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सुप्रीम कोर्ट ने UP के 2 अधिकारियों को कहा “अहंकारी”, गिरफ्तारी का रास्ता साफ

यूपी सरकार की अपील खारिज, राज्य के वित्त सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) की गिरफ्तारी का रास्ता साफ

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>सुप्रीम कोर्ट</p></div>
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सुप्रीम कोर्ट

(फोटो: IANS)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 13 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh government) की अपील को खारिज करते हुए राज्य के वित्त सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) की गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया है. दोनों अधिकारियों के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेशों के देरी से और आंशिक रूप से अनुपालन के लिए जमानती वारंट जारी किया था.

अपने शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची राज्य सरकार को राहत नहीं मिल सकी. चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा "आप इस सब के लायक हैं. उससे भी ज्यादा."

सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में चीफ जस्टिस रमना के अलावा जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थे. कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि

"आप इस मामले में यहां क्या बहस कर रहे हैं. हाई कोर्ट को अब तक गिरफ्तारी का आदेश देना चाहिए था ... हमें लगता है कि और अधिक कड़ी सजा देने की आवश्यकता थी. हाई कोर्ट आपके साथ नरम रहा है. अपने आचरण को देखें. आप एक कर्मचारी को उसके एरियर से वंचित कर रहे हैं. आपने आदेशों का पालन करने के लिए कुछ नहीं किया. हाई कोर्ट आप पर बहुत दयालु रहा है ... आपके पास अदालत के लिए कोई सम्मान नहीं है. यह अतिरिक्त मुख्य सचिव बहुत अहंकारी प्रतीत होता है "
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अधिकारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच के सामने पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि याचिकाकर्ता भुनेश्वर प्रसाद तिवारी की सर्विस को ''संग्रह अमीन'' के रूप में नियमित कर दिया गया है और जिन जूनियर्स को उनसे पहले नियमित रोजगार दिया गया था, उन्हें हटा दिया गया है और केवल बकाया वेतन भुगतान का ही मुद्दा रह गया.

लेकिन बेंच ने इसपर कहा कि "आपको गिरफ्तार करने और पेश करने के बाद आप यह सब (तर्क) हाई कोर्ट को बताएं."

क्या है पूरा मामला?

यह मामला राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ता भुनेश्वर प्रसाद तिवारी को 2017 में 'संग्रह अमीन' के रूप में सिनियर्टी के लाभ से वंचित करने और उनके सर्विस को नियमित न करने से संबंधित है.

हाई कोर्ट द्वारा कई अंतरिम आदेश पारित किए गए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फोर्थ क्लास के कर्मचारी को सेवा के नियमितीकरण और पिछले वेतन के बकाया के रूप में न्याय मिले.

इलाहबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में नोट किया था कि संजय कुमार, जो वर्तमान में सचिव (वित्त) हैं, ने कथित तौर पर बार-बार अदालत के आदेश के बावजूद जरूरी काम नहीं किया. हाई कोर्ट ने कहा था कि

"ऐसा प्रतीत होता है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) रैंक के राज्य अधिकारियों ने कोर्ट को खेल का मैदान माना है जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि एडिशनल सॉलिसिटर जनरल द्वारा दिए गए वचन के बावजूद, प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता को वेतन का बकाया देने से इनकार कर दिया है.”

हाई कोर्ट के अनुसार संजय कुमार ने "याचिकाकर्ता के दावे को इस आधार पर बहुत लापरवाही से खारिज कर दिया था कि चूंकि नियमितीकरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, इसलिए अगली प्रक्रिया शुरू होने पर याचिकाकर्ता के दावे पर विचार किया जाएगा"

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