Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू: त्रिपुरा की जीत के राजनीतिक मायने, पाक में श्रीदेवी!

संडे व्यू: त्रिपुरा की जीत के राजनीतिक मायने, पाक में श्रीदेवी!

प्रमुख समाचार पत्रों में लिखे विश्लेषण पढ़े यहां

दीपक के मंडल
भारत
Updated:
देश दुनिया की बड़ी खबरें
i
देश दुनिया की बड़ी खबरें
फोटो:iStock

advertisement

त्रिपुरा की जीत-ओडिशा, बंगाल के लिए संकेत

आखिर बीजेपी ने त्रिपुरा में लाल किला फतह कर ही लिया. मेघालय और नगालैंड में भी वह सरकार बनाने की तैयारी में है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने बीजेपी की इस जीत पर `अमर उजाला’ में लिखा है- इन नतीजों के बाद एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर बीजेपी की जहां राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदगी साबित हो गई है वहीं यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अखिल भारतीय स्वीकार्यता का प्रमाण भी है.

त्रिपुरा में बीजेपी की शानदार जीत फोटो:क्विंट हिंदी

नीरजा लिखती हैं- त्रिपुरा में माणिक सरकार की छवि बेहद साफ-सुथरी है. और उन्होंने कई अच्छे काम किए हैं. ऐसे में बीजेपी की जीत की वजह जानने को उत्सुक लोगों को समझना चाहिए कि सीपीएम एक काडर आधारित पार्टी है.

बीजेपी के लिए दो से तीन साल के भीतर काडर तैयार कर सीपीएम के काडर को उखाड़ फेंकना कोई आसान काम नहीं था. मानिक सरकार की लोकप्रियता बहुत थी लेकिन निचले स्तर पर भ्रष्टाचार चरम पर था. और युवा पीढ़ी काम-धंधा और रोजगार न होने से सरकार से नाराज थी.

बीजेपी ने इसी को भुनाया. त्रिपुरा में उसकी यह जीत खास कर पश्चिम बंगाल ओडिशा जैसे राज्यों के लिए एक स्पष्ट संकेत है.

ये भी पढ़ें- पूर्वोत्तर में चला मोदी मैजिक, सिस्टर स्टेट में खिला कमल

चीन-यूएस का ट्रेड वॉर और भारत

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ नरेंद्र मोदी (फोटो: PTI)

टाइम्स ऑफ इंडिया के अपने कॉलम में स्वामीनाथन एस अंकलसरैया ने अमेरिका की ओर से इस सप्ताह स्टील और एल्यूमीनियम पर आयात शुल्क लगाए जाने के बाद चीन के साथ होने वाले इसके संभावित ट्रेड वॉर का बेहद दिलचस्प विश्लेषण किया है. स्वामी ने लिखा है कि भारत भी अब ट्रंप के फायरिंग जोन में आ सकता है.

स्वामी लिखते हैं कि चीन मजबूत देश है और वह अमेरिका की इस कार्रवाई का कड़ा जवाब दे सकता. अमेरिका को इसका खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है. चीन अमेरिकी सोयाबीन, मक्का और मीट का बड़ा आयातक. अगर उसने दूसरे देशों से ये चीजें मंगानी शुरू की तो अमेरिका की ताकतवर फार्म लॉबी को करारा झटका लग सकता है.

चीन, अमेरिका के बोइंग विमानों का भी बड़ा खरीदार है और अब तक हजारों विमान खरीद चुका है. चीन बोइंग के बजाय यूरोप की एयरबस को तवज्जो दे सकता है.

चीन ने बहुत ना-नुकुर करने के बाद फार्मास्यूटिकल्स, फिल्म और म्यूजिक के इंटेलक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स कानून को लागू करना शुरू किया है. अगर उसने जवाबी कार्रवाई तो अमेरिका के इन इंडस्ट्रीज को चीन में भारी मुश्किल होगी.

बहरहाल, हार्ले डेविडसन बाइक पर ज्यादा इंपोर्ट ड्यूटी को लेकर ट्रंप भारत को भी चेतावनी दे चुके हैं. हार्ले डेविडसन पर शुल्क घटा कर भारत ने अमेरिका को खुश करने की भी कोशिश है लेकिन ट्रंप इतने से संतुष्ट नहीं है.

भारत अमेरिका से पंगा लेने की स्थिति में नहीं है. लिहाजा वह उसे मनाने की कोशिश करेगा. लेकिन ताकतवर चीन चुप नहीं बैठने वाला. उसकी हैसियत इतनी है कि वह अमेरिका को कड़ा जवाब दे सकता है.

पाकिस्तान में भी श्रीदेवी

श्रीदेवी की मौत से भारत ही नहीं पाकिस्तान भी गमगीन है (फोटोः सोशल मीडिया)

मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी भारत की तरह पाकिस्तान में भी बेहद मशहूर थीं. इस सप्ताह उनके निधन पर पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार मरियाना बाबर ने अमर उजाला में लिखा है कि श्रीदेवी के निधन की खबर जब पाकिस्तान पहुंची तो यहां भी दुख और उदासी छा गई.

