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स्थायी कमीशन मामला- सेना की 17 महिला अधिकारियों की याचिका खारिज

इन महिला अधिकारियों को कट ऑफ डेट से बाहर होने पर नहीं मिला स्थायी कमीशन

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इन महिला अधिकारियों को कट ऑफ डेट से बाहर होने पर नहीं मिला स्थायी कमीशन
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इन महिला अधिकारियों को कट ऑफ डेट से बाहर होने पर नहीं मिला स्थायी कमीशन
(फोटो: PTI)

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भारतीय सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कुछ महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि सर्विस बेनिफिट्स की लास्ट डेट को आगे बढ़ाया जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. इन 17 महिला अधिकारियों ने कट ऑफ डेट से बाहर होने के बाद स्थायी कमीशन नहीं मिल पाने के बाद ये अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि अगर ऐसा किया गया तो आने वाले बैच पर इसका असर पड़ेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने सेना की इन महिला अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अब ये करना (लास्ट डेट बढ़ाना) मुमकिन नहीं है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि सेना में महिला अधिकारियों को भी कमांड पोजिशन तक जाने का मौका दिया जाए. इस फैसले के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी इस मामले में जमकर फटकार लगाई थी.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कहा गया था कि जिन महिला अधिकारियों ने सेना में 14 साल तक नौकरी कर ली है उन्हें स्थायी कमीशन दिया जाएगा. यानी इसके बाद वो अपनी सर्विस 20 साल तक कर सकती हैं. इसका सीधा मतलब ये था कि महिलाओं को अब सेना में कर्नल या फिर उसके ऊपर की रैंक भी मिल सकती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कहां खींचे सीमा रेखा?

सुप्रीम कोर्ट में इन महिला अधिकारियों का पक्ष बीजेपी सांसद और वकील मीनाक्षी लेखी ने रखा. उन्होंने कोर्ट को कहा कि कट ऑफ डेट को लेकर सरकार का आदेश जुलाई में आया था. इसीलिए इन महिला अधिकारियों को समायोजित किया जा सकता है और इससे उन्हें पेंशन का लाभ भी मिल सकता है. लेकिन मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि, हमने जो फैसला दिया था उसमें कहा गया था कि इस तारीख तक जिसने भी 14 साल की सर्विस पूरी कर ली हो उसे पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे. फैसले वाली तारीख ही कट ऑफ है. अगर हम इसमें बदलाव करते हैं तो हमें अन्य बैच में भी बदलाव करने होंगे.

हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तरह के मामलों की सुनवाई करना काफी मुश्किल है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने देश की सेवा की है. हमें लगता है कि हमें उनके लिए कुछ करना चाहिए, लेकिन आखिर सीमा रेखा कहां खींचें?

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