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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर एक याचिकाकर्ता त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने अपना रुख बदल लिया है. देवासम बोर्ड ने मंदिर में महिलाओं की एंट्री का समर्थन किया है.
टीडीबी प्रेसिडेंट ए पद्मकुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा, “कोर्ट ने 28 सितंबर के अपने फैसले के आधार पर देवासम बोर्ड से राय पूछी थी. बोर्ड ने उस फैसले पर रिव्यू पिटीशन दायर नहीं करने का फैसला किया है. बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वीकार कर लिया है. हमारा कहना है कि किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.”
टीडीबी प्रेसिडेंट ए पद्मकुमार ने कहा, “सबरीमाला मामले पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करने दें. कोर्ट का जो भी फैसला होगा, हम उसे मानेंगे.”
दरअसल, बुधवार को सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिला के प्रवेश वाले फैसले पर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. केरल में चल रहे भारी विरोध प्रदर्शनों के बीच 2 महीने के सबरीमाला तीर्थयात्रा के बाद बीते 19 जनवरी को भगवान अयप्पा के मंदिर के कपाट को बंद कर दिया गया था. 13 फरवरी को सबरीमाला मंदिर के कपाट मलयाली महीने कुंभ की मासिक पूजा के लिए एक बार फिर खुलेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कई सारे सामाजिक संगठनों ने नाराजगी जताई थी. इन संगठनों का मानना है कि इस फैसले से उनकी धार्मिक भावनाएं और मान्यताओं पर चोट पहुंची है. पुनर्विचार याचिका दायर करने के पीछे मुख्य रूप से नेशनल एसोसिएशन ऑफ अयप्पा डिवोटीज और नैयर सेवा समाज जैसे 17 संगठन शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने 28 सितंबर 2018 को सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत दी थी. बेंच ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति का फैसला सुनाया था.
ये फैसला तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से सुनाया था. इस बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि रजस्वला उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देना उनके मूलभूत अधिकारों और संविधान में बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है.
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सुप्रीम कोर्ट ने भले ही फैसला सुना दिया हो कि मंदिर में हर उम्र की महिला को प्रवेश मिलेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. भगवान अयप्पा के भक्त और कुछ राजनीतिक पार्टियां कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ गए. वहीं से सारा विवाद शुरू हुआ. इस मुद्दे को लेकर केरल में मुख्य तौर पर दो पार्टियां बीजेपी और सीपीएम आमने-सामने आ गईं.
बीजेपी अयप्पा भक्तों के साथ खड़ी नजर आई जो ये कह रहे हैं कि मान्यताओं के साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. दूसरी ओर, केरल में सत्ता पर काबिज सीपीएम का मानना है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कर रही है और जो औरतें (रजस्वला उम्र की) मंदिर में प्रवेश कर रहीं हैं, उनको सुरक्षा देना हमारा काम है. इसी बात पर विवाद है और दोनों मतों के लोग आमने-सामने हैं.
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