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संडे व्यू : मोदी का मास्टस्ट्रोक है ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’? महिलाओं की इज्जत गाय से भी कम?

पढ़ें इस इतवार प्रभु चावला, पी चिदंबरम, रामचंद्र गुहा, तवलीन सिंह और करन थापर के विचारों का सार

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू में देश के विद्वानों के विचारों का सार</p></div>
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संडे व्यू में देश के विद्वानों के विचारों का सार

फोटो: क्विंट हिंदी 

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‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ कमजोरी है या मास्टरस्ट्रोक?

प्रभु चावला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस के भाषण में वैचारिक रूप से असंगत शब्द का चयन राजनीतिक पंडितों और चापलूसी करने वाले प्रभावशाली लोगों, दोनों को हैरान कर गया. उन्होंने ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ शब्द गढ़कर नई वैचारिक धारा को आगे बढ़ाया है. उन्होंने घोषणा की, “ऐसे कानून जो हमारे देश को धर्म के आधार पर विभाजित करते हैं और भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, उनका आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. इसलिए मैं जोर देकर कहता हूं कि देश के लिए धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की मांग करने का समय आ गया है...” प्रधानमंत्री ने अफसोस जताया कि भारत 75 साल से ‘सांप्रदायिक नागरिक संहिता’ के पीछे ‘पड़ा हुआ है. उसे धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की ओर बढ़ना चाहिए.

प्रभु चावला लिखते हैं कि मोदी को अच्छी बहस पसंद है. अगर उनका लक्ष्य देश भर में हंगामा मचाना या उनके नये गढ़े गये कथानक के लिए समर्थन जुटाना था तो उन्होंने इसे भरपूर मात्रा में हासिल किया. हाइब्रिड अहंकार के बीचे बोए गये. इसमें किसी बाहरी मान्यता या परामर्श की आवश्यकता नहीं थी.

संघ परिवार के कट्टर ब्रिगेड को नए धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के महत्व को समझने में कठिनाई हो रही है. भगवा ब्रिगेड एकसमान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को लागू करने की बात कहते हुए चुनाव दर चुनाव लड़ता चला आ रहा है. विपक्ष का नजरिया है कि अब नरेंद्र मोदी में अपने नैरेटिव के पीछे लोगों को हांकने की क्षमता घट गयी है, इसका प्रमाण है धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता. चूंकि पीएम के पास अब गणितीय बहुमत की शक्ति नहीं है इसलिए यह मुहावरा उनकी एजेंडा निर्माता छवि को बनाए रखने के लिए चतुर संयोजन था. बीजेपी शासित उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, यूपी और हरियाणा ने या तो यूसीसी पर कानून पारित कर दिया है या ऐसा करने की अपनी मंशा की घोषणा की है. बीजेपी के अंदरूनी सूत्र धर्मनिरपेक्षता पर प्रहार को मोदी का मास्टरस्ट्रोक बताते हैं.

विभाजनकारी सोच

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का 11वां भाषण कीर्तिमान है. 98 मिनट का भाषण लालकिले के प्राचीर से दिया गया उनका सबसे लंबा भाषण था. इसमें उन्होंने कहा कि कि “कुछ लोग हैं जो भारत की प्रगति को पचा नहीं पाते हैं. कुछ लोग भारत के लिए अच्छी चीजों की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं.“

लेखक ये जानना चाहते हैं कि ये ‘कुछ लोग’ कौन हैं जिन्हें कृषि, सूचना प्रोद्योगिकी परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष आदि में भारत की तरक्की पर गर्व न हो. क्या प्रधानमंत्री उन 26.2 करोड़ मतदाताओं की ओर इशारा कर रहे थे जिन्होंने उनके और एनडीए के खिलाफ मतदान किया था? या उन गृहणियों की ओर, जो बढ़ती महंगाई के बोझ की शिकायत करती हैं? या उन सैनिकों और पूर्व सैनिकों की ओर, जो चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र पर बेशर्मी से कब्जा किए जाने के बावजूद भारत के चुपचाप पीछे हटने से हैरान हैं?

चिदंबरम लिखते हैं कि प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता होनी चाहिए. हमने सांप्रदायिक नागरिक संहिता के तहत पचहत्तर वर्ष बिताए हैं. अब हमें धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की ओर बढ़ना चाहिए. लेखक इस समझ को खराब, गलत और पूर्वाग्रह का मिश्रण बताते हैं. हर ‘पर्सनल लॉ’ संहिता धर्म पर आधारित है जिसमें हिंदू संहिता भी शामिल है मगर इससे ‘संहिता’ सांप्रदायिक नहीं हो जाएगी. विवाह पर एक धर्मनिरपेक्ष संहिता भी है जिसका नाम विशेष विवाह अधिनियम है, लेकिन यह भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं है. लेखक का मानना है कि यूसीसी या ‘एक देश एक चुनाव’ का विचार ही खतरे की घंटी है.

गाय से भी कम महिलाओं की इज्जत

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जब कोलकाता के अस्पताल में बर्बर घटना की खबर मिली तब वह कंबोडिया में थीं. अपनी भारतीयता और भारतीय संस्कृति पर गौरवान्वित हो रही थीं. खमेर राजाओं ने हजार साल पहले जो मंदिर बनाए थे वे अद्भुत हैं. दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर अंकोरवाट की खासियत यह है कि उसकी पत्थर की दीवारों पर रामायण और महाभारत की पूरी कहानी तराशी गयी है. दरिंदगी की खबर ने सिर शर्म से झुका दिया. अगले दस दिन की दक्षिण-पूर्वी देशों की यात्रा के दौरान हर दिन यही घटना सुर्खियों में रही. विदेशी पत्रकारों ने हिसाब लगाया कि हर दिन भारत में सौ बलात्कार होते हैं. मुंबई लौटने पर नई खबर मिली कि चार साल की दो बच्चियों का यौन शोषण ठाणे के प्राथमिक स्कूल में हुआ और गुस्से में लोग सड़क पर हैं.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि किसी अखबार ने ध्यान दिलाया कि हाथरस की घटना में पीड़िता के परिवारवाले आज भी डर-डर कर अपना जीवन बिता रहे हैं. ठाकुर समाज उनके पीछे पड़ा हुआ है क्योंकि पीड़िता ने मरने से पहले उन ठाकुर लड़कों के नाम लिखवाए थे जिन्होंने गन्ने के खेत में बलात्कार के बाद उसके दुपट्टे से उसका गला घोंटा था.

सवाल पूछे जा रहे है कि क्यों नहीं हम औरतों के साथ इस तरह की दरिंदगी रोक पाते हैं. जवाब है कि पुरुष प्रधान हमारे देश में समाज के बड़े नेता भी बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को गंभीरता से नहीं लेते. लेखिका आरएसएस के सरसंघचालक के उस बयान की याद दिलाती हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि ऐसी घटनाएं सिर्फ बड़े शहरों में होती हैं जहां पश्चिमी सभ्यता का असर है. इस बयान को गलत बताते हुए लेखिका का कहना है कि गांवों में औरतों की इज्जत गायों से भी कम होती है. सामुदायिक दुश्मनी में महिला को नंगा घुमाना, विजातीय प्रेम विवाह में लड़की की हॉरर किलिंग की घटनाएं आम हैं.

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नटवर की यादें

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि नटवर सिंह को बहुत करीब से जानने का अवसर उन्हें 1976 में मिला जब वे लंदन में डिप्टी हाई कमिश्नर थे. तब लेखक कैम्ब्रिज में इंडिया सोसायटी के अथ्यक्ष थे. तब भारत में आपातकाल लागू था. भारत की विवादास्पद छवि का बचाव करना तब नटवर सिंह का काम था.

इंडिया सोसायटी की मीटिंग में इसी मकसद से लेखक ने उन्हें बुलाया. डिनर के लिए बेम्ब्रोक कॉलेज में इकट्ठा हुए. जिस हॉल में उन्हें बोलना था, वह खाली था. कॉफी के बाद जब वहां पहुंचे तो वहां सन्नाटा था. नटवर सिंह ने कहा, “आह, यह लोकप्रियता की सजा है!”

करन थापर लिखते हैं कि सोसायटी के अन्य अधिकारी और स्वयं उनके लिए शर्मिंदगी की स्थिति थी. नटवर सिंह ने कहा, “यह मेरे लिए तुम लड़कों को ड्रिंक पिलाने का एक अच्छा बहाना है....मुझे लगता है कि तुम्हारा कॉलेज बार बंद नहीं होगा.” वे दो घंटे तक रुके. उनकी बातें सुनकर हम मंत्रमुग्ध हुए. नटवर कई विषयों पर कथावाचक थे. उनका हास्यबोध भी बहुत अच्छा था. कहने की जरूरत नहीं है कि आपातकाल पर चर्चा नहीं हुई. मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस बात का खेद था. हमें निश्चित रूप से खेद नहीं था. दशकों बाद जब वे विदेशमंत्री बने तो शपथग्रहण के बाद सुबह-सुबह उन्हें फोन किया. बीबीसी वर्ल्ड सर्विस हार्ड टॉक इंडिया के लिए इंटरव्यू के वास्ते अनुमति ली. थोड़ी देर बाद उनका वापस फोन आया. पूछा कि बीबीसी को बताया है कि वे ईएम फोस्टर के दोस्त हैं? नटवर के लिए विदेश मंत्री होने से ज्यादा ईएम फोस्टर का दोस्त होना अहम था. उन्हें अपनी उपलब्धियों में से अपनी किताबों पर ज्यादा गर्व था. अपने पूर्ववर्ती विदेश मंत्री जसवंत सिंह के बारे में नटवर हमेशा धीमे और नपे-तुले लहजे में बोलते थे. गैजेट के मामले में नटवर बहुत अच्छे नहीं थे. वे मोबाइल को भी सही तरीके से हैंडल करना नहीं जानते थे.

विश्वगुरु से विश्वामित्र तक

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान और उनके दूसरे कार्यकाल में भी भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है, ऐसा कहा जाता रहा. कहा जाता था कि हमारी सभ्यतागत गहराई, हमारी समृद्ध दार्शनिक परंपराएं और हमारी विशिष्ट आध्यात्मिक प्रथाओं ने हमें संस्कृति के मामले में लंबे समय तक अग्रणी स्थान पर रखा है. अब भारत की आर्थिक और तकनीकी सफलता के साथ हमारा वैश्विक नेतृत्व लगभग सुनिश्चित हो गया है. यह दावा इतना व्यक्तिगत था कि न केवल भारत बल्कि खुद नरेंद्र मोदी को दुनिया का नेतृत्व करने वाला बताया गया.

रामचंद्र गुहा याद दिलाते है कि जी 20 बैठक की एक ऐसी तस्वीर का प्रचार हुआ. इसमें हमारे प्रधानमंत्री को फ्रेम के सामने एक भव्य इमारत की सीढ़ियों से उतरते हुए देखा गया जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति, फ्रांसीसी राष्ट्रपति, ब्रिटिश प्रधानमंत्री और अन्य लोग चुपचाप और आज्ञाकारी उनके पीछे चल रहे थे. ऐसे प्रचारों का असर भी हुआ. 2023 रोटेशनल जी20 की प्रेसीडेंसी संभालने के बाद एक मित्र ने दिल्ली मेट्रो में किसी को यह कहते हुए सुना, “आपको पता है कि मोदीजी सिर्फ हमारे देश के नहीं, लेकिन बीस देश के प्रधानमंत्री हैं?”

लगभग उसी सत्तारूढ पार्टी के प्रचार में सूक्ष्म बदलाव भी दिखाई देने लगा. अब कहा जाने लगा कि भारत विश्वामित्र है यानी सभी का मित्र. यह मोदी शासन की महत्वाकांक्षाओं का एक अलग ही अवमूल्यन था.

गुहा लिखते हैं कि हमारे निकटतम पड़ोसी देशों के नागरिक भारत को विश्वसनीय या भरोसेमंद मित्र नहीं मानते. कई बांग्लादेशी भारतीय इरादों को लेकर आशंकित हैं. मोदी शासन द्वारा शेख हसीना वाजेद के निरंकुश तरीकों का उत्साहपूर्वक समर्थन के कारण यह स्थिति बनी है. पिछले जनवरी में हसीना एक स्पष्ट धांधली वाले चुनाव में दोबारा चुनी गईं. तब भी भारत के चुनाव आयोग ने बांग्लादेश के चुनाव आयोग की प्रशंसा की. श्रीलंका और नेपाल में भी यह भावना मौजूद है कि भारत ने अहंकारपूर्ण व्यवहार किया है. इन तीन देशों के कुछ नागरिकों द्वारा हाल ही में संयुक्त रूप से जारी किए गये एक बयान पर विचार करें जिसमें कहा गया है कि भारत सरकार हमारी संबंधित राजनीति में हस्तक्षेप करने से बचें.

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