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SC ने जय शाह मानहानि केस में द वायर को अपील वापस लेने की दी इजाजत

अदालत में पिछले करीब डेढ़ साल से लंबित इस अपील को वापस लेने की अनुमति दी गई

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भारत
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अदालत में पिछले करीब डेढ़ साल से लंबित इस अपील को वापस लेने की अनुमति दी गई
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अदालत में पिछले करीब डेढ़ साल से लंबित इस अपील को वापस लेने की अनुमति दी गई
(फाइल फोटो: PTI)

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सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह द्वारा दायर मानहानि के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ और उसके पत्रकारों को अपनी अपील वापस लेने की मंगलवार को अनुमति दे दी. जस्टिस अरूण मिश्रा, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने कहा कि उनके खिलाफ मुकदमे की सुनवाई कोर्ट तेजी से पूरा करेगा.

पीठ ने शीर्ष अदालत में पिछले करीब डेढ़ साल से लंबित इस अपील को वापस लेने की अनुमति देते हुये देश में इस समय की जा रही पत्रकारिता पर अपनी नाराजगी जाहिर की. पीठ ने कहा कि अब एक नया चलन शुरू हो गया है कि एक व्यक्ति से उसका पक्ष जानने के लिये प्रतिक्रिया मांगो और उसका जवाब आने से पहले ही पांच छह घंटे में लेख प्रकाशित कर दो.

पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब समाचार पोर्टल और उसके पत्रकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उनके द्वारा दायर अपील वापस लेने का अनुरोध किया. पीठ ने सिब्बल से कहा, ‘‘हमने बहुत ज्यादा झेला है. यह बहुत ही गंभीर विषय है.’’ पीठ ने बार-बार यह टिप्पणी की कि न्यूज पोर्टल सिर्फ चार-पांच घंटे का समय देते हैं और इसके आगे इंतजार किए बगैर ही वो नुकसान पहुंचाने वाले लेख प्रकाशित कर देते हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘संस्था ने इसे झेला है. हमने इसे झेला है. यह किस तरह की पत्रकारिता है. हमें खुद ही इसका संज्ञान क्यों नहीं लेना चाहिए और इसे सुलझा देना चाहिए.’’ निश्चित ही पीठ की यह टिप्पणी न्यायपालिका और न्यायाधीशों के बारे में समाचार पोर्टलों द्वारा प्रकाशित किये गये लेखों के बारे में थी.

पीठ ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि मामला इतने समय तक लंबित रहने के बाद वापस लिया जा रहा है. सिब्बल ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसा हो रहा है और यह चिंता का विषय है.

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पीठ के इस कथन से सहमत थे कि कम समय दिया जाना किसी व्यक्ति के खिलाफ लेख प्रकाशित करने का आधार नहीं होना चाहिए.

द वायर और जय शाह के वकीलों के बीच तीखे सवाल और उनके जवाबों के बीच ही पीठ ने कहा कि इस तरह की पत्रकारिता संस्थान को बहुत नुकसान पहुंचा चुकी है.

पीठ ने कहा कि यह किस तरह की पत्रकारिता है. उसने कहा कि प्रकाशकों और पोर्टलों को जवाब मांगने के कुछ ही घंटे के भीतर आरोपों को सार्वजनिक नहीं कर देना चाहिये.

पीठ ने कहा, ‘‘प्रेस की स्वतंत्रता सर्वोच्च है लेकिन यह एकतरफा नहीं हो सकती. पीत पत्रकारिता की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.’’

इस पर मेहता ने कहा कि यह कम कर कहना है कि समाचार पोर्टल जो कर रहे हैं वह पीत पत्रकारिता ही है.

संबंधित व्यक्ति को अपना पक्ष रखने के लिये पर्याप्त समय नहीं देने वाले समाचार पोर्टल और उनके पत्रकारों के प्रति कठोर टिप्पणियां करने के बाद शीर्ष अदालत ने ‘द वायर’ और उसके पत्रकारों को गुजरात उच्च कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील वापस लेने की अनुमति दे दी.

जय शाह ने पत्रकार रोहिणी सिंह, समाचार पोर्टल के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वर्द्धराजन, सिद्धार्थ भाटिया और एम के वेणु, प्रबंध संपादक मोनोबिना गुप्ता, जन संपादक पामेला फिलिपोज और ‘द वायर’ का प्रकाशन करने वाली फाउण्डेशन फार इंडिपेन्डेन्ट जर्नलिज्म के खिलाफ अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर किया था.

इस पोर्टल के लेख में दावा किया गया था कि केन्द्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद जय शाह की कंपनी के कारोबार में जबर्दस्त विस्तार हुआ है.

जय शाह ने यह लेख प्रकाशित होने के बाद निचली अदालत में मानहानि का मामला दायर किया था.

शीर्ष अदालत ने पिछले साल अप्रैल में कहा था कि प्रेस का गला नहीं घोंटा जा सकता है और कोर्ट ने शाह और समाचार पोर्टल से कहा था कि वे दीवानी मानहानि के वाद को आपस में मिलकर सुलझायें.

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