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शहरी बेघरों के लिए रैन बसेरों की कमी के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई. अपनी आलोचना किये जाने से नाराज सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार अपना काम नहीं करती है और अगर हम कुछ कहें, तो फिर कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार और देश को चलाता है.
जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने इस तरह की तल्ख टिप्पणियां देश में शहरी बेघरों को आवास मुहैया कराने से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान की. बेंच ने सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन योजना 2014 से चल रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में लगभग कुछ नहीं किया है. बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि प्राधिकारियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि यह मामला इंसानों से संबंधित है.
बेंच ने कहा, ‘‘हम उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं, जिनके पास रहने की कोई जगह नहीं है और ऐसे लोगों को जिंदा रहने के लिये कोई जगह तो देनी ही होगी.’’ इसके जवाब में मेहता ने कहा कि राज्य सरकार स्थिति के प्रति सजग है और शहरी बेघरों को रैन बसेरा मुहैया कराने के लिये प्रयास कर रही है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दो हफ्ते के अंदर जरूरी कदम उठाने का निर्देश देते हुये इस मामले की सुनवाई आठ फरवरी के लिये स्थगित कर दी.
बेघरों के लिए आश्रय घर बनाने के मामले में उत्तर प्रदेश का रिकॉर्ड खराब है. याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि उत्तर प्रदेश में रेन बसेरों की संख्या बढ़ाना बहुत बड़ा काम है, क्योंकि 2011 की जनगणना के मुताबिक, यूपी में एक लाख अस्सी हजार बेघर हैं, जबकि प्रदेश में मौजूदा रैन बसेरों में केवल 7000 बेघरों को ही आश्रय देने की क्षमता है.
सर्दी के दिनों में रैन बसेरों की मांग में तेजी से बढ़ोतरी होती है. रैन बसेरों के लिए केंद्र 75 फीसदी आर्थिक सहायता मुहैया कराता है, जबकि राज्यों को 25 फीसदी खर्च का हिस्सा वहन करना होता है. वहीं विशेष दर्जा वाले प्रदेशों के मामले में केंद्र की तरफ से 90 फीसद सहायता दी जाती है.
देखें वीडियो - फुटपाथ पर ठिठुरते लोग आखिर रैन बसेरों में क्यों नहीं जाते?
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