Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू :अमेरिका में गोली-बंदूक राज, उन्नाव में सीबीआई जवाबदेह 

संडे व्यू :अमेरिका में गोली-बंदूक राज, उन्नाव में सीबीआई जवाबदेह 

गला घोंटा जा रहा संघवाद का, गन से सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
 सुबह मजे से पढ़ें संडे व्यू जिसमें आपको मिलेंगे देश के प्रतिष्ठित अखबारों के आर्टिकल्स
i
सुबह मजे से पढ़ें संडे व्यू जिसमें आपको मिलेंगे देश के प्रतिष्ठित अखबारों के आर्टिकल्स
(फोटो: pixabay)

advertisement

गला घोंटा जा रहा है संघवाद का

पी चिदम्बरम ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपने आलेख में संघवाद के दमन का सवाल उठाया है. इसके लिए उन्होंने सदन के दोनों सदनों में बड़ी संख्या में पारित हुए विधेयकों का हवाला दिया है. वे लिखते हैं कि भाजपा सरकार अलग तरह की सरकार है जो राज्यों के अधिकारों का सम्मान नहीं करती, न ही संवैधानिक सीमाओं या उसकी बारीकियों का ध्यान रखती है.

राज्यसभा में छल-प्रपंच और साम-दाम-दंड-भेद की नीति के जरिए जिस तरीके से विधेयक पारित कराए गये हैं वह संघवाद के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में काफी कुछ बता देता है.

लेखक ने लिखा है कि राज्यसभा की जिम्मेदारी राज्यों के लिए अधिक होती है मगर राज्यों के अधिकारों को नजरअंदाज करते हुए बीते दिनों विधेयक पारित हुए हैं और ये बगैर किसी विरोध के पारित हुए हैं.

विपक्ष के किसी भी संशोधन को स्वीकार नहीं किया गया है. उदाहरण के लिए चिदम्बरम ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक का जिक्र किया है जिसमें 4 साल के कार्यकाल में हर सदस्य (राज्य) को दो साल का कार्यकाल दिया गया है. वे लिखते हैं कि करीब 10 गैर धन विधेयकों को धन विधेयक की तरह पारित कराया गया ताकि राज्यसभा उसकी छानबीन न कर सके या संशोधन प्रस्ताव से बचा जा सके.

गन से मौत में अमेरिका अव्वल

न्यूयॉर्क टाइम्स ने निकोलस क्रिस्टॉफ का पूर्व प्रकाशित आलेख दोबारा प्रकाशित किया है जिसमें शूटिंग की घटनाओं को रोकने के बारे में विस्तार से चर्चा है. अमेरिका के अल पासो में हुई शूटिंग की घटना में अब तक 18 लोग मारे गये हैं. 2017 में टेक्सास चर्च में हुई ऐसी ही घटना के बाद यह दूसरी बड़ा हमला है.

तब 26 लोगों की जानें गयी थीं. निकोलस ने अपने आलेख में इस बात की ओर ध्यान दिलाया है कि अमेरिका में 88.3 प्रतिशत लोगों के पास गन हैं. दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले यह ज्यादा है. वे उदाहरण देते हैं कि जापान में 100 लोगों में एक के पास गन है और वहां साल में बंदूक से महज 10 लोगों की मौत होती है. अमेरिका में प्रति लाख आबादी पर एक व्यक्ति की गन फायरिंग में मौत होती है. दुनिया में यह सबसे ज्यादा है.

निकोलस लिखते हैं कि अमेरिका में जितने लोग वाहनों की दुर्घटना में मरते हैं उतने ही गन फायरिंग में मारे जाते हैं. वाहनों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, लेकिन गन पर लगाया जा सकता है. ऐसा करके बेवजह मौत रोकी जा सकती है.

लेखक ने इस सिद्धांत की वकालत की है कि कम गन होंगे तो कम हत्याएं होंगी. इसके लिए उन्होंने नेशनल राइफल एसोसिएशन के सुझाव का हवाला दिया है जिसमें 2012 में केवल 259 मौत को ही सही ठहराया गया था. अमेरिका में 2016 में बंदूक से 22 हज़ार लोगों ने आत्महत्या की थी जबकि 11, 760 लोगों की बंदूक से हत्या की गयी थी. आत्मरक्षा में 599 लोग मारे गये थे जबकि सामूहिक शूटिंग की घटना में 456 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी.

उन्नाव केस : सीबीआई ने खतरे में डाली पीड़िता की जान

टाइम्स ऑफ इंडिया में जिब्बी जे कट्टाकयम ने उन्नाव केस में सीबीआई से दो सवाल पूछे हैं. उन्होंने लिखा है कि उन्नाव केस में सीबीआई के पास तीन मामले रहे- रेप, पीड़िता के पिता की हत्या और उन्हें गलत तरीके से आर्म्स एक्ट में फंसाना.

उन्नाव रेप केस में आरोपी बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर (फोटो: IANS)
सीबीआई चार्जशीट फाइल करने में इतनी सुस्त क्यों रही, इसका जवाब उसे देना होगा. दूसरी बात है कि पीड़िता को सुरक्षा देने के दायित्व से भी सीबीआई पीछे रही. ऐसा तब हुआ जब दिसम्बर 2018 में केंद्र सरकार के विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दे दी थी. सीबीआई पहली संस्था हो सकती थी जो इस पर अमल कर दिखाती, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रही.

