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एडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ से कहा कि हम धारा 377 की संवैधानिकता का मुद्दा कोर्ट पर छोड़ते हैं. सुप्रीम कोर्ट इस बारे में फैसला करें.
नृत्यांगना नवतेज जौहर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि लैंगिक स्वतंत्रता के अधिकार को नौ सदस्यीय संविधान पीठ के 24 अगस्त, 2017 के फैसले के आलोक में परखा जाना चाहिए.
इस फैसले में संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताते हुये कहा था कि एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को निजता के अधिकार से सिर्फ इस वजह से वंचित नहीं किया जा सकता कि उनका गैरपारंपरिक यौन रूझान है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में अपने फैसले में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया था. हाई कोर्ट ने दो समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा परस्पर सहमति से यौन संबंध स्थापित करने को दंडनीय अपराध बनाने वाली धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया था.
समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली संविधान की धारा 377 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लगातार दूसरे दिन जारी है. मंगलवार को कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं के वकीलों के तर्क सुने.
ओपन कोर्ट में चल रही सुनवाई में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें रखी जा रही हैं. एएसजी तुषार मेहता ने सरकार की तरफ से जारी ऐफिडेविट में धारा 377 पर फैसला कोर्ट के ऊपर छोड़ दिया है.
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ कर रही है. पीठ के पांच जजों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा चार और जज हैं, जिनमें आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं.
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