन इसकी सटीक प्रतिक्रिया होगी- यह काफी नीचे चली गई है.

स्वामी ने लिखा है कि भारतीय इकोनॉमी को रफ्तार देने वाले सारे सेक्टर अब चूक गए हैं. एक वक्त में आईटी सेक्टर 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा था लेकिन अब सिंगल डिजिट ग्रोथ पर चल रहा है. फार्मा सेक्टर पर कड़ी प्रतिस्पर्धा और बढ़ती कीमतों का दबाव है.

ऑटो सेक्टर धीमा हो गया लेकिन ऊंचे बेस से अभी भी ठीक प्रदर्शन कर रहा है. इस बीच भैंस के मांस के निर्यात में भारत काफी आगे थे लेकिन गोरक्षकों ने इसका भी बेड़ा गर्क कर दिया.

अब भारत को प्रोडक्टिविटी बढ़ानी है. आसानी से हासिल चीजें अब खत्म हो रही हैं. उत्पादकता बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत है. इसका मतलब सारी सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ानी होगी यानी पुलिस से लेकर अदालत तक और एजुकेशन से लेकर हेल्थ तक.

गुजरात चुनाव की मीडिया रिपोर्टों पर न जाइए

गुजरात चुनाव में किसे जीत मिलेगी? टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वप्न दासगुप्ता लिखते हैं इस चुनाव को लेकर राजनीतिक और पत्रकार व्यस्त हैं. हर कोई जो ताजा घटनाक्रमों पर नजर रखता है उसकी गुजरात के नतीजों को लेकर अपनी राय है. ज्यादातर लोग मीडिया रिपोर्टों और वहां के घटनाक्रमों के आधार पर राय बना रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि बीजेपी के अंदर नतीजों को लेकर घबराहट है.

मीडिया की इस तरह की रिपोर्टें यूपी में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान आखिरी दौर की याद दिला रही हैं जब खुद नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए उतरे थे. लोग कह रहे हैं कि गुजरात में कड़ा मुकाबला है और अगर बीजेपी जीतेगी तो मामूली अंतर से.

दरअसल चुनाव से पहले की रिपोर्टों से वोटर के मूड का ज्यादा पता नहीं चलता. भाजपा प्रमुख अमित शाह ने हाल में एक गेट-दुगेदर में कहा, जब तक वोटों की गिनती शुरू नहीं हो जाती तब तक मीडिया हर चुनाव में कड़ा मुकाबला का जाप करता रहा है. अगर लहर है तो पहले पता नहीं चलता. वोटर आखिरी वक्त में फैसला करता है.

दासगुप्ता लिखते हैं- जब 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को भारतीय चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत मिली थी, तब भी वोटिंग से पहले मीडिया में यही कहा जा रहा था कि पार्टी को हल्की बढ़त मिलेगी. इलाहाबाद से चुनाव लड़ रहे अमिताभ बच्चन के बारे में कहा गया था स्टार होने की वजह से चुनाव में ग्लैमर पैदा हो गया है.

हेमवती नंदन बहुगुणा उन्हें हरा देंगे. लेकिन अमिताभ को भारी जीत मिली. गुजरात में पाटीदारों की नाराजगी पर खूब लिखा जा रहा है. लेकिन क्या कांग्रेस और पाटीदारों में हुआ समझौता दूसरे समुदायों को बीजेपी की ओर नहीं ले जाएगा. हर चुनाव में नतीजों का अनुमान लगाना काफी जटिल होता है. इसलिए गुजरात में किसी लहर या झुकाव पर बात न करके 18 दिसंबर का इंतजार करना चाहिए, जब नतीजे आएंगे.

गुजरात के भूमिपुत्र का सवाल क्यों

दैनिक जनसत्ता में पी चिदंबरम ने‘गुजरात के भूमिपुत्र’पर सवाल उठाए हैं. चिदंबरम लिखते हैं, पीएम ने भुज (गुजरात) में अपने चुनाव प्रचार का आरंभ यह कहते हुए किया कि वे ‘गुजरात के बेटे’ हैं, और चेतावनी दी कि कोई भी गुजरात आता है और यहां के भूमिपुत्र के खिलाफ आरोप लगाता है तो उसे राज्य की जनता माफ नहीं करेगी. मेरे खयाल से प्रधानमंत्री का ऐसा करना असामान्य है.

चिदंबरम कहते हैं, मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं. उन्होंने अच्छे दिन का वायदा किया था. उन्हें गुजरात की जनता से ताल्लुक रखने वाले मुद्दों पर बोलना चाहिए- सरदार सरोवर बांध पर, उना कांड पर, शहरों और कस्बों में एक खास समुदाय के लोगों पर बंदिशें थोपे जाने पर, गुजरात पेट्रोलियम निगम की वित्तीय स्थिति पर, नैनो कार परियोजना पर, कुपोषित बच्चों पर, स्त्री-पुरुष अनुपात पर, और शराब के अवैध कारोबार के फलने-फूलने पर. उन्हें उन मुद्दों पर भी बोलना चाहिए, जो सारे भारत से ताल्लुक रखते हैं, जैसे किसानों की मुसीबतों पर, दलितों के उत्पीड़न पर, अल्पसंख्यकों के प्रति हो रहे भेदभाव पर, अनुसूचित जनजातियों को वनाधिकार और अन्य अधिकारों से वंचित किए जाने पर, बेरोजगारी पर, महंगाई पर, छोटे उद्यमों के संकट पर, आरक्षण पर, बहुसंख्यकवाद पर, असहिष्णुता पर, तथाकथित नैतिकता या हिंदुत्व के नाम पर होने वाले उत्पात पर, राफाल रक्षा सौदे पर, और जीडीपी की वृद्धि दर पर.

किसी ने भी गुजरात की अस्मिता (गरिमा) को चोट नहीं पहुंचाई है। किसी को भी गुजरात या गुजरातियों से नफरत नहीं है। मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बहुत पहले ही, भारत के लोगों और केंद्र की सरकारों (कांग्रेस की सरकारों सहित) ने महात्मा गांधी से लेकर असंख्य गुजरातियों के योगदान को पहचाना था.

नौकरशाही सब पर भारी

दैनिक जनसत्ता में लिखे अपने कॉलम में तवलीन सिंह ने देश की नौकरशाही पर वार किया है. वह लिखती हैं- मैं आपसे कहूं अगर कि कुछ ऐसे लोग हैं अपने इस भारत देश में, जो प्रधानमंत्री से भी ज्यादा ताकतवर हैं, तो आप शायद मुझे पागल समझेंगे। लेकिन ऐसा है. हैं ऐसे लोग. ये वे लोग हैं, जिनको देहातों में बड़े साहब कहा जाता है और जिनको हम सरकारी अधिकारी कहते हैं.

इनको देख कर ही भारत के आम आदमी का सबसे बड़ा सपना है किसी न किसी तरह सरकारी नौकरी हासिल करना. नौकरी मिलते ही जिंदगी बन जाती है. घर, गाड़ी, बिजली, पानी सब मिल जाता है अपने सरकारी अधिकारियों को और जहां प्रधानमंत्री को हर पांच साल जनता के पास जाकर वोट मांगने होते हैं, इनको यह कष्ट भी नहीं उठाना पड़ता. मोदी के सपने ये लोग कभी पूरे नहीं होने देंगे.

गलती मोदी की है या उनके अधिकारियों की, आप फैसला करें. झारखंड में भारतीय जनता पार्टी का शासन है, लेकिन जब नन्ही संतोषी वहां के छोटे गांव में भूख से मरी थी सितंबर के आखिरी दिनों में, तो सरकारी अधिकारियों ने बिल्कुल वही किया, जो करते आए हैं हमेशा से.

संतोषी की मां कहती रही पत्रकारों से कि उसकी बेटी दम तोड़ते समय भी भात मांगती रही थी. चावल थे नहीं घर में छह महीनों से, क्योंकि आधार कार्ड के बिना राशन दुकान से सस्ते चावल मिले नहीं थे उस परिवार को. शर्म से डूब मरना चाहिए था.

झारखंड सरकार के अधिकारियों को, लेकिन ऐसा कभी नहीं करते हैं ये लोग, सो संतोषी की मौत का कारण बीमारी साबित करने में लग गए. सरकारी अधिकारियों की मानसिकता में मोदी परिवर्तन लाए होते तो कम से कम इतनी दर्दनाक घटना के बाद थोड़ी दया, थोड़ी शर्म तो दिखाते.

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ओबामा का जादू

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स समिट में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ अपनी बातचीत का अनुभव साझा किया है. ओबामा से मुलाकात कर वह रोमांचित हैं. उनकी खुशी छिप नहीं रही है. करन लिखते हैं- ओबामा ने शानदार वक्ता हैं और बेहद इंटेलिजेंट हैं.वह सही में खास हैं.क्योंकि वह छोटी-छोटी बातों को याद रखते हैं और बोलते हुए उनका जिक्र करते हैं.

दिग्गज राजनेताओं के पास अक्सर इन छोटी-छोटी चीजों के लिए वक्त नहीं होता है. लेकिन दिग्गज नेताओं में सबसे शानदार, ओबामा इन सबसे अलग हैं. जब हमारी मुलाकात कराई जा रही थी उन्होंने नोटिस किया मैं टाई पहनी हुई है. उन्होंने कहा, ओ डियर , आप क्या इस सेशन को मॉडरेट कर रहे हैं. मुझे भी टाई पहननी चाहिए थी.

क्या ऐसे ठीक है या मैंने टाई न पहन कर गलती कर दी है. जब सेशन शुरू हुआ तो मैंने इस खास शख्स का दूसरा पहलू देखा. कुछ ऐसे सवाल थे जिन्हें वे पूछना पसंद नहीं करते लेकिन वे इन सवालों का मजाक बना देते थे और ऐसा लगता था कि वे पूरा जवाह देने जा रहे हैं. लेकिन हकीकत में उन्होंने इस टाल कर कुछ दूसरी चीजों पर जवाब देना शुरू कर दिया था.

माइक फेल हो जाने को भी उन्होंने बड़े हल्के में लिया और और कहा कि इन चीजों का मैं आदी हो चुका हूं. मेरे भाषण के दौरान लाइट फेल हो चुकी है. श्रोताओं में बैठे लोग बेहोश हो चुके हैं और यहां तक कि स्टेज भी गिर चुका है. आपका क्या अनुभव रहा है. बहरहाल, हमसे से शायद ही कोई दूसरी बार बराक ओबामा से मिल सकेगा. लेकिन कुछ ही लोग उनके प्रभाव से मुक्त हो पाएंगे.

गुजरात में कांग्रेस के वार में दम नहीं

हिन्दुस्तान टाइम्स में उदयन मुखर्जी लिखते हैं गुजरात में बीजेपी का काफी कुछ दांव पर लगा है. उसे राज्य में सत्ता बरकरार रखनी है. बीजेपी के लिए जीत साबित करेगी 2019 के चुनाव में भी मोदी का नेतृत्व होगा. ज्यादातर भारतीय राज्यों की तरह गुजरात में भी जाति समीकरण अहम है लेकिन यहां बिजनेस का माहौल भी अहम भूमिका अदा करता है.

यह पहलू बीजेपी के खिलाफ जा सकता है क्योंकि पिछला एक साल यहां के कारोबारियों के लिए अच्छा नहीं रहा है. राज्य की टेक्सटाइल इंडस्ट्री की हालत खराब है. मांग में लगातार कमी और बांग्लादेश से मिल रही कड़ी चुनौती से हालात संभल नहीं रहे हैं. सौराष्ट्र में मोरबी के सिरामिक हब को नोटबंदी से काफी चोट पहुंची है और यह अब धीरे-धीरे उबर रहा है.

बिजनेस के अनौपचारिक सेक्टर में जीएसटी फाइलिंग दिक्कत बनी हुई है. शहरी और अर्धशहरी इलाके बीजेपी के मजबूत गढ़ हैं और यहां इन चीजों को लेकर पार्टी को दिक्कत आ सकती है. ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस और बीजेपी में अंतर काफी कम रह सकता है.

इन तमाम हालातों के बावजूद बीजेपी जीत सकती है क्योंकि विरोधी दल इसकी कमजोरियों का फायदा उठाने में नाकाम है. कांग्रेस की योजना में मारक वार की कमी है. प्रो एक्टिव कदम न उठाने का कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. उसे थोड़ी सफलता से संतोष करना होगा. कांग्रेस की इस कमजोरी की वजह से ही बीजेपी को जीत मिलेगी. गुजरात में भी और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी.

तमिलनाडु में कौन किसके पाले में

इंडियन एक्सप्रेस के अपने कॉलम इनसाइड ट्रैक में कूमी कपूर लिखती हैं- पिछले दिनों करुणानिधि से पीएम नरेंद्र मोदी के बाद तमिलनाडु की जटिल राजनीति में भूचाल आ गया. कोई नहीं बता पा रहा था कौन किसके पाले में है.

जयललिता के अस्पताल में निधन के मामले में सबसे पहले शशिकला पर हमले करने अन्नाद्रमुक के राज्यसभा सदस्य वी मैत्रेयन अब शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरण के साथ हैं. सीएम पद के लिए आपस में लड़ने वाले ओ पन्नीरसेलवम और ई के पलानीस्वामी अब दोस्त हैं.

एक्टर कमल हासन ने खुद को एंटी बीजेपी, एंटी अन्नाद्रमुक ताकत के तौर पर आगे किया है. वह द्रमुक को कमजोर करना चाहेंगे. जीके मूपनार के बेटे ने अपने पिता तमिल मनीला कांग्रेस को फिर से खड़ा कर दिया है. उनकी निगाह रजनीकांत पर है, जो बीजेपी की ओर जाते दिख रहे हैं.

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