Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019SC का निर्देश- 'पुलिस का खुलासा मीडिया ट्रायल का रूप न लें, केंद्र बनाए मैनुअल'

SC का निर्देश- 'पुलिस का खुलासा मीडिया ट्रायल का रूप न लें, केंद्र बनाए मैनुअल'

Supreme Court ने कहा कि किसी आरोपी को फंसाने वाली मीडिया रिपोर्ट अनुचित है

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>पुलिस का खुलासा मीडिया ट्रायल का रूप न लें, केंद्र बनाए दिशानिर्देश: सुप्रीम कोर्ट </p></div>
i

पुलिस का खुलासा मीडिया ट्रायल का रूप न लें, केंद्र बनाए दिशानिर्देश: सुप्रीम कोर्ट

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार, 13 सितंबर को अपने एक फैसले में केंद्रीय गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि उसे तीन महीने में पुलिस कर्मियों द्वारा मीडिया ब्रीफिंग (पुलिस द्वारा किसी मामले में मीडिया के सामने खुलासा) पर एक डीटेल्ड मैनुअल तैयार करना होगा.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को मैनुअल के लिए अपने सुझाव देने का निर्देश भी दिया है. साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सुझावों पर भी विचार करने को कहा है.

शीर्ष अदालत की सुनवाई दो मुद्दों से संबंधित है: पहला, एनकाउंटर की स्थिति में पुलिस जो प्रक्रियाएं अपनाती है, और दूसरा, जो आपराधिक मामले की जांच जारी है उस दौरान मीडिया ब्रीफिंग करते समय पुलिस को प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए.

अदालत ने इस मामले में पहले सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन को मदद के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया था. शंकरनारायणन ने अपनी सिफारिश में कहा, "हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से नहीं रोक सकते. लेकिन स्रोतों (सोर्स) को रोका जा सकता है. क्योंकि सोर्स राज्य (सरकार/प्रशासन) है. यहां तक कि आरुषि मामले में भी मीडिया को कई वर्जन दिए गए."

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किसी आरोपी को फंसाने वाली मीडिया रिपोर्ट अनुचित है: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, "किसी आरोपी को फंसाने वाली मीडिया रिपोर्ट अनुचित है. पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से जनता में यह संदेह भी पैदा होता है कि उस व्यक्ति ने अपराध किया है. मीडिया रिपोर्ट पीड़ितों की निजता का भी उल्लंघन कर सकती है."

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर डाला की हालिया दिशानिर्देशों को अब अपडेट करने की जरूरत है. क्योंकि मौजूदा दिशानिर्देश एक दशक पहले बनाए गए थे, और क्राइम रिपोर्टिंग अब काफी विकसित हो चुकी है.

कोर्ट ने माना कि मीडिया को जो जानकारी दी जा रही है उस सिलसिले में ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पीड़ितों और आरोपियों की उम्र और लिंग क्या है. क्योंकि हर केस एक जैसा नहीं होता इसलिए केस के हिसाब से यह तय किया जाना चाहिए.

न्यायालय ने आगे कहा कि पुलिस के खुलासे का परिणाम "मीडिया-ट्रायल" नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने कहा, "यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खुलासे के परिणामस्वरूप मीडिया ट्रायल न हो ताकि लोग ये तय न करने लग जाए कि आरोपी का अपराध क्या है."

बता दें कि मामले की अगली सुनवाई अगले साल जनवरी के दूसरे हफ्ते में होनी है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT