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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दस दिन के भीतर सीलबंद लिफाफे में राफेल की कीमत और ऑफसेट पार्टनर सिलेक्ट करने की प्रक्रिया की पूरी जानकारी मांगी है.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सरकार को आदेश दिया कि वो राफेल डील से जुड़ी सभी बातों की 10 दिन के अंदर जानकारी दे. जो जानकारी गोपनीयता की वजह से सरकार नहीं दे सकती उसका हलफनामा देकर वजह बतानी है. मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी.
अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने यशवंत सिन्हा की याचिका समेत सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील की सीबीआई जांच के लिए 4 याचिकाएं लगाई गई हैं. शौरी और भूषण को लगता है इस आदेश के बाद राफेल डील की जांच के तरफ मामला आगे बढ़ा है.
शौरी का दावा है कि गोपनीयता की शर्त कीमत पर नहीं बल्कि टेक्निकल डिटेल और उसमें लगाए जाने वाले हथियार सिस्टम पर लागू होती है. उनका कहना है सरकार अगर हलफनामा देकर कहती है कि गोपनीयता की वजह से कीमत नहीं बताई जा सकती तो वो उलझ जाएगी.
पूर्व केंद्रीय मंत्री शौरी का कहना है कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रां जब भारत आए थे तो उन्होंने साफ बोला था कि विमान की कीमत बताना है या छिपाना है ये भारत के ऊपर है उनके देश को इससे कोई ऐतराज नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह 10 दिन के भीतर सीलबंद लिफाफे में राफेल को लेकर सभी जानकारियां दे. इस पर सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि लड़ाकू विमान की कीमत ‘गोपनीय’ है और उसे साझा नहीं किया जा सकता है.
इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार राफेल सौदे पर हलफनामा दायर कर उसे बताए कि लड़ाकू विमान की कीमत ‘विशिष्ट सूचना’ है और इसे साझा नहीं किया जा सकता.
अरुण शौरी का दावा है कि सरकार को हलफनामा देने में दिक्कत होगी. उनके मुताबिक इसकी पांच बड़ी वजह हैं.
यूपीए सरकार के वक्त 126 राफेल विमानों का सौदा करीब 90 हजार करोड़ रुपए में होना था. जिसमें 18 विमान फ्रांस से बनकर आने थे जबकि बाकी 108 देश में ही बनने थे.
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रांस दौरे में जो समझौता हुआ वो 36 विमानों का 60 हजार करोड़ रुपए का था और सारे विमान फ्रांस से बनकर आने हैं.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस के. एम. जोसेफ की पीठ ने केन्द्र से कहा कि जो सूचनाएं सार्वजनिक की जा सकती हैं उन्हें वह याचिकाकर्ताओं के साथ साझा करे.
सरकार को सुप्रीम कोर्ट और याचिकाकर्ता को 10 दिन के अंदर राफेल सौदे की जानकारी देना है. जो जानकारी गोपनीय है वो सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी है. जो जानकारी सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं दी जा सकती वो हलफनामा देकर उसकी वजह बतानी है.
मामले की सीबीआई जांच की मांग पर कोर्ट ने कहा कि सब्र कीजिए पहले सीबीआई को सेटल हो जाने दीजिए फिर इस पर बात करेंगे.
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