बहुत अधिक प्रसार संख्या वाले अंग्रेजी अखबार ‘द न्यूज इंटरनेशनल’ ने श्रीदेवी की याद में एक पूरा पेज दिया. वैसे सभी अखबारों ने श्रीदेवी के निधन की खबर पहले पेज पर छापी. मुझे याद नहीं आता इससे पहले किसी भारतीय फिल्म स्टार को पाकिस्तान में इतना महत्व मिला हो.

सोशल मीडिया पर एक पाकिस्तानी महिला ने लिखा कि जनरल जियाउल हक के मार्शल लॉ के बर्बर दौर में वह श्रीदेवी ही थीं, जो उनकी जैसी अनेक पाकिस्तानी युवतियों को खुशी और राहत देती थीं.

उस महिला फैन लिखा है, 1989 में हमें जियाउल हक से मुक्ति मिली( उसी साल उनकी मौत हुई) और उसी साल श्रीदेवी की फिल्म चांदनी रिलीज हुई थी.उस फिल्म ने हम पाकिस्तानी महिलाओं में भी एक नई शुरुआत की उम्मीद जगाई. चांदनी ने जो किया, वह कई पीढ़ियों तक हमारे शिक्षा संस्थान भी नहीं कर पाए थे- उसने हमें सफेद सलवार-कमीज वाली ड्रेस दी, जो ठंडक और सुकून पहुंचाती थी.

ये भी पढ़ें- श्रीदेवी की मौत की कहानी, खुद उनके पति बोनी कपूर की जुबानी

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कमेंट जरा सोच-समझ कर

वीरेंद्र सहवाग के ट्वीट पर बवाल  (फोटोः Twitter)

द टेलीग्राफ में रामचंद्र गुहा ने क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की विवादास्पद ट्वीट को लेकर टिप्पणी की है, जिसमें केरल में एक आदिवासी युवक की पिटाई में मौत को लेकर उन्होंने पूरी सचाई नहीं बताई थी. केरल की उस युवक को पीट कर मार डालने वाले हिंदू भी थे और मुसलमान भी. लेकिन सहवाग ने सिर्फ मुस्लिम दोषियों की तस्वीर शेयर करते हुए उन लोगों को सिविल सोसाइटी के लिए कलंक करार दिया था.

बाद में कई वेबसाइटों पर सहवाग के इस विवादास्पद ट्वीट की स्टोरी आई. राजदीप और खुद रामचंद्र गुहा के दबाव डालने पर सहवाग ने यह ट्वीट हटा लिया था.

गुहा ने तथ्यों को जाने बगैर टिप्पणी करने के खतरे का उदाहरण देकर कहा है कि गुजरात में जब दंगाइयों ने कांग्रेस एमपी अहसान जाफरी को मार डाला था अरुंधति राय ने लिखा था कि हमलावरों ने जाफरी की दो बेटियों को निर्वस्त्र कर आग में झोंक दिया था. यह बिल्कुल झूठा था. खुद जाफरी के परिवार ने इसका खंडन किया था. अरुंधति ने बाद में माफी मांगी थी

अगर हम तथ्यों को जाने बगैर टिप्पणी करते हैं तो अपनी प्रतिष्ठा तो जाती ही है. सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचता है. सहवाग एपिसोड का दूसरा सबक यह है कि जब भी ऐसी गलती हो माफी मांगी जाए. मुझे यह देख कर राहत मिली कि सहवाग ने यह ट्वीट हटा लिया.

अधिकतम सरकार, अधिकतम नुकसान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटोः Narendramodi.in)

दैनिक जनसत्ता में पी चिदंबरम ने उदार लोकतांत्रिक शासन में आई गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है-शासन के बारे में जिस प्रचलित उक्ति का सबसे ज्यादा बेजा इस्तेमाल हुआ है वह है ‘उस देश का शासन सबसे अच्छा है जो सबसे कम शासित है’. प्रचलित उक्तियों का इतना अधिक अवमूल्यन हुआ है कि वे अपना अर्थ खो बैठी हैं. मौजूदा शासन के संदर्भ में, यह अवमूल्यन पूरी तरह हुआ है.

इस निबंध का मकसद यह सवाल उठाना है कि ‘क्या यही ‘न्यूनतम सरकार’ का वायदा था जो भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान किया था?’ इससे भी अहम सवाल यह है कि ‘निर्णायक नियामकों और प्राधिकरणों में पद खाली रखने से किसे फायदा हो रहा है’, और कि ‘आरटीआइ के कमतर खुलासों और कर संबंधी मामलों के कमतर निपटारों से किसके हित सध रहे हैं?’

जवाब साफ है. हमें आरएसएस और इसकी राजनीतिक शाखा यानी भाजपा के वास्तविक चरित्र के बारे में जानना चाहिए. आरएसएस एक निरंकुशतावादी संगठन है: एक उद्देश्य, एक विचार, एक विश्वास और एक नेता.