उन्नाव केस में पीड़िता ने 12 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में जान का डर बताया. उसने हर दरवाजे पर गुहार लगायी. सीबीआई पीड़िता के डर को दूर करने में नाकाम रही. वास्तव में पीड़िता और उसके परिवार की जान को खतरे में डालने के लिए सीबीआई ही जिम्मेदार है. देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी की विश्वसनीयता उन्नाव केस में मिट्टी में मिल गयी है. इस संस्था को सर्वोच्च संस्था कहने से अब बचने की जरूरत है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

100 साल बाद भी देशद्रोह का मतलब अभिव्‍यक्‍त‍ि का दमन

रामचंद्र गुहा ने द टेलीग्राफ में लिखे अपने आलेख में 49 लोगों की लिखी उस चिट्ठी का जिक्र किया है जिसमें उन्होंने खुद हस्ताक्षर किया था. वे इस बात पर दुख जताते हैं कि अपर्णा सेन और श्याम बेनेगल जैसी हस्तियों को भी देशविरोधी बताया जा रहा है. बिहार की एक अदालत में आपराधिक शिकायत दर्ज किए जाने का भी उन्होंने जिक्र किया है जिसमें इन हस्तियों पर 124 ए यानी देशद्रोह समेत कई धाराएं लगायी गयी हैं. लेखक ने 1922 की उस घटना से इसकी तुलना की है जब महात्मा गांधी पर यही धारा लगायी गयी थी.

रामचंद्र गुहा ने उठाए देशद्रोह की धारा पर सवाल. (फोटो: PTI)
लेखक ने खुद पर लगे राष्ट्रद्रोह की धारा पर तब कहा था कि किसी को भी अपने असंतोष व्यक्त करने की पूरी आजादी होनी चाहिए जब तक कि वह हिंसा को प्रेरित नहीं करता. जेल से निकलने के बाद गांधीजी ने कहा था ‘कानून के साथ बलात्कार’. लेखक ने दक्षिण अफ्रीका में भी गांधी की आवाज़ दबाने की कोशिश को याद किया है.

वे लिखते हैं कि उपनिवेशवादी युग में अभिव्यक्ति की आजादी के दमन की तर्ज पर आज दक्षिणपंथी उसी राह पर चल रहे हैं. ममता बनर्जी की सरकार को भी वे लोकतांत्रिक आवाज़ को दबाने वाला बताते हैं. मनमोहन सरकार की ओर से तमिलनाडु के कुंडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर देशद्रोह का केस दर्ज कराने की घटना की भी लेखक याद दिलाते हैं. उनका मानना है कि देशद्रोह की इस धारा को बदलने का वक्त आ गया है.

सिविल सेवकों की तैनाती में विसंगति

आशुतोष दिनेश ठाकुर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में सिविल सेवा परीक्षा में सफल प्रतिभागियों की नियुक्ति को लेकर बने नियमों पर सवाल उठाए हैं. वे लिखते हैं कि 2008 में जो एलोकेशन पॉलिसी बनी थी उसमें विसंगति साफ तौर पर उभरकर सामने आ रही है. कई राज्य ऐसे हैं जो संपन्न हैं और वहां से अधिक संख्या में प्रतिभागी सफल होकर नौकरी में आते हैं. इसके उलट कई राज्य पिछड़े हैं और वहां से सफल होने वाले प्रतिभागियों की संख्या भी कम होती है.

लेखक का मानना है कि स्थिति ऐसी बन रही है कि उत्तर के छात्र उत्तर क्षेत्र में और दक्षिण के छात्र दक्षिणी क्षेत्र में एलोकेशन पा रहे हैं. एससी, एसटी और ओबीसी समेत सभी वर्ग के छात्रों को हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व मिले, इस पर भी जोर दिया जाता है जो जरूरी है.

लेखक का कहना है कि यूपीएससी ने कई बार एसाइनमेंट प्रक्रिया में बदलाव किया है. 2007 और 2008 के बाद 2018 में भी पॉलिसी बनायी गयी है. फिर भी होम कैडर की तुलना में एसाइन्ड कैडर की संख्या तेजी से गिरी है जो चिन्ता का विषय है. एक असंतुलन की स्थिति बन रही है जिस पर विचार करने की जरूरत है.

टेस्ट मैच में चैंपियनशिप का टेस्ट

सुरेश मेनन ने द हिन्दू में टेस्ट क्रिकेट विश्वकप के आयोजन की सोच पर ऐतिहासिक तथ्यों के हवाले से सवाल उठाए हैं. 1912 में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका ने 9 टेस्ट मैच खेले और उसके बाद विजेता की घोषणा की गयी. ऑस्ट्रेलिया ने घरेलू कारणों से अपनी श्रेष्ठ टीम नहीं उतारी थी. दक्षिण अफ्रीका की टीम उतनी बेहतर नहीं थी. एकतरफा होकर यह टूर्नामेंट, बल्कि सीरीज़ करें, इंग्लैंड के नाम रहा. वही सोच अब 2019 में टेस्ट मैचों का वर्ल्ड कप बनकर सामने है.

लेखक लिखते हैं कि विज्डन नामक पत्रिका ने तब भी इसकी वकालत की थी और आज भी वह टेस्ट मैचों के विश्वकप की वकालत कर रहा है. अगर यह टूर्नामेंट होता है तो चैम्पियन तय करने के लिए 9 देशों की टीमें 72 मैच खेलेंगी और 27 सीरीज़ इस दौरान होंगे.

दो साल तक चलने वाले इस टूर्नमेंट के दो संस्करणों में भारत और पाकिस्तान आपस में भिड़ेंगी, इसकी सम्भावना नहीं है. दो साल तक चले इस मुकाबले में चोटी की टीमे इंग्लैंड के लॉर्ड्स मैदान पर अंतिम मुकाबला खेलेगी. लेखक का मानना है कि जो चीज सम्भव नहीं हो सकती, उसके लिए प्रयास नहीं करना चाहिए. क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में एक पैटर्न पर चैम्पियनशिप की उम्मीद करना गलत है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 04 Aug 2019,08:53 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT