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नये संसद भवन का राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने नई संसद का राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने की याचिका की खारिज

आईएएनएस
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>नये संसद भवन का राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने की याचिका SC से खारिज</p></div>
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नये संसद भवन का राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने की याचिका SC से खारिज

(फोटो-क्विंट हिंदी)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार (26 मई) को राष्ट्रपति द्वारा नए संसद भवन (New Parliament House) का उद्घाटन कराने के निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार कर दिया.

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और पी.एस. नरसिम्हा ने याचिकाकर्ता से व्यक्तिगत रूप से कहा, "वह इस तरह की याचिका लेकर अदालत में क्यों आए हैं और इस बात पर जोर दिया कि अदालत अनुच्छेद 32 के तहत इस पर विचार करने में दिलचस्पी नहीं रखती है." पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा, अनुच्छेद 79 यहां कैसे प्रासंगिक है?

सुप्रीम कोर्ट में क्या दलील दी गई?

एडवोकेट सीआर जया सुकिन ने कहा कि राष्ट्रपति संसद का प्रमुख होता है और यह पूरी तरह से अनुच्छेद 79 और 87 का उल्लंघन है. सुकिन ने दलील दी कि राष्ट्रपति को ही संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए क्योंकि वह संसद के प्रमुख हैं. उन्होंने पूछा कि प्रधानमंत्री कैसे उद्घाटन कर सकते हैं?

अधिवक्ता सीआर जया सुकिन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि लोकसभा सचिवालय, भारत संघ, गृह मंत्रालय और न्याय मंत्रालय ने संविधान का उल्लंघन किया है.

याचिका में कहा गया है कि लोकसभा सचिवालय द्वारा 18 मई को जारी बयान और नए संसद भवन के उद्घाटन के बारे में लोकसभा महासचिव द्वारा जारी किया गया निमंत्रण कार्ड मनमाना तरीके से जारी किया गया है.

याचिका में कहा गया, संसद भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है. भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन - राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं. राष्ट्रपति के पास संसद की सभा बुलाने और समाप्त करने की शक्ति है.

याचिका में कहा गया है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पीएम की सलाह पर की जाती है.

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याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति को राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयुक्त के अध्यक्ष और प्रबंधक सहित अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार है.

याचिका में आगे कहा गया, "दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) का मुख्य कार्य कानून बनाना है. प्रत्येक विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना चाहिए और कानून बनने से पहले राष्ट्रपति द्वारा सहमति दी जानी चाहिए."

उसने कहा, संविधान का अनुच्छेद 87 दो उदाहरण देता है, जब राष्ट्रपति विशेष रूप से संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हैं. भारत के राष्ट्रपति प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरूआत में राज्यसभा और लोकसभा दोनों को संबोधित करते हैं. राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष दोनों सदनों को संबोधित करते हैं.

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर याचिका को वापस लेने की अनुमति दी जाती है, तो इसे उच्च न्यायालय में दायर किया जाएगा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया.

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