अगर लोकतंत्र की अन्य संस्थाएं कमजोर होती हैं, तो इससे वास्तविक और व्यावहारिक अर्थ में, सरकार की ताकत और बढ़ती है. लिहाजा, अन्य संस्थाओं को कमजोर और पंगु बनाने के लिए जान-बूझ कर प्रयास किए जा रहे हैं.

बेंगलुरू कैफे

इंडियन एक्सप्रेस का एक दिलचस्प कॉलम है- ‘गेन्ड इन ट्रांसलेशन’. इसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखने वाले दिग्गज लेखक, साहित्यकार छपते हैं. इस बार कन्नड़ लेखिका प्रतिभा नंदकुमार के कॉलम में बेंगलुरू के कॉफी कल्चर का जिक्र है. एक वाकये का जिक्र करती हुई नंदकुमार लिखती हैं-

एक बार बेंगलुरू आई अपनी एक दोस्त के साथ मैं उन्हें कैफे कल्चर की बानगी दिखाने ले गई. दिन भर कई कैफे का चक्कर लगाने के बाद आखिर में एक रेस्तरां में पहुंची, जहां काउंटर पर एक फोटो लगा था, इसे देख कर उसने कमेंट किया- लगता है इस शहर के ज्यादातर कैफे और रेस्तरां इसी एक शख्स के हैं.

ये सुन कर न सिर्फ मैं बल्कि वहां मौजूद कैशियर समेत कभी लोग हंस पड़े. दरअसल यह तस्वीर राघवेंद्र स्वामी की थी जो 14वीं सदी के संत थे. आखिर राघवेंद्र स्वामी ही तस्वीर क्यों? इसका सीधा जवाब है- बेंगलुरू में शुरुआती कैफे और रेस्तरां ब्राह्मण चलाते थे. बोर्ड पर लिखा होता था ब्राह्मण कैफे या ब्राह्मण टिफिन.

साउथ बेंगलुरू में कैफे कल्चर का बड़ा जोर है. मॉर्निंग वॉकर नियमित तौर पर यहां आते हैं. वे हर धर्म, जाति, समुदाय के होते हैं. यहां आकर वे काफी पीते हैं, बहस-मुबाहसे करते हैं और फिर निकल जाते हैं. नंदकुमार ने इस कैफे कल्चर के इतिहास की दिलचस्प दास्तां बयां की है. जरूर पढ़िये.

मायावती की रणनीति

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने दोनों पार्टियों पर लगाया आरोप(फोटोः PTI)

और आखिर में, लेखों के भारी-भरकम डोज के बाद कूमी कपूर का बारीक विश्लेषण वो इंडियन एक्प्रेस में लिखती हैं- कांग्रेस को मध्य प्रदेश के उपचुनाव में जीत की उतनी खुशी नहीं हुई जितनी राजस्थान में हुई थी. कांग्रेस को लगा था कि एमपी की इन सीटों पर बीएसपी ने कैंडिडेट खड़े नहीं किए हैं इसलिए उसे बहुत फायदा होगा. लेकिन उसके उम्मीदवारों को मामूली अंतर से ही जीत मिली.

कांग्रेस के लिए यह चिंता की बात है क्योंकि वह 2019 के चुनाव में दलितों का साथ चाहती है. इसी रणनीति के तहत गुजरात में राहुल, जिग्नेश मेवाणी का समर्थन कर रहे थे. कांग्रेस को 2019 में मायावती की जरूरत है लेकिन वह कांग्रेस के चांस को डैमेज करना चाहती हैं, इसलिए कर्नाटक में एसडी देवगौड़ा की पार्टी जेडी (एस) से अलायंस किया है.

कुछ लोगों का मानना है कि अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ सीबीआई केस की वजह से वह बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहती. लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वह बेहद चतुर राजनीतिज्ञ हैं और कांग्रेस को किसी भी कीमत पर दलित वोटों पर कब्जा नहीं करना देना चाहती.

ये भी पढ़ें- त्रिपुरा भी फतह, देश के नक्शे पर अब 20 राज्यों में पसरा केसरिया

(लड़कियों, वो कौन सी चीज है जो तुम्हें हंसाती है? क्या तुम लड़कियों को लेकर हो रहे भेदभाव पर हंसती हो, पुरुषों के दबदबे वाले समाज पर, महिलाओं को लेकर हो रहे खराब व्यवहार पर या वही घिसी-पिटी 'संस्कारी' सोच पर. इस महिला दिवस पर जुड़िए क्विंट के 'अब नारी हंसेगी' कैंपेन से. खाइए, पीजिए, खिलखिलाइए, मुस्कुराइए, कुल मिलाकर खूब मौज करिए और ऐसी ही हंसती हुई तस्वीरें हमें भेज दीजिए buriladki@thequint.com पर.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 04 Mar 2018,10:48 